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Monday 6 April 2015

चंद्रग्रहण सूतक और सावधानियाँ


अंतरिक्ष प्रदुषण के समय को सूतक काल कहा जाता
है। सूर्यग्रहण में सूतक 12 घंटे
पहले और चंद्रग्रहण में सूतक 9 घंटे पहले लगता है ।
सूतक काल में भोजन तथा पेय पदार्थों के सेवन की
मनाही की गयी है तथा देव दर्शन वर्जित माने गय हैं

हमारे ऋषि मुनियों ने सूर्य चन्द्र ग्रहण लगने के समय
भोजन करने के लिये मना किया है,
क्योंकि उनकी मान्यता थी कि ग्रहण के समय में
कीटाणु बहुलता से फैल जाते हैं ।
इसलिये ऋषियों ने पात्रों में क़ुश अथवा तुलसी डालन
को कहा है, ताकि सब कीटाणु कुश में एकत्रित हो
जायें और उन्हें ग्रहण के बाद फेंका जा सके। ग्रहण वेध
के पहले जिन पदार्थों में कुश या तुलसी की पत्तियाँ
डाल दी जाती हैं, वे पदार्थ दूषित नहीं होते।
पात्रों में अग्नि डालकर उन्हें पवित्र बनाया जाता
है, ताकि कीटाणु मर जायें। जीव विज्ञान विषय के
प्रोफेसर
टारिंस्टन ने पर्याप्त अनुसन्धान करके सिद्ध किया है
कि सूर्य एवं चन्द्र ग्रहण के समय मनुष्य के पेट की
पाचन शक्ति कमजोर हो जाती है, जिसके कारण इस
समय किया गया भोजन अपच, अजीर्ण आदि
शिकायतें पैदा कर शारीरिक या मानसिक हानि
पहुँचा सकता है ।
*ग्रहण काल में न करने योग्य बातें :-
1. ग्रहण की अवधि में तेल लगाना, भोजन करना, जल
पीना, मल-मूत्र त्याग करना,
सोना, केश विन्यास करना,
रति क्रीडा करना, मंजन करना, वस्त्र नीचोड़्ना,
ताला खोलना, वर्जित किए गये हैं ।
2. ग्रहण के समय सोने से रोग पकड़ता है, लघुशंका करने
से घर में दरिद्रता आती है, मल त्यागने से पेट में कृमि
रोग पकड़ता है, स्त्री प्रसंग करने से सूअर की योनि
मिलती है और मालिश या उबटन किया तो व्यक्ति
कुष्ठ
रोगी होता है।
3. देवी भागवत में आता हैः सूर्यग्रहण या चन्द्रग्रहण
के समय भोजन करने वाला मनुष्य जितने अन्न के दाने
खाता है, उतने वर्षों तक अरुतुन्द नामक नरक में वास
करता है। फिर वह उदर रोग से पीड़ित मनुष्य होता है
फिर
गुल्मरोगी, काना और दंतहीन
होता है।
4. सूर्यग्रहण में ग्रहण से चार प्रहर पूर्व और चंद्रग्रहण में
तीन प्रहर पूर्व भोजन नहीं करना चाहिए (1 प्रहर =
3 घंटे) । बूढ़े, बालक और रोगी एक प्रहर पूर्व खा सकते
हैं ।
5. ग्रहण के दिन पत्ते, तिनके,
लकड़ी और फूल नहीं तोड़ना चाहिए
6. 'स्कंद पुराण' के अनुसार ग्रहण के अवसर पर दूसरे का
अन्न खाने से बारह वर्षो का एकत्र किया हुआ सब
पुण्य नष्ट हो जाता है ।
7. ग्रहण के समय कोई भी शुभ या नया कार्य शुरू
नहीं करना चाहिए।
8. ये शास्त्र् की बातें हैं इसमें
किसी का लिहाज नहीं होता।
*ग्रहण काल में करने योग्य बातें:-
1. ग्रहण लगने से पूर्व स्नान करके भगवान का पूजन,
यज्ञ, जप करना चाहिए ।
2. भगवान वेदव्यास जी ने परम हितकारी वचन कहे
हैं- चन्द्रग्रहण में किया गया पुण्यकर्म (जप, ध्यान,
दान आदि) एक लाख गुना और सूर्य ग्रहण में दस लाख
गुना फलदायी होता है।
3. ग्रहण के समय गुरुमंत्र, इष्टमंत्र अथवा भगवन्नाम जप
अवश्य करें, न करने से मंत्र को मलिनता प्राप्त होती
है।
4. ग्रहण समाप्त हो जाने पर
स्नान करके ब्राम्हण को दान करने का विधान है ।
5. ग्रहण के बाद पुराना पानी,
अन्न नष्ट कर नया भोजन पकाया जाता है, और
ताजा भरकर पीया जाता है।
6. ग्रहण पूरा होने पर सूर्य
या चन्द्र, जिसका ग्रहण हो,
उसका शुद्ध बिम्ब देखकर भोजन करना चाहिए।
7. ग्रहणकाल में स्पर्श किये हुए वस्त्र आदि की
शुद्धि हेतु बाद में उसे धो देना चाहिए तथा स्वयं भी
वस्त्रसहित स्नान करना चाहिए।
8. ग्रहण के समय गायों को घास, पक्षियों को
अन्न, जरूरत मंदों को वस्त्र् दान देने से अनेक गुना पुण्य
प्राप्त होता है।
**गर्भवती स्त्रियों के लिये विशेष सावधानी –
गर्भवती स्त्री को सूर्य एवं चन्द्रग्रहण नहीं देखना
चाहिए,
क्योकि उसके दुष्प्रभाव से शिशु अंगहीन होकर
विकलांग बन जाता है ।गर्भपात की संभावना बढ़
जाती है । इसके लिए गर्भवती के उदर भाग में गोबर
और तुलसी का लेप लगा
दिया जाता है, जिससे कि राहू केतू उसका स्पर्श न
करें।
ग्रहण के दौरान गर्भवती स्त्री को कुछ भी कैंची,
चाकू आदि से काटने को मना किया जाता है, और
किसी वस्त्र आदि को सिलने से
मना किया जाता है ।
क्योंकि ऐसी मान्यता है
कि ऐसा करने से शिशु के अंग या तो कट जाते हैं या
फिर सिल (जुड़) जाते हैं ।

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