Search This Blog

Wednesday 2 April 2014

कृपया खम्मा घणी का प्रयोग न करें क्योंकि





राजपूतो में "खम्माघणी" शब्द
का प्रचलन क्षात्र - धर्मं के खिलाफ
है , अतः इसकी जगह अपने इष्ट
का नाम ( जैसे- जय एकलिंग जी , जय
चारभुजा जी, जय श्री कृष्णा ,,)
लेकर अभिवादन करे ..
आज हमारे समाज में खम्माघणी नाम
का शब्द बहुत ही ज्यादा प्रचलन में है
और काफी तेजी से उन जगहो में
भी प्रचलित होता जा रहा है
जहां पर कुछ समय पहले इसके बारे में
किसी ने सुना भी नहीं होगा , इसके
अलावा इस शब्द को प्रचारित करने
में धारावाहिको और
फिल्मो का भी बहुत बङा हाथ
रहा है , तो आईये जानते हैं
"खम्माघणी" शब्द का इतिहास
और ...इसकी उत्पति के बारे में ।
हमने जब इस शब्द के बारे में गहराई से
जांच पङताल कि तो... हमें
पता चला कि इस शब्द का प्रयोग
डुमो और ढोलियो के द्वारा राजपुत
सिरदारो को अभिवादन करने के
लिये किया जाता था ।
और जोधपुर दरबार के सामने
सर्वप्रथम एक ढोली द्वारा इस शब्द
का प्रयोग किया गया था जिसके
बाद राजपुत सरदारो ने भी धिरे
धिरे ईसे अपनाना शुरु कर दिया और
दरबार को खम्माघणी से अभिवादन
करने लगे।
(अगर हम इस शब्द को परिभाषित
करे
तो इसकी निम्न परिभाषा बनती है
। "खम्माघणी हुकुम अर्थात हुकुम में
आपके सामने बोल रहा हुं इसके लिये
क्षमा चाहता हुं"।)
इस प्रकार जो सिरदार अपने
कुलदेवता या कुलदेवी का नाम लेकर
एक दुसरे से अभिवादन करते थे उन्होने
खम्माघणी मतलब अकारण ही एक
दुसरे से क्षमा मांगना शुरु कर
दिया ,जोकि क्षात्र धर्म के
भी खिलाफ है। पिछलै 3-4 दशको में
तो इस शब्द ने हमारी अज्ञानता के
कारण ईतनी तरक्की की है की हर
घर में ईसका प्रयोग धङल्ले से होने
लगा है जो कि चिन्ता का विषय है
क्योंकी जितना ज्यादा प्रयोग
ईस शब्द का होता है , उतने ही हमारे
कुलदेवता हमसे दुर होते जाते हैं ।
अतः मेरा आप सभी हुकम से निवेदन है
कि आपसी सम्बोन्धन में
खम्माघणी शब्द के बजाए अपने
कुलदेवता या कुलदेवी के नाम से करें
ईससे देवता का स्मरण भी होता है
और मन को भी शान्ति मिलती है ।
ईसे ज्यादा से ज्यादा शेयर करे और
अपने घर के सदस्यो और
जो भी बन्ना या बाईसा हुकम
फेसबुक पर नहीं है लेकिन आपसे
निजी जीवन में जुङे हैं उन्हे भी बताय.


No comments:

Post a Comment