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Wednesday 12 August 2015

Are you with the Faujis

Rather than wishing Happy Independance Day in advance, I thought I'd fwd this for you to think over and contemplate:-

The average age of the Army Man is 23 years. 
He is a short haired, tight-muscled kid who, under normal circumstances is considered by society as half man, half boy.
Not yet dry behind the ears, not old enough to buy a beer in the capital of his country, but old enough to die for his country.

He's a recent school or college graduate;
he was probably an average student from one of the Kendriya Vidyalayas,
pursued some form of sport activities, drives a rickety bicycle,
and had a girlfriend that either broke up with him when he left for IMA, or swears to be waiting when he returns from half a world away.

He listens to rock and roll or hip -hop or bhangra or gazals and a 155mm howitzer.
He is 5 or 7 kilos lighter now than when he was at home because he is working or fighting the insurgents or standing guard on the icy Himalayas from before dawn to well after dusk or he is at Mumbai engaging the terrorists.
He has trouble spelling, thus letter writing is a pain for him,
but he can field strip a rifle in 30 seconds and reassemble it in less time in the dark.
He can recite to you the nomenclature of a machine gun or grenade launcher and use either one effectively if he must.
He digs foxholes and latrines and can apply first aid like a professional.
He can march until he is told to stop, or stop until he is told to march.
He obeys orders instantly and without hesitation, but he is not without spirit or individual dignity.
His pride and self-respect, he does not lack.

He is self-sufficient.
He has two sets of combat dress: he washes one and wears the other.
He keeps his water bottle full and his feet dry.
He sometimes forgets to brush his teeth, but never to clean his rifle.
He can cook his own meals, mend his own clothes, and fix his own wounds.

If you're thirsty, he'll share his water with you; if you are hungry, his food.
He'll even split his ammunition with you in the midst of battle when you run low.

He has learned to use his hands like weapons and weapons like they were his hands.
He can save your life - or take it, because he's been trained for both.
He will often do twice the work of a civilian, draw half the pay, and still find ironic humor in it all.
He has seen more suffering and death than he should have in his short lifetime.
He has wept in public and in private, for friends who have fallen in combat and is unashamed to do so.
He feels every note of the Jana Gana Mana vibrate through his body while at rigid attention, while tempering the burning desire to 'square-away' those around him who haven't bothered to stand, remove their hands from their pockets, or even stop talking.
In an odd twist, day in and day out, far from home, he defends their right to be disrespectful.
Just as did his Father, Grandfather, and Great-grandfather, he is paying the price for our freedom.

A tricolour, somewhere in his uniform,
A tricolour, he holds high,
A tricolour he unfurls with pride after every misson.
Sometimes he comes home wrapped in one.
Beardless or not, he is not a boy.
He is your nation's Fighting Man that has kept this country free and defended your right to Freedom.
He has experienced deprivation and adversity, and has seen his buddies falling to bullets and maimed and blown.

And he smiles at the irony of the IAS babu and politician reducing his status year after year and the unkindest cut of all, even reducing his salary and asking why he should get 14 eggs a week free! And when he silently whispers in protest, the same politician and babu aghast, suggest he's mutinying!

Wake up citizens of India! Let's begin discriminating between the saviours of India and destroyers

Are you with the Faujis

If you are, then share this till it reaches every Patriotic Indian.

JAI HIND

जिंदगी जिंदादिली से जीने का नाम है,

मेरे एक मित्र ने अपनी बीवी की अलमारी खोली और एक सुनहरे कलर का पेकेट निकाला। "ये" उसने कहा कि कोई साधारण पेकैट नहीं है।

उसने पेकेट खोला और उसमें रखी बेहद खूबसूरत सिल्क की साड़ी और उसके साथ की ज्युलरी को एकटक देखने लगा।

ये हमने लिया था 8-9 साल पहले, जब हम पहली बार न्युयार्क गए थे। परन्तु उसने ये कभी पहनी नहीं क्योंकि वह इसे किसी खास मौके पर पहनना चाहती थी और इसलिए इसे बचा कर रखा था।

उसने उस पेकेट को भी दुसरे और कपड़ों के साथ अपनी बीवी की अर्थी के पास रख दिया, उसकी बीवी की मृत्यु अभी अचानक ही हुई थी।

उसने रोते हुए मेरी और देखा और कहा-
किसी भी खास मौके के लिए कभी भी कुछ भी मत बचा के रखना। जिंदगी का हर एक दिन खास मौका है, कल का कुछ भरोसा नहीं है।

मुझे लगता है उसकी उन बातों ने मेरी जिंदगी बदल दी।

मित्रों अब मैं किसी बात की ज्यादा चिंता नहीं करता।

अब मैं अपने परिवार के साथ ज्यादा समय बिताता हुँ, और काम का कम टेंशन लेता हूँ।

मुझे अब समझ में आ चुका है कि जिंदगी जिंदादिली से जीने का नाम है, डर-डर के रूक-रूक के बहुत ज्यादा विचार करके चलने में समय आगे निकल जाता है और हम पिछड़ जाते हैं।

अब मैं कुछ भी बहुत बहुत संभाल संभाल के नहीं रखता, हर एक चीज़ का बिंदास उपयोग करता हूँ।

अब मैं घर के शोकेस मैं रखी मँहगी क्राकरी का हर दिन उपयोग करता हुँ।

अगर मुझे पास के सुपर मार्केट में या नज़दीकी माॅल में मुव्ही देखने नए कपड़े पहन के जाने का मन है तो मैं जाता हूँ।
अपने कीमती खास परफ्यूम को विशेष मौकों के लिए संभाल कर बचा के नहीं रखता। मैं उन्हें जब मर्जी आए तब उपयोग करता हुँ।

"एक दिन" "किसी दिन" जैसे शब्द अब मेरी डिक्शनरी से गुम होते जा रहे हैं।

अगर कुछ देखने, सुनने या करने लायक है तो मुझे उसे अभी देखना, सुनना या करना होता है।

मुझे नहीं पता मेरे दोस्त की बीवी क्या करती, अगर उसे पता होता कि वह अगली सुबह नहीं देख पाएगी

शायद वह अपने नज़दीकी रिश्तेदारों और खास दोस्तों को बुलाती। शायद वह अपने पुराने रूठे हुए दोस्तों से दोस्ती और शांति की बातें करती।

अगर मुझे पता चले कि मेरा अंतिम समय आ गया है तो क्या मैं ये इतनी छोटी छोटी चीजों को भी नहीं कर पाने के लिए अफसोस करूँगा।

नहीं...इन सब इच्छाओं को तो आज ही आराम से पुरा कर ही सकता ह

हर दिन, हर घंटा, हर मिनट, हर पल विशेष है, खास है...बहुत खास है।

प्यारें दोस्तों जिंदगी का लुत्फ उठाइए, आज मैं जिंदगी बसर कीजिये। क्या पता कल हो न हो, वैसे भी कहते हैं न कल तो कभी आता ही नहीं।

अगर आपको ये मेसेज मिला है इसका मतलब है कि कोई आपकी परवाह करता है केयर करता है क्योंकि शायद आप भी किसी की परवाह करते हैं ध्यान रखते हैं।

अगर आप अभी बहुत व्यस्त हैं और इसे किसी "अपने" को बाद में या किसी ओर दिन भेज देंगे तो याद रखिये कोई ओर दिन थो बहुत दुर है ओर शायद  कभी आए भी नही...:::!!!

माइक्रोवेव रेडियेशन लीकेज टेस्ट

(( माइक्रोवेव रेडियेशन लीकेज टेस्ट ))

वर्तमान में घर घर में माइक्रोवेव ओवन का इस्तेमाल हो रहा है।

अगर आप से पूछा जाए कि---" आपने अपने माइक्रोवेव का रेडियेशन लीकेज पिछली बार कब चैक किया था ? "

तो यकीनन आप सोच में पड़ जाएंगे।

क्या आप जानते हैं कि किसी भी माइक्रोवेव में, किसी भी कारण से, कभी भी रेडियेशन लीकेज हो सकता है और ये लीकेज घर के इंसानों और पालतू जानवरों दोनों के लिए खतरनाक हो सकता है।

लेकिन इसके लिए ना तो आपको एक्सपर्ट्स बुलाने की आवश्यकता है और
ना ही माइक्रोवेव को डीलर के वर्कशॉप पर लीकेज टेस्ट के लिए ले जाने की जरूरत है, जो समय खाने वाला, असुविधाजनक और पैसा खर्चने वाला काम है।

आइए आपको बताते हैं कि बिना कुछ खर्च किए, घर पर ही आप कैसे माइक्रोवेव रेडियेशन लीकेज टेस्ट आसानी से कर सकते हैं।

1.   सर्वप्रथम आप माइक्रोवेव को इलेक्ट्रिकल सॉकेट से स्विच-ऑफ कर अन-प्लग करें।
2.   अब आप अपना मोबाइल माइक्रोवेव के अंदर रखकर उसका द्वार बंद कर दें।
3.   अब किसी अन्य मोबाइल से माइक्रोवेव के अंदर रखे मोबाइल का नंबर डायल करें।
4.   अगर आपका बाहर वाला फोन कहे कि, जो नंबर आप डायल कर रहे हैं, वो नॉट रीचेबल है या वो आउट ऑफ कवरेज एरिया है या वो स्विच्ड ऑफ है।
तो इसका मतलब है कि, आपका माइक्रोवेव, रेडियेशन लीकेज से पूर्ण रूप से सुरक्षित है।
5.   लेकिन अगर माइक्रोवेव के अंदर रखे मोबाइल की लाइट जलती है और उसमे रिंग जाती है तो इसका मतलब है कि आपके माइक्रोवेव से  रेडियेशन का लीकेज हो रहा है।

आप तुरंत उस बेकार चीज को फेंकिए और नया लीजीए।

( यकीन मानिए उस रेडियेशन लीकेज के साइड-इफेक्ट के इलाज पर आपका जो खर्चा होगा वो इतना महँगा होगा कि उस रकम से आप 10 नए माइक्रोवेव खरीद सकते हैं। )

याद रखिए, अगर आपके माइक्रोवेव का द्वार अच्छी तरह से बंद है तो भी ये मत समझिए कि रेडियेशन का लीकेज नहीं हो सकता।

इसलिए सुरक्षित रहिए और नियमित रूप से कुछ दिनों के अंतराल में माइक्रोवेव रेडियेशन लीकेज टेस्ट करते रहिए।

अंतराल कितने दिनों का हो, ये माइक्रोवेव के किये जा रहे उपयोग के आधार पर आप खुद निश्चित करें।

( कृपया इस अनमोल जानकारी को अपने सभी मित्रों और रिश्तेदारों से अवश्य श्यर करें। )

Tuesday 11 August 2015

एक गोत्र में शादी क्यूँ नहीं..?

एक गोत्र में शादी क्यूँ नहीं..?

वैज्ञानिक कारण हैं..!

एक दिन डिस्कवरी पर जेनेटिक
बीमारियों से सम्बन्धित एक ज्ञानवर्धक कार्यक्रम
देख रहा था ...
उस प्रोग्राम में एक अमेरिकी वैज्ञानिक ने कहा की जेनेटिक बीमारी न हो इसका एक ही इलाज है और वो है
"सेपरेशन ऑफ़ जींस"

मतलब अपने नजदीकी रिश्तेदारो में विवाह नही करना चाहिए ..क्योकि नजदीकी
रिश्तेदारों में जींस सेपरेट (विभाजन) नही हो पाता और जींस लिंकेज्ड
बीमारियाँ जैसे हिमोफिलिया, कलर ब्लाईंडनेस, और
एल्बोनिज्म होने की १००% चांस होती है ..
फिर मुझे
बहुत ख़ुशी हुई जब उसी कार्यक्रम में ये
दिखाया गया की आखिर हिन्दूधर्म में
हजारों सालों पहले जींस और डीएनए के बारे में
कैसे
लिखा गया है ? हिंदुत्व में कुल सात गोत्र होते
है
और एक गोत्र के लोग आपस में शादी नही कर
सकते
ताकि जींस सेपरेट (विभाजित) रहे.. उस वैज्ञानिक ने
कहा की आज पूरे विश्व
को मानना पड़ेगा की हिन्दूधर्म ही विश्व का
एकमात्र
ऐसा धर्म है जो "विज्ञान पर आधारित" है !
हिंदू परम्पराओं से जुड़े ये वैज्ञानिक तर्क:

1- कान छिदवाने की परम्परा:

भारत में लगभग सभी धर्मों में कान छिदवाने की परम्परा है।
वैज्ञानिक तर्क-
दर्शनशास्त्री मानते हैं कि इससे सोचने की शक्त‍ि बढ़ती है। जबकि डॉक्टरों का मानना है कि इससे बोली अच्छी होती है और कानों से होकर दिमाग तक जाने वाली नस का रक्त संचार नियंत्रित रहता है।

2-: माथे पर कुमकुम/तिलक

महिलाएं एवं पुरुष माथे पर कुमकुम या तिलक लगाते हैं।
वैज्ञानिक तर्क- आंखों के बीच में माथे तक एक नस जाती है। कुमकुम या तिलक लगाने से उस जगह की ऊर्जा बनी रहती है। माथे पर तिलक लगाते वक्त जब अंगूठे या उंगली से प्रेशर पड़ता है, तब चेहरे की त्वचा को रक्त सप्लाई करने वाली मांसपेशी सक्रिय हो जाती है। इससे चेहरे की कोश‍िकाओं तक अच्छी तरह रक्त पहुंचता

3- : जमीन पर बैठकर भोजन

भारतीय संस्कृति के अनुसार जमीन पर बैठकर भोजन करना अच्छी बात होती है।
वैज्ञानिक तर्क- पलती मारकर बैठना एक प्रकार का योग आसन है। इस पोजीशन में बैठने से मस्त‍िष्क शांत रहता है और भोजन करते वक्त अगर दिमाग शांत हो तो पाचन क्रिया अच्छी रहती है। इस पोजीशन में बैठते ही खुद-ब-खुद दिमाग से एक सिगनल पेट तक जाता है, कि वह भोजन के लिये तैयार हो जाये।

4- : हाथ जोड़कर नमस्ते करना

जब किसी से मिलते हैं तो हाथ जोड़कर नमस्ते अथवा नमस्कार करते हैं।
वैज्ञानिक तर्क- जब सभी उंगलियों के शीर्ष एक दूसरे के संपर्क में आते हैं और उन पर दबाव पड़ता है। एक्यूप्रेशर के कारण उसका सीधा असर हमारी आंखों, कानों और दिमाग पर होता है, ताकि सामने वाले व्यक्त‍ि को हम लंबे समय तक याद रख सकें। दूसरा तर्क यह कि हाथ मिलाने (पश्च‍िमी सभ्यता) के बजाये अगर आप नमस्ते करते हैं तो सामने वाले के शरीर के कीटाणु आप तक नहीं पहुंच सकते। अगर सामने वाले को स्वाइन फ्लू भी है तो भी वह वायरस आप तक नहीं पहुंचेगा।

5-: भोजन की शुरुआत तीखे से और अंत मीठे से

जब भी कोई धार्मिक या पारिवारिक अनुष्ठान होता है तो भोजन की शुरुआत तीखे से और अंत मीठे से होता है।
वैज्ञानिक तर्क- तीखा खाने से हमारे पेट के अंदर पाचन तत्व एवं अम्ल सक्रिय हो जाते हैं। इससे पाचन तंत्र ठीक तरह से संचालित होता है। अंत में मीठा खाने से अम्ल की तीव्रता कम हो जाती है। इससे पेट में जलन नहीं होती है।

6-: पीपल की पूजा
तमाम लोग सोचते हैं कि पीपल की पूजा करने से भूत-प्रेत दूर भागते हैं।
वैज्ञानिक तर्क- इसकी पूजा इसलिये की जाती है, ताकि इस पेड़ के प्रति लोगों का सम्मान बढ़े और उसे काटें नहीं। पीपल एक मात्र ऐसा पेड़ है, जो रात में भी ऑक्सीजन प्रवाहित करता ह

7-: दक्ष‍िण की तरफ सिर करके सोना

दक्ष‍िण की तरफ कोई पैर करके सोता है, तो लोग कहते हैं कि बुरे सपने आयेंगे, भूत प्रेत का साया आ जायेगा, आदि। इसलिये उत्तर की ओर पैर करके सोयें।
वैज्ञानिक तर्क- जब हम उत्तर की ओर सिर करके सोते हैं, तब हमारा शरीर पृथ्वी की चुंबकीय तरंगों की सीध में आ जाता है। शरीर में मौजूद आयरन यानी लोहा दिमाग की ओर संचारित होने लगता है। इससे अलजाइमर, परकिंसन, या दिमाग संबंधी बीमारी होने का खतरा बढ़ जाता है। यही नहीं रक्तचाप भी बढ़ जाता है।

8-सूर्य नमस्कार
हिंदुओं में सुबह उठकर सूर्य को जल चढ़ाते हुए नमस्कार करने की परम्परा है।
वैज्ञानिक तर्क- पानी के बीच से आने वाली सूर्य की किरणें जब आंखों में पहुंचती हैं, तब हमारी आंखों की रौशनी अच्छी होती है।

9-सिर पर चोटी

हिंदू धर्म में ऋषि मुनी सिर पर चुटिया रखते थे। आज भी लोग रखते हैं।
वैज्ञानिक तर्क- जिस जगह पर चुटिया रखी जाती है उस जगह पर दिमाग की सारी नसें आकर मिलती हैं। इससे दिमाग स्थ‍िर रहता है और इंसान को क्रोध नहीं आता, सोचने की क्षमता बढ़ती है।

10-व्रत रखना

कोई भी पूजा-पाठ या त्योहार होता है, तो लोग व्रत रखते हैं।
वैज्ञानिक तर्क- आयुर्वेद के अनुसार व्रत करने से पाचन क्रिया अच्छी होती है और फलाहार लेने से शरीर का डीटॉक्सीफिकेशन होता है, यानी उसमें से खराब तत्व बाहर निकलते हैं। शोधकर्ताओं के अनुसार व्रत करने से कैंसर का खतरा कम होता है। हृदय संबंधी रोगों, मधुमेह, आदि रोग भी जल्दी नहीं लगते।

11-चरण स्पर्श करना

हिंदू मान्यता के अनुसार जब भी आप किसी बड़े से मिलें, तो उसके चरण स्पर्श करें। यह हम बच्चों को भी सिखाते हैं, ताकि वे बड़ों का आदर करें।
वैज्ञानिक तर्क- मस्त‍िष्क से निकलने वाली ऊर्जा हाथों और सामने वाले पैरों से होते हुए एक चक्र पूरा करती है। इसे कॉसमिक एनर्जी का प्रवाह कहते हैं। इसमें दो प्रकार से ऊर्जा का प्रवाह होता है, या तो बड़े के पैरों से होते हुए छोटे के हाथों तक या फिर छोटे के हाथों से बड़ों के पैरों तक।

12-क्यों लगाया जाता है सिंदूर

शादीशुदा हिंदू महिलाएं सिंदूर लगाती हैं।
वैज्ञानिक तर्क- सिंदूर में हल्दी, चूना और मरकरी होता है। यह मिश्रण शरीर के रक्तचाप को नियंत्रित करता है। चूंकि इससे यौन उत्तेजनाएं भी बढ़ती हैं, इसीलिये विधवा औरतों के लिये सिंदूर लगाना वर्जित है। इससे स्ट्रेस कम होता है।

13- तुलसी के पेड़ की पूजा
तुलसी की पूजा करने से घर में समृद्ध‍ि आती है। सुख शांति बनी रहती है।
वैज्ञानिक तर्क- तुलसी इम्यून सिस्टम को मजबूत करती है। लिहाजा अगर घर में पेड़ होगा, तो इसकी पत्त‍ियों का इस्तेमाल भी होगा और उससे बीमारियां दूर होती हैं।

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अगर हिंदू परम्पराओं से जुड़े ये वैज्ञानिक तर्क आपको वाकई में पसंद आये हैं, तो इस लेख को शेयर कीजिये, ताकि आगे से कोई भी इस परम्परा को ढकोसला न कहे..!!!

Let's get a LIFE, before life gets us

I liked this msg .. Felt like sharing ��

Are we earning to pay builders and interior designers, caterers and decorators? 

Whom do we want to impress with our highly inflated house properties & fat weddings?

Do you remember for more than two days what you ate at someone's marriage?

Why are we working like dogs in our prime years of life?

How many generations do we want to feed?

Most of us have two kids. Many have a single kid.

How much is the "need" and how much do we actually "want"??
Think about it.

Would our next generation be incapable to earn, that we save so much for them!?!

Can not we spare one and a half days a week for friends, family and self??

Do you spend even 5% of your monthly income for your self enjoyment?
Usually...No.

Why can't we enjoy simultaneously while we earn?  

Spare time to enjoy before you have slipped discs and knee problems

We don't own properties, we just have temporary name on documents.

GOD laughs sarcastically, when someone says,
"I am the owner of this land"!!   

Do not judge a person only by the length of his car.

Many of our science and maths teachers were great personalities riding on scooters!!   

It is not bad to be rich, but it is very unfair, to be only rich.

Let's get a LIFE, before life gets us, instead....

How to file income tax e-return

ऐसे करें आयकर रिटर्न की ई-फाइलिंग

आयकर रिटर्न दाखिल करने की प्रकिया को ज्यादातर लोग एक पेचीदा, उबाऊ और काफी समय लेने वाला काम मानते हैं, जिसमें काफी कागजी कार्रवाई करनी पड़ती है। इसे सरल बनाते हुए सरकार ने ई-फाइलिंग की सुविधा उपलब्ध कराई है। यह काफी मददगार साबित हो रही है।है। 

ई-फाइलिंग का मतलब है इंटरनेट का प्रयोग करते हुए कहीं से भी किसी भी समय इलेक्ट्रॉनिक रूप से आयकर रिटर्न जमा करना। सालाना 5 लाख रुपये से ज्यादा आय वालों के लिए आयकर रिटर्न ई-फाइलिंग अनिवार्य है। 

आयकर रिटर्न तीन तरीकों से की जा सकती है। पहला तरीका आयकर रिटर्न सत्यापन पावती (ITR-V) पर डिजिटल हस्ताक्षर करना है। 

दूसरा तरीका ITR-V की हार्ड कॉपी पर हस्ताक्षर करके उसे सीपीसी, बंगलूरू भेजने का है। 

तीसरा तरीका इलेक्ट्रॉनिक सत्यापन कोड (EVC) की नई प्रणाली का प्रयोग करना है। करदाता चार तरीकों से EVC प्राप्त कर सकते हैं नेट बैंकिंग द्वारा, आधार संख्या द्वारा, एटीएम द्वारा या आयकर विभाग की ई-फाइलिंग वेबसाइट द्वारा। 

ईवीसी प्राप्त करने के तरीके

1. नेट बैंकिंग के माध्यम से EVC: इस स्थिति में, आयकर विभाग से पंजीकृत कुछ निर्दिष्ट बैंक अपने खाताधारकों को ई-फाइलिंग वेबसाइट पर प्रत्यक्ष संपर्क प्रदान करते हैं। ई-फाइलिंग विकल्प पर क्लिक करने पर, खाताधारक ई-फाइलिंग वेबसाइट पर पहुंच जाएगा जहां वह EVC बना सकता है। बनाया गया EVC करदाता के पंजीकृत ई-मेल आईडी और मोबाइल नंबर पर पहुंच जाएगा, जिसे आयकर रिटर्न के सत्यापन के लिए प्रयोग किया जा सकता है।

2. आधार संख्या के माध्यम से: करदाता EVC बनाने के लिए ई-फाइलिंग वेबसाइट पर अपनी आधार संख्या को अपने पैन से संबद्ध कर सकते हैं। एक बार आधार संख्या के पैन नंबर से संबद्ध हो जाने पर, वन टाइम पासवर्ड (OPT) बन जाएगा और करदाता के मोबाइल नंबर पर भेज दिया जाएगा।

3. एटीएम के माध्यम से: सभी करदाता एटीएम के माध्यम से EVC बना सकते हैं यदि करदाता का एटीएम कार्ड पैन से वैधीकृत बैंक खाते से संबद्ध है और बैंक भी आयकर विभाग से पंजीकृत है। करदाता अपने डेबिट/क्रेडिट कार्ड का प्रयोग करके पंजीकृत बैंक के एटीएम से संपर्क कर सकता है। बैंक यह अनुरोध ई-फाइलिंग वेबसाइट को सूचित करेगा जो EVC जारी करेगा और EVC को पंजीकृत मोबाइल नंबर पर भेजेगा।

4. आयकर विभाग की ई-फाइलिंग वेबसाइट से: करदाता आयकर विभाग की ई-फाइलिंग वेबसाइट incometaxindiaefiling.gov.in का 
प्रयोग करते हुए भी EVC बना सकते हैं। हालांकि यह सुविधा उन्हीं को उपलब्ध है जिनकी कुल य 5 लाख रुपये या इससे कम है और वह आयकर रिफंड का दावा नहीं कर रहे हैं।

EVC सत्यापन एक वैकल्पिक प्रक्रिया है। यदि करदाता चाहे तो वह ITR-V को भौतिक रूप से सीपीसी, बंगलूरू को भेजना जारी रख सकता है।

Monday 10 August 2015

सकारात्मक रहे सकारात्मक जिए...

ये कहानी आपके जीने की सोच बदल देगी

एक दिन एक किसान का बैल कुएँ में गिर गया
वह बैल घंटों ज़ोर -ज़ोर से रोता रहा और किसान सुनता रहा और विचार करता रहा कि उसे क्या करना चाहिऐ और क्या नहीं।
अंततः उसने निर्णय लिया कि चूंकि बैल काफी बूढा हो चूका था अतः उसे बचाने से कोई लाभ होने वाला नहीं था और इसलिए उसे कुएँ में ही दफना देना चाहिऐ।
किसान ने अपने सभी पड़ोसियों को मदद के लिए बुलाया सभी ने एक-एक फावड़ा पकड़ा और कुएँ में मिट्टी डालनी शुरू कर दी।
जैसे ही बैल कि समझ में आया कि यह क्या हो रहा है वह और ज़ोर-ज़ोर से चीख़ चीख़ कर रोने लगा और फिर ,अचानक वह आश्चर्यजनक रुप से शांत हो गया।
सब लोग चुपचाप कुएँ में मिट्टी डालते रहे तभी किसान ने कुएँ में झाँका तो वह आश्चर्य से सन्न रह गया....
अपनी पीठ पर पड़ने वाले हर फावड़े की मिट्टी के साथ वह बैल एक आश्चर्यजनक हरकत कर रहा था वह हिल-हिल कर उस मिट्टी को नीचे गिरा देता था और फिर एक कदम बढ़ाकर उस पर चढ़ जाता था।
जैसे-जैसे किसान तथा उसके पड़ोसी उस पर फावड़ों से मिट्टी गिराते वैसे -वैसे वह हिल-हिल कर उस मिट्टी को गिरा देता और एक सीढी ऊपर चढ़ आता जल्दी ही सबको आश्चर्यचकित करते हुए वह बैल कुएँ के किनारे पर पहुंच गया और फिर कूदकर बाहर भाग गया।

ध्यान रखे
आपके जीवन में भी बहुत तरह से मिट्टी फेंकी जायेगी बहुत तरह की गंदगी आप पर गिरेगी जैसे कि ,
आपको आगे बढ़ने से रोकने के लिए कोई बेकार में ही आपकी आलोचना करेगा
कोई आपकी सफलता से ईर्ष्या के कारण आपको बेकार में ही भला बुरा कहेगा
कोई आपसे आगे निकलने के लिए ऐसे रास्ते अपनाता हुआ दिखेगा जो आपके आदर्शों के विरुद्ध होंगे...
ऐसे में आपको हतोत्साहित हो कर कुएँ में ही नहीं पड़े रहना है बल्कि साहस के साथ हर तरह की गंदगी को गिरा देना है और उससे सीख ले कर उसे सीढ़ी बनाकर बिना अपने आदर्शों का त्याग किये अपने कदमों को आगे बढ़ाते जाना है।

सकारात्मक रहे
सकारात्मक जिए...

Saturday 8 August 2015

Happy world family day

Happy world family day

"परिवार" से बड़ा कोई
            "धन" नहीं!
            "पिता" से बड़ा कोई
            "सलाहकार" नहीं!
            "माँ" की छाव से बड़ी
             कोई "दुनिया" नहीं!
            "भाई" से अच्छा कोई 
            "भागीदार" नहीं!
            "बहन" से बड़ा कोई
            "शुभचिंतक" नहीं!
            "पत्नी" से बड़ा कोई
            "दोस्त" नहीं
                    इसलिए
            "परिवार" के बिना
            "जीवन" नहीं!!!

•"परिवार में"- कायदा नही परन्तु व्यवस्था होती है।
•"परिवार में"- सूचना नहीं परन्तु समझ होती है।
•"परिवार में"- कानून नहीं परन्तु अनुशासन होता है।
•"परिवार मे"- भय नहीं परन्तु भरोसा होता है।
• "परिवार मे"- शोषण नहीं परन्तु पोषण होता है।
•"परिवार मे"- आग्रह नही परन्तु आदर होता है।
•"परिवार मे"- सम्पर्क नही परन्तु सम्बन्ध होता है ।
•"परिवार मे"- अर्पण नही परन्तु समर्पण होता है।
Today is World Family Day

Ultra-Modern Thought for the day-

Ultra-Modern Thought for the day-

ज़रुरत से ज़्यादा भगवान को याद मत किया करो क्योंकि...

किसी दिन भगवान ने याद कर लिया तो..??

लेने के देने पड़ जायेंगे ।

"काम ऐसे करो कि लोग आपको....
.
.
किसी दूसरे काम के लिए बोलें ही नहीं"

आज के जमाने में सत्संग उसी संत का बढ़िया रहता है, जिसके पंडाल में गर्म पोहा, समोसा जलेबी और अदरक वाली चाय मिले।

वरना ज्ञान तो अब ऑनलाइन उपलब्ध है ।

जिस पुरुष ने आज के समय में बीवी, नौकरी और स्मार्टफोन के बीच में सामंजस्य बैठा लिया हो, वह पुरुष नहीं महापुरुष कहलाता है ।

आज सबसे बड़ी कुर्बानी वह होती है, जब हम अपना फोन चार्जिंग से निकाल कर किसी और का फोन लगा दें ।

“दुनिया में हर चीज मिल जाती है..

सिर्फ अपनी गलती नहीं मिलती”

आसमान छूने के लिए दिवाली के रॉकेट को भी "बोतल" की जरूरत पड़ती है ।
तो फिर इंसान क्या चीज है ?

आप कितने ही अच्छे काम कर लें, लेकिन लोग उसे ही याद करते हैं,

जो उधार लेकर मरा हो ।

यदि पेड़ों से wi-fi के सिगनल मिलते...
तो हम खूब पेड़ लगाते ।

अफसोस कि वे हमें सिर्फ आक्सीजन देते हैं ।

आजकल माता-पिता को बस दो ही चिंताएं हैं...
इंटरनेट पर उनका बेटा क्या डाउनलोड कर रहा है....
और...

बेटी क्या अपलोड कर रही है ।

हर एक इंसान हवा में उड़ता फिरता है,

फिर भी ना जाने जमीन पर इतनी भीड़ क्यों है ?

जंगल में चरने गया बैल, दोस्तों के साथ पार्टी में बैठा पुरुष और ब्यूटी पार्लर में गयी महिला..

जल्दी वापस नहीं आते ।।

जब आप किसी चीज को पूरी शिद्दत से पाने की ख्वाहिश या कोशिश करते हैं, तो वह चीज
.
.
.
.
उसी शिद्दत से कुछ ज्यादा ही एटीट्यूड दिखाने लगती है।।

Thursday 6 August 2015

वृद्धाश्रम की कल्पना भी नहीं

अगर विवाह के पश्चात भी माँ पापा को साथ रखने के अधिकार बेटी के पास होते,
तो मेरे दावा है मेरे दोस्तों इस संसार में एक भी व्रद्ध आश्रम नही होते.

और मैं यह कहूँ कि विवाह पश्चात् वही बेटी जो माँ पापा को अपने साथ रख सकती है यदि वही अपने सास ससुर को माँ पापा की तरह रख ले तो मेरा दावा और भी पुख्ता है की इस संसार में कोई वृद्धाश्रम की कल्पना भी नहीं कर पाता।

अगर में सही हूँ तो समर्थन कीजिये

ध्यान दे- अब प्रोबेशनर ट्रेनी को मिलेंगे नियमित कर्मचारी के समान वेतन-भत्त

अब प्रोबेशनर ट्रेनी को मिलेंगे नियमित कर्मचारी के समान वेतन-भत्ते

हाईकोर्ट ने सरकारी नौकरी में नियुक्त होने वाले कर्मचारियों को दो साल तक प्रोबेशन अवधि के दौरान स्थाई मानदेय देने के नियम असंवैधानिक मानकर निरस्त कर दिया है। कोर्ट ने सरकार को नियमित व तदर्थ आधार पर नियुक्त होने वाले सभी कर्मचारियों को दो साल की प्रोबेशन अवधि में नियमित कर्मचारियों के समान वेतन व सभी भत्ते देने के आदेश दिए हैं। 

ऐसे सभी कर्मचारियों का जीपीएफ  भी काटा जाएगा तथा प्रोबेशन अवधि समाप्त होने पर दो साल की प्रोबेशन अवधि वार्षिक वेतन वृद्वि व आकस्मिक अवकाश के लिए भी मान्य होगी।

मुख्य न्यायाधीश सुनील अंबवानी व न्यायाधीश वी.एस.सिराधना ने यह आदेश प्रार्थी गोपाल कुमावत की याचिका स्वीकार करते हुए दिए।

कोर्ट ने प्रार्थी को प्रथम नियुक्ति तारीख से नियमित होने की अवधि तक की अंतर राशि अदा करने के साथ ही 10 हजार रुपए बतौर खर्चे के देने के आदेश दिए हैं।

कोर्ट ने सेवा नियमों में संशोधन करने वाली 13 मार्च,2006 की अधिसूचना को संविधान के अनुच्देद 14,16,21,23 व 38 के विपरीत व संविधान की आत्मा के विपरीत माना है।

बेगार व जबरन मजदूरी करवा रही है सरकार ही-
जीवित रहने के लिए दिए जाने वाले भत्ते नहीं देना संविधान के अनुच्छेद-14,16,23 व 38 के तहत व नीति निर्देशक तत्वों के ही विपरीत है। 

प्रोबेशनर ट्रेनी को न्यूनतम मजदूरी से भी कम स्थाई मानदेय नहीं दिया जा सकता। एेसा करना बेगार है जो कि अनुच्छेद-23 के तहत गैर-संवैधानिक है। 

सरकार आदर्श नियोक्ता होने के कारण समान काम के लिए वेतन देने में दबाव नहीं कर सकती।

विशेष पद देते हैं क्या ?
दो साल की प्रोबेशन अवधि के बाद स्थाई होने पर कर्मचारी को कोई विशेष पद नहीं दिया जाता बल्कि वह समान पद पर समान काम ही करता रहता है। एेसे में दो साल की प्रोबेशन अवधि को वार्षिक वेतन वृद्वि के लिए नहीं गिनना अनुचित है।

यह विश्वास करना मुश्किल है कि 2006 में भी कोई व्यक्ति तीन हजार रुपए महीने की आय में जीवित रह सकता होगा और अब तो महंगाई के कारण तो संभव ही नहीं है। इसलिए ही सरकारी कर्मचारियों को महंगाई भत्ता दिया जाता है। 

प्रोबेशन ट्रेनी के तौर पर काम करने वाले सरकारी कर्मचारियों से जीवित रहने को भी या उधार मांगने की आशा नहीं की जा सकती।

स्थाई करने का अधिकार तो सुरक्षित है
राजस्थान में स्वीकृत पद पर नियमित तौर पर चयनित होने वाले स्थाई या तदर्थ कर्मचारी चाहे वह चतुर्थ श्रेणी हो या प्रशासनिक अफसर या प्रोफेसर आदि सभी को दो साल के प्रोबेशन ट्रेनी के तौर पर एक निश्चित स्थाई मानदेय दिया जात रहा है। 

प्रोबेशन ट्रेनी होने के आधार पर वेतन- भत्तों में भेद भाव नहीं हो सकता। क्योंकि प्रोबेशन अवधि के बाद स्थाई करने या नहीं करने का सरकार को अधिकार है। 

वेतन आयोग की सिफारिश भी नहीं
सरकारी कर्मचारियों को वेतन आयोग की सिफारिशों के अनुरुप वेतन भत्ते मिलते हैं। एेसा कोई सबूत पेश नहीं है जिससे साबित होता हो कि आयोग ने प्रोबेशन अवधि में स्थाई व निश्चित मानदेय देने की सिफारिश की हो। केंद्र सहित किसी अन्य राज्य में एेसी प्रथा नहीं है।

दुष्ट प्रथा है यह
कोर्ट ने कहा है कि केंद्र सहित किसी अन्य राज्य में एेसी प्रथा नहीं है। राजस्थान सरकार ने सरकारी नौकरी के आकर्षण के चलते एेसी दुष्ट प्रथा अपनाई है।