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Thursday 21 May 2015

असफलताओं को छुपाने के लिए हज़ार बहाने होते है लेकिन सफलता के लिए केवल 1 शुरुआत की ज़रूरत पड़ती है

असफलताओं को छुपाने के लिए हज़ार बहाने होते है लेकिन सफलता के लिए केवल 1 शुरुआत की ज़रूरत पड़ती है 1 बार ज़रूर पढ़ें
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1- मुझे उचित शिक्षा लेने का अवसर नही मिला...
उचित शिक्षा का अवसर फोर्ड मोटर्स के मालिक हेनरी फोर्ड को भी नही मिला ।
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2- मै इतनी बार हार चूका , अब हिम्मत नही...
अब्राहम लिंकन 15 बार चुनाव हारने के बाद राष्ट्रपति बने।
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3- मै अत्यंत गरीब घर से हूँ ...
पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम भी गरीब घर से थे ।
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4- बचपन से ही अस्वस्थ था...
आँस्कर विजेता अभिनेत्री मरली मेटलिन भी बचपन से बहरी व अस्वस्थ थी ।
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5 - मैने साइकिल पर घूमकर आधी ज़िंदगी गुजारी है...
निरमा के करसन भाई पटेल ने भी साइकिल पर निरमा बेचकर आधी ज़िंदगी गुजारी ।
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6- एक दुर्घटना मे अपाहिज होने के बाद मेरी हिम्मत चली गयी...
प्रख्यात नृत्यांगना सुधा चन्द्रन के पैर नकली है ।
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7- मुझे बचपन से मंद बुद्धि कहा जाता है...
थामस अल्वा एडीसन को भी बचपन से मंदबुद्धि कहा जता था।
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8- बचपन मे ही मेरे पिता का देहाँत हो गया था...
प्रख्यात संगीतकार ए.आर.रहमान के पिता का भी देहांत बचपन मे हो गया था।
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9- मुझे बचपन से परिवार की जिम्मेदारी उठानी पङी...
लता मंगेशकर को भी बचपन से परिवार की जिम्मेदारी उठानी पङी थी।
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10- मेरी लंबाई बहुत कम है...
सचिन तेंदुलकर की भी लंबाई कम है।
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11- मै एक छोटी सी नौकरी करता हूँ ,
इससे क्या होगा...
धीरु अंबानी भी छोटी नौकरी करते थे।
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12- मेरी कम्पनी एक बार दिवालिया हो चुकी है ,
अब मुझ पर कौन भरोसा करेगा...
दुनिया की सबसे बङी शीतल पेय निर्माता पेप्सी कोला भी दो बार दिवालिया हो चुकी है ।
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13- मेरा दो बार नर्वस ब्रेकडाउन हो चुका है ,
अब क्या कर पाउँगा...
डिज्नीलैंड बनाने के पहले वाल्ट डिज्नी का तीन बार नर्वस ब्रेकडाउन हुआ था।
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14- मेरी उम्र बहुत ज्यादा है...
विश्व प्रसिद्ध केंटुकी फ्राइड चिकेन के मालिक ने 60 साल की उम्र मे पहला रेस्तरा खोला था।
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15- मेरे पास बहुमूल्य आइडिया है पर लोग अस्वीकार कर देते है...
जेराँक्स फोटो कापी मशीन के आईडिया को भी ढेरो कंपनियो ने
अस्वीकार किया था पर आज परिणाम सामने है ।
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16- मेरे पास धन नही...
इन्फोसिस के पूर्व चेयरमैन नारायणमूर्ति के पास भी धन नही था
उन्हे अपनी पत्नी के गहने बेचने पङे।
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17- मुझे ढेरो बीमारियां है..
वर्जिन एयरलाइंस के प्रमुख भी अनेको बीमारियो मे थे |
राष्ट्रपति रुजवेल्ट के दोनो पैर काम नही करते थे।
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आज आप जहाँ भी है या कल जहाँ भी होगे
इसके लिए आप किसी और को जिम्मेदार नही ठहरा सकते ,
इसलिए आज चुनाव करिये - सफलता और सपने चाहिए
या खोखले बहाने ...
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Importance of life partner

One day, during an evening class for adults, the psychology Teacher entered the class and told students, “Let’s all play a game!” “ What Game?”
The Teacher asked one of the students to volunteer.

A lady, Aliza came forward.

The Teacher asked her to write 30 names of most important people in her life on blackboard.

Aliza wrote names of her family members, relatives, friends, her colleagues and her neighbors.

The Teacher told her to erase 3 names that Aliza considered most unimportant.
Aliza erased names of her colleagues.
The Teacher again told her to delete 5 more names. Aliza erased her neighbor's names.

This went on until there were just four names left on the blackboard. These were names of her mother, father, husband and the only son...

The entire class became silent  realizing that this wasn’t a game anymore for Aliza alone.

Now, The Teacher told her to delete two more names.

It was a very difficult choice for Aliza.
She unwillingly deleted her parents names.

“Please delete one more” said the Teacher.

Aliza became very nervous and with trembling hands and rears in eyes she deleted her son’s name. Aliza cried  painfully...

The Teacher told Aliza to take her seat.
After a while Teacher asked "why your husband?? The parents are the ones that nurtured you, and the son is the one you gave birth to ??? And you can always find another husband !!!"

Total silence in the class.
Everyone was curious to know her response.

Aliza calmly and slowly said, “One day my parents will pass away before me.
My son may also leave me when he grows old, for his studies or business or whatever reason. The only one who will truly share his entire life with me, is my Husband”.

All the students stood up and applauded for her for sharing this truth of life.

This is true. So always value your life partner, it's not only for husbands but wives as well.
God has united these two souls and it's on you now to nurture this relationship above all.

स्टेटस अपडेट करते समय रहें सावधान

�� सावधान �� सावधान �� सावधान ��

फेसबुक पर...वाट्सएप पर...आप स्टेटस अपडेट करते हैं। फोटोज पोस्ट करते हैं। लेकिन आप की ये सोशल अपडेटिंग स्मार्ट चोरों को भी उपडेट करती है क्या आप जानते हैं ?

'ऑन गोवा टूर विथ फॅमिली' ऐंसा अपडेट एयरपोर्ट से ही पोस्ट कर दिया गया। एक कॉमन फ्रेंड की एक्टिविटी से स्मार्ट चोरों की नजर में आया और चोरों ने घर खाली कर डाला।

' जन्मदिन पर उपहार में हीरे की अंगूठी मिली है, कल स्कूल में पहनकर जाऊँगी ' यह स्टेटस एक स्कूल गर्ल ने फेसबुक पर पोस्ट किया। अगले दिन स्कूल से घर आते समय उसी के फेसबुक फ्रेंड ने अंगूठी लूट ली।

अपनी दादी के पुराने गहनों के रखरखाव में मदद कर रही नातिन ने उन गहनों की तस्वीरें खींचकर ' फीलिंग रिच ' कैप्शन के साथ फेसबुक पर अपलोड कर दी। रात को ही दादी के घर चोरी हो गयी।

' एक कार्यक्रम में शामिल होने इतने बजे अमुक स्थान पर जा रहे हैं ' इस स्टेटस ने भी चोरों को मौक़ा दे दिया।

' दो सप्ताह के लिए लंदन प्रवास पर जा रहे हैं ' इस स्टेटस का फायदा भी चोरों ने उठाया और फुरसत से खाली घर को लूटा।

देश विदेश में उपरोक्त जैसे ढेरों उदाहरण हैं। इसलिए जरूरी है कि सोशल एक्टिविटी में व्यस्त लोगों को सावधान किया जाए।

आजकल छुट्टियों का मौसम है। परिवार के साथ बाहर जाना या काम के सिलसिले में दौरे पर जाना ऐंसे समय एयरपोर्ट अथवा रेलवे स्टेशन आदि स्थानों पर आपके पास सोशल साइट्स पर चेक इन के लिए भरपूर समय होता है।यहीं आप चोरों को क्लू पोस्ट कर देते हैं जो आप के लिए घातक साबित होता है।

साइबर क्राइम के विशेषज्ञों का मानना है कि, बाहर जाकर आप जो स्टेटस और फोटोज शेयर करते रहते हैं वो चोरों के लिए वरदान बन जाता है।

इसलिए अपने घूमने की जगहों पर जाकर साइट्स पर चेक इन करना, फोटो अपलोड करना बंद कीजिये। तब ये डिजिटल युग के स्मार्ट चोर आप से दूर रहेंगे।

स्टेटस अपडेट टालिए।

आप की सोशल प्रोफाइल पर चोरों की नजर रहती है।
इसलिए टूर समाप्त होने के बाद घर आकर अपनी तमाम उपलब्धियाँ, अपने अनुभव, अनोखी तस्वीरें सब कुछ आराम से, फुरसत से शेयर कीजिये।

आप की अनुपस्थिति में आपका सोशल अकाउंट स्मार्ट चोरों के लिए निमंत्रण पत्र का काम कर सकता है ये हमेशा अपने ध्यान में रखिये और ऐंसी कोई पोस्ट मत कीजिये जो चोरों का काम आसान कर दे।

जनहित में जारी.........
द्वारा.....
एडवोकेट ललित पुरोहित
जोधपुर।
( साइबर कानून और सुरक्षा विशेषज्ञ )

Monday 18 May 2015

I love this msg, its toooo goood

I love this msg, its toooo goood,  

* Worries at the start of the day means u r still alive... 

* Clothes that don't fit means u have a good appetite... 

* Tears in ur eyes means there is somebody u care for... 

* The mess to clean after party means u have friends around u... 

* Roof that needs fixing means u have got a house...

* Taxes to pay means u r not unemployed... 

* Msg on ur mobile means there is somebody who remembers u... 

Let's be optimistic in life because everything around u happens for a reason..

 Keep Smiling 

घंटानाद का विज्ञान

एक ज्ञान की बात .........
.
मंदिर में प्रवेश करने वाला प्रत्येक भक्त पहले घंटानाद करता है और मंदिर में प्रवेश करता है।
   क्या कारण है इसके पीछे?
इसका एक वैज्ञानिक कारण है..
जब हम बृहद घंटे के नीचे खड़े होकर सर ऊँचा करके हाथ उठाकर घंटा बजाते हैं, तब प्रचंड घंटानाद होता है।
यह ध्वनि 330 मीटर प्रति सेकंड के वेग से अपने उद्गम स्थान से दूर जाती है,
ध्वनि की यही शक्ति कंपन के माध्यम से प्रवास करती है।
आप उस वक्त घंटे के नीचे खडे़ होते हैं। अतः ध्वनि का नाद आपके (सिर के ठीक ऊपर) में प्रवेश कर शरीरमार्ग से भूमि में प्रवेश करता है।यह ध्वनि प्रवास करते समय आपके मन में (मस्तिष्क में) चलने वाले असंख्य विचार, चिंता, तनाव, उदासी, मनोविकार..
इन समस्त नकारात्मक विचारों को अपने साथ ले जाती हैं,
और
आप निर्विकार अवस्था में परमेश्वर के सामने जाते हैं। तब
आपके भाव शुद्धतापूर्वक परमेश्वर को समर्पित होते हैं।
व घंटे के नाद की तरंगों के अत्यंत तीव्र के आघात से आस-पास के वातावरण के व हमारे शरीर के सूक्ष्म कीटाणुओं का नाश होता है, जिससे वातावरण मे शुद्धता रहती है,
हमें स्वास्थ्य लाभ होता है।
इसीलिए मंदिर मे प्रवेश करते समय घंटानाद अवश्य करें,
और
थोड़ा समय घंटे के नीचे खडे़ रह कर घंटानाद का आनंद अवश्य लें।आप चिंतामुक्त व शुचिर्भूत बनेगें।
आप का मस्तिष्क ईश्वर की दिव्य ऊर्जा ग्रहण करने हेतु तैयार होगा। ईश्वर की दिव्य ऊर्जा व मंदिर गर्भ की
दिव्य ऊर्जाशक्ति आपका मस्तिष्क ग्रहण करेगा।
आप प्रसन्न होंगे और शांति मिलेगी..........

कर्मों  का फल

.....कर्मों  का फल तो झेलना पडे़गा।  
➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖
...
एक दृष्टान्त:-

भीष्म पितामह रणभूमि में
शरशैया पर पड़े थे।
हल्का सा भी हिलते तो शरीर में घुसे बाण भारी वेदना के साथ रक्त की पिचकारी सी छोड़ देते।

ऐसी दशा में उनसे मिलने सभी आ जा रहे थे। श्री कृष्ण भी दर्शनार्थ आये। उनको देखकर भीष्म जोर से हँसे और कहा.... आइये जगन्नाथ।.. आप तो सर्व ज्ञाता हैं। सब जानते हैं, बताइए मैंने ऐसा क्या पाप किया था जिसका दंड इतना भयावह मिला?

कृष्ण: पितामह! आपके पास वह शक्ति है, जिससे आप अपने पूर्व जन्म देख सकते हैं। आप स्वयं ही देख लेते।

भीष्म: देवकी नंदन! मैं यहाँ अकेला पड़ा और कर ही क्या रहा हूँ?  मैंने सब देख लिया ...अभी तक 100 जन्म देख चुका हूँ। मैंने उन 100 जन्मो में एक भी कर्म ऐसा नहीं किया जिसका परिणाम ये हो कि मेरा पूरा शरीर बिंधा पड़ा है, हर आने वाला क्षण ...और पीड़ा लेकर आता है।

कृष्ण: पितामह ! आप एक भव और पीछे जाएँ, आपको उत्तर मिल जायेगा।

भीष्म ने ध्यान लगाया और देखा कि 101 भव पूर्व वो एक नगर के राजा थे। ...एक मार्ग से अपनी सैनिकों की एक टुकड़ी के साथ कहीं जा रहे थे।
एक सैनिक दौड़ता हुआ आया और बोला "राजन!  मार्ग में एक सर्प पड़ा है। यदि हमारी टुकड़ी उसके ऊपर से गुजरी तो वह मर जायेगा।"

भीष्म ने कहा " एक काम करो। उसे किसी लकड़ी में लपेट कर झाड़ियों में फेंक दो।"

सैनिक ने वैसा ही किया।...उस सांप को एक लकड़ी में लपेटकर झाड़ियों में फेंक दिया।

दुर्भाग्य से झाडी कंटीली थी। सांप उनमें फंस गया। जितना प्रयास उनसे निकलने का करता और अधिक फंस जाता।... कांटे उसकी देह में गड गए। खून रिसने लगा। धीरे धीरे वह मृत्यु के मुंह में जाने लगा।... 5-6 दिन की तड़प के बाद उसके प्राण निकल पाए।
....
भीष्म: हे त्रिलोकी नाथ। आप जानते हैं कि मैंने जानबूझ कर ऐसा नहीं किया। अपितु मेरा उद्देश्य उस सर्प की रक्षा था। तब ये परिणाम क्यों?

कृष्ण: तात श्री!  हम जान बूझ कर क्रिया करें या अनजाने में ...किन्तु क्रिया तो हुई न। उसके प्राण तो गए ना।... ये विधि का विधान है कि जो क्रिया हम करते हैं उसका फल भोगना ही पड़ता है।.... आपका पुण्य इतना प्रबल था कि 101 भव उस पाप फल को उदित होने में लग गए। किन्तु अंततः वह हुआ।....

जिस जीव को लोग  जानबूझ कर मार रहे हैं... उसने जितनी पीड़ा सहन की.. वह  उस जीव (आत्मा) को इसी जन्म अथवा अन्य किसी जन्म में अवश्य भोगनी होगी।

ये बकरे, मुर्गे, भैंसे, गाय, ऊंट आदि  वही जीव हैं जो ऐसा वीभत्स कार्य पूर्व जन्म में करके आये हैं।... और इसी कारण पशु बनकर, यातना झेल रहे हैं। ... ...

...अतः हर दैनिक क्रिया सावधानी पूर्वक करें।.

Saturday 16 May 2015

कर्मों  का फल

.....कर्मों  का फल तो झेलना पडे़गा।  
➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖
...
एक दृष्टान्त:-

भीष्म पितामह रणभूमि में
शरशैया पर पड़े थे।
हल्का सा भी हिलते तो शरीर में घुसे बाण भारी वेदना के साथ रक्त की पिचकारी सी छोड़ देते।

ऐसी दशा में उनसे मिलने सभी आ जा रहे थे। श्री कृष्ण भी दर्शनार्थ आये। उनको देखकर भीष्म जोर से हँसे और कहा.... आइये जगन्नाथ।.. आप तो सर्व ज्ञाता हैं। सब जानते हैं, बताइए मैंने ऐसा क्या पाप किया था जिसका दंड इतना भयावह मिला?

कृष्ण: पितामह! आपके पास वह शक्ति है, जिससे आप अपने पूर्व जन्म देख सकते हैं। आप स्वयं ही देख लेते।

भीष्म: देवकी नंदन! मैं यहाँ अकेला पड़ा और कर ही क्या रहा हूँ?  मैंने सब देख लिया ...अभी तक 100 जन्म देख चुका हूँ। मैंने उन 100 जन्मो में एक भी कर्म ऐसा नहीं किया जिसका परिणाम ये हो कि मेरा पूरा शरीर बिंधा पड़ा है, हर आने वाला क्षण ...और पीड़ा लेकर आता है।

कृष्ण: पितामह ! आप एक भव और पीछे जाएँ, आपको उत्तर मिल जायेगा।

भीष्म ने ध्यान लगाया और देखा कि 101 भव पूर्व वो एक नगर के राजा थे। ...एक मार्ग से अपनी सैनिकों की एक टुकड़ी के साथ कहीं जा रहे थे।
एक सैनिक दौड़ता हुआ आया और बोला "राजन!  मार्ग में एक सर्प पड़ा है। यदि हमारी टुकड़ी उसके ऊपर से गुजरी तो वह मर जायेगा।"

भीष्म ने कहा " एक काम करो। उसे किसी लकड़ी में लपेट कर झाड़ियों में फेंक दो।"

सैनिक ने वैसा ही किया।...उस सांप को एक लकड़ी में लपेटकर झाड़ियों में फेंक दिया।

दुर्भाग्य से झाडी कंटीली थी। सांप उनमें फंस गया। जितना प्रयास उनसे निकलने का करता और अधिक फंस जाता।... कांटे उसकी देह में गड गए। खून रिसने लगा। धीरे धीरे वह मृत्यु के मुंह में जाने लगा।... 5-6 दिन की तड़प के बाद उसके प्राण निकल पाए।
....
भीष्म: हे त्रिलोकी नाथ। आप जानते हैं कि मैंने जानबूझ कर ऐसा नहीं किया। अपितु मेरा उद्देश्य उस सर्प की रक्षा था। तब ये परिणाम क्यों?

कृष्ण: तात श्री!  हम जान बूझ कर क्रिया करें या अनजाने में ...किन्तु क्रिया तो हुई न। उसके प्राण तो गए ना।... ये विधि का विधान है कि जो क्रिया हम करते हैं उसका फल भोगना ही पड़ता है।.... आपका पुण्य इतना प्रबल था कि 101 भव उस पाप फल को उदित होने में लग गए। किन्तु अंततः वह हुआ।....

जिस जीव को लोग  जानबूझ कर मार रहे हैं... उसने जितनी पीड़ा सहन की.. वह  उस जीव (आत्मा) को इसी जन्म अथवा अन्य किसी जन्म में अवश्य भोगनी होगी।

ये बकरे, मुर्गे, भैंसे, गाय, ऊंट आदि  वही जीव हैं जो ऐसा वीभत्स कार्य पूर्व जन्म में करके आये हैं।... और इसी कारण पशु बनकर, यातना झेल रहे हैं। ... ...

...अतः हर दैनिक क्रिया सावधानी पूर्वक करें।.

कर्मों  का फल

.....कर्मों  का फल तो झेलना पडे़गा।  
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एक दृष्टान्त:-

भीष्म पितामह रणभूमि में
शरशैया पर पड़े थे।
हल्का सा भी हिलते तो शरीर में घुसे बाण भारी वेदना के साथ रक्त की पिचकारी सी छोड़ देते।

ऐसी दशा में उनसे मिलने सभी आ जा रहे थे। श्री कृष्ण भी दर्शनार्थ आये। उनको देखकर भीष्म जोर से हँसे और कहा.... आइये जगन्नाथ।.. आप तो सर्व ज्ञाता हैं। सब जानते हैं, बताइए मैंने ऐसा क्या पाप किया था जिसका दंड इतना भयावह मिला?

कृष्ण: पितामह! आपके पास वह शक्ति है, जिससे आप अपने पूर्व जन्म देख सकते हैं। आप स्वयं ही देख लेते।

भीष्म: देवकी नंदन! मैं यहाँ अकेला पड़ा और कर ही क्या रहा हूँ?  मैंने सब देख लिया ...अभी तक 100 जन्म देख चुका हूँ। मैंने उन 100 जन्मो में एक भी कर्म ऐसा नहीं किया जिसका परिणाम ये हो कि मेरा पूरा शरीर बिंधा पड़ा है, हर आने वाला क्षण ...और पीड़ा लेकर आता है।

कृष्ण: पितामह ! आप एक भव और पीछे जाएँ, आपको उत्तर मिल जायेगा।

भीष्म ने ध्यान लगाया और देखा कि 101 भव पूर्व वो एक नगर के राजा थे। ...एक मार्ग से अपनी सैनिकों की एक टुकड़ी के साथ कहीं जा रहे थे।
एक सैनिक दौड़ता हुआ आया और बोला "राजन!  मार्ग में एक सर्प पड़ा है। यदि हमारी टुकड़ी उसके ऊपर से गुजरी तो वह मर जायेगा।"

भीष्म ने कहा " एक काम करो। उसे किसी लकड़ी में लपेट कर झाड़ियों में फेंक दो।"

सैनिक ने वैसा ही किया।...उस सांप को एक लकड़ी में लपेटकर झाड़ियों में फेंक दिया।

दुर्भाग्य से झाडी कंटीली थी। सांप उनमें फंस गया। जितना प्रयास उनसे निकलने का करता और अधिक फंस जाता।... कांटे उसकी देह में गड गए। खून रिसने लगा। धीरे धीरे वह मृत्यु के मुंह में जाने लगा।... 5-6 दिन की तड़प के बाद उसके प्राण निकल पाए।
....
भीष्म: हे त्रिलोकी नाथ। आप जानते हैं कि मैंने जानबूझ कर ऐसा नहीं किया। अपितु मेरा उद्देश्य उस सर्प की रक्षा था। तब ये परिणाम क्यों?

कृष्ण: तात श्री!  हम जान बूझ कर क्रिया करें या अनजाने में ...किन्तु क्रिया तो हुई न। उसके प्राण तो गए ना।... ये विधि का विधान है कि जो क्रिया हम करते हैं उसका फल भोगना ही पड़ता है।.... आपका पुण्य इतना प्रबल था कि 101 भव उस पाप फल को उदित होने में लग गए। किन्तु अंततः वह हुआ।....

जिस जीव को लोग  जानबूझ कर मार रहे हैं... उसने जितनी पीड़ा सहन की.. वह  उस जीव (आत्मा) को इसी जन्म अथवा अन्य किसी जन्म में अवश्य भोगनी होगी।

ये बकरे, मुर्गे, भैंसे, गाय, ऊंट आदि  वही जीव हैं जो ऐसा वीभत्स कार्य पूर्व जन्म में करके आये हैं।... और इसी कारण पशु बनकर, यातना झेल रहे हैं। ... ...

...अतः हर दैनिक क्रिया सावधानी पूर्वक करें।.

Thursday 14 May 2015

Why, I will not waive my gas subsidy: An Open Letter to the Prime Minister

Why, I will not waive my gas subsidy: An Open Letter to the Prime Minister

 

SUMITH S. RAO

Respected Sir:

 

You have asked the rich and affluent people of India to waive off their share of subsidy on gas cylinders used by them in their homes and help in nation building.

I, for one would definitely prescribe to your view and gladly do so. In return, I would like all of you esteemed gentlemen and ladies who run our great country to also reciprocate our generous offer.

If only, every corporator, MLA, MP, and Minister could also waive off his gas subsidy, we the people of India would be very proud of you and salute you. You would be setting an example to the citizens of India.

Most of you have declared incomes running into a few crores while contesting the elections. When will the day come when you will think of our poor brethren and waive off all the perks that you enjoy because of your position.When will you stop voting unanimously for a pay hike for yourselves, while bitterly fighting against all other issues in Parliament? When will we see you act as responsible citizens and fight over issues rather than take party based decisions?

Let me tell you, dear Sir, the Chancellor of a super power like Germany Ms. Angela Merkel rides on a public train to work, whereas in our country everyone from the Prime Minister, to the Members of Parliament, even down to the Zilla Panchayat President is allocated a car which is paid for from the coffers of our country which is filled generously by the tax payers money.

You incur thousands of rupees worth of telephone bills, electricity bills, free accommodation in luxury bungalows, avail free travel on public transportation, go on foreign jaunts on flimsy excuses and we the people of India pay for it.When will you be a proud Indian and pay for all these facilities availed by you?

You get admitted to luxury hospitals for even a headache and especially when a probe is launched against you for any misdemeanor.Even there, you get the best beds and facilities free of charge. Pray, tell me, Sir “When will you pay for these privileges?”

You travel in air conditioned railway coaches and fly first class in planes even when you are not on official duty. It is us, the citizens of India who pay the fare for you.

Everyone, who is anybody, stakes his claim to fame by clamouring for “Z Class” security when the actual risk assessment for that person is zero. We, the people of India pay a fortune for your security. Alas, what a travesty of our times. That you who should be protecting the nation are being protected by the common man at his cost.

There are people in India who cannot even afford one meal a day and do not even have the strength to complain about it. Sadly, while you enjoy a cup of coffee bought at a princely sum of Rupees One or a full meal at Rupees Twelve at the Parliament canteen in air conditioned comfort and cannot be bothered about these trivial issues. When shall you pay the full cost of a meal without passing on the bill to your countrymen?

Sir, I am just an ordinary citizen of India who dutifully pays his Income tax, Service Tax, Value Added Tax, Wealth Tax, Corporation Tax, Automobile Registration Tax and Property Tax which goes up to nearly 50 percent of our hard earned money while you enjoy the benefits of these taxes and live a privileged life because every citizen of India pays for your privileges.

The day all of you forego and waive all the unnecessary perquisites bestowed upon you by laws enacted by you would be a proud one in our nation’s history.

 

The day, you gentlemen who have been elected to power by the people to govern our nation become responsible citizens of INDIA will be a milestone in our history.

 

That day, all of us will definitely waive off our gas subsidy.

Yours sincerely,
An honest and dutiful citizen

 Sumith S. Rao is a well known city based businessman and a former President of the District Small Scale Industries Association.

छप्पन भोग क्यों लगाते है...???

भगवान को लगाए जाने वाले भोग
की बड़ी महिमा है |
इनके लिए 56 प्रकार के व्यंजन परोसे जाते हैं, जिसे
छप्पन भोग कहा जाता है |
यह भोग रसगुल्ले से शुरू होकर दही, चावल, पूरी,
पापड़ आदि से होते हुए इलायची पर जाकर खत्म
होता है |
अष्ट पहर भोजन करने वाले बालकृष्ण भगवान
को अर्पित किए जाने वाले छप्पन भोग के पीछे
कई रोचक कथाएं हैं |
ऐसा भी कहा जाता है
कि यशोदाजी बालकृष्ण को एक दिन में अष्ट पहर
भोजन कराती थी | अर्थात्...बालकृष्ण आठ बार
भोजन करते थे |
जब इंद्र के प्रकोप से सारे व्रज को बचाने के लिए
भगवान श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत
को उठाया था, तब लगातार सात दिन तक
भगवान ने अन्न जल ग्रहण नहीं किया |
आठवे दिन जब भगवान ने देखा कि अब इंद्र
की वर्षा बंद हो गई है,
सभी व्रजवासियो को गोवर्धन पर्वत से बाहर
निकल जाने को कहा, तब दिन में आठ प्रहर भोजन
करने वाले व्रज के नंदलाल कन्हैया का लगातार
सात दिन तक भूखा रहना उनके व्रज वासियों और
मया यशोदा के लिए बड़ा कष्टप्रद हुआ. भगवान के
प्रति अपनी अन्न्य श्रद्धा भक्ति दिखाते हुए
सभी व्रजवासियो सहित यशोदा जी ने 7 दिन
और अष्ट पहर के हिसाब से 7X8= 56
व्यंजनो का भोग बाल कृष्ण को लगाया |
गोपिकाओं ने भेंट किए छप्पन भोग...
श्रीमद्भागवत के अनुसार, गोपिकाओं ने एक माह
तक यमुना में भोर में ही न केवल स्नान किया,
अपितु कात्यायनी मां की अर्चना भी इस
मनोकामना से की, कि उन्हें नंदकुमार ही पति रूप
में प्राप्त हों |
श्रीकृष्ण ने
उनकी मनोकामना पूर्ति की सहमति दे दी |
व्रत समाप्ति और मनोकामना पूर्ण होने के
उपलक्ष्य में ही उद्यापन स्वरूप गोपिकाओं ने छप्पन
भोग का आयोजन किया |
छप्पन भोग हैं छप्पन सखियां...
ऐसा भी कहा जाता है कि गौलोक में भगवान
श्रीकृष्ण राधिका जी के साथ एक दिव्य कमल पर
विराजते हैं |
उस कमल की तीन परतें होती हैं...
प्रथम परत में "आठ",
दूसरी में "सोलह"
और
तीसरी में "बत्तीस पंखुड़िया" होती हैं |
प्रत्येक पंखुड़ी पर एक प्रमुख सखी और मध्य में
भगवान विराजते हैं |
इस तरह कुल पंखुड़ियों संख्या छप्पन होती है |
56 संख्या का यही अर्थ है |
-:::: छप्पन भोग इस प्रकार है ::::-
1. भक्त (भात),
2. सूप (दाल),
3. प्रलेह (चटनी),
4. सदिका (कढ़ी),
5. दधिशाकजा (दही शाक की कढ़ी),
6. सिखरिणी (सिखरन),
7. अवलेह (शरबत),
8. बालका (बाटी),
9. इक्षु खेरिणी (मुरब्बा),
10. त्रिकोण (शर्करा युक्त),
11. बटक (बड़ा),
12. मधु शीर्षक (मठरी),
13. फेणिका (फेनी),
14. परिष्टïश्च (पूरी),
15. शतपत्र (खजला),
16. सधिद्रक (घेवर),
17. चक्राम (मालपुआ),
18. चिल्डिका (चोला),
19. सुधाकुंडलिका (जलेबी),
20. धृतपूर (मेसू),
21. वायुपूर (रसगुल्ला),
22. चन्द्रकला (पगी हुई),
23. दधि (महारायता),
24. स्थूली (थूली),
25. कर्पूरनाड़ी (लौंगपूरी),
26. खंड मंडल (खुरमा),
27. गोधूम (दलिया),
28. परिखा,
29. सुफलाढय़ा (सौंफ युक्त),
30. दधिरूप (बिलसारू),
31. मोदक (लड्डू),
32. शाक (साग),
33. सौधान (अधानौ अचार),
34. मंडका (मोठ),
35. पायस (खीर)
36. दधि (दही),
37. गोघृत,
38. हैयंगपीनम (मक्खन),
39. मंडूरी (मलाई),
40. कूपिका (रबड़ी),
41. पर्पट (पापड़),
42. शक्तिका (सीरा),
43. लसिका (लस्सी),
44. सुवत,
45. संघाय (मोहन),
46. सुफला (सुपारी),
47. सिता (इलायची),
48. फल,
49. तांबूल,
50. मोहन भोग,
51. लवण,
52. कषाय,
53. मधुर,
54. तिक्त,
55. कटु,
56. अम्ल.

जिंदिगी के प्रति नजरिया

नजरिया
एक महान लेखक अपने लेखन कक्ष में बैठा हुआ लिख रहा था।
1) पिछले साल मेरा आपरेशन हुआ और मेरा गालब्लाडर निकाल दिया गया। इस आपरेशन के कारण बहुत लंबे समय तक बिस्तर पर रहना पड़ा।

2) इसी साल मैं 60 वर्ष का हुआ और मेरी पसंदीदा नौकरी चली गयी। जब मैंने उस प्रकाशन संस्था को छोड़ा तब 30 साल हो गए थे मुझे उस कम्पनी में काम करते हुए।

3) इसी साल मुझे अपने पिता की मृत्यु का दुःख भी झेलना पड़ा।

4) और इसी साल मेरा बेटा कार एक्सिडेंट हो जाने के कारण मेडिकल की परीक्षा में फेल हो गया क्योंकि उसे बहुत दिनों तक अस्पताल में रहना पड़ा। कार की टूट फूट का नुकसान अलग हुआ।

अंत में लेखक ने लिखा,
**वह बहुत ही बुरा साल था।

जब लेखक की पत्नी लेखन कक्ष में आई तो उसने देखा कि, उसका पति बहुत दुखी लग रहा है और अपने ही विचारों में खोया हुआ है। अपने पति की कुर्सी के पीछे खड़े होकर उसने देखा और पढ़ा कि वो क्या लिख रहा था।

वह चुपचाप कक्ष से बाहर गई और थोड़ी देर बाद एक दूसरे कागज़ के साथ वापस लौटी और वह कागज़ उसने अपने पति के लिखे हुए कागज़ के बगल में रख दिया।
लेखक ने पत्नी के रखे कागज़ पर देखा तो उसे कुछ लिखा हुआ नजर आया, उसने पढ़ा।

1-a) पिछले साल आखिर मुझे उस गालब्लाडर से छुटकारा मिल गया जिसके कारण मैं कई सालों से दर्द से परेशान था।

2-a) इसी साल मैं 60 वर्ष का होकर स्वस्थ दुरस्त अपनी प्रकाशन कम्पनी की नौकरी से सेवानिवृत्त हुआ। अब मैं पूरा ध्यान लगाकर शान्ति के साथ अपने समय का उपयोग और बढ़िया लिखने के लिए कर पाउँगा।

3-a) इसी साल मेरे 95 वर्ष के पिता बगैर किसी पर आश्रित हुए और बिना गंभीर बीमार हुए परमात्मा के पास चले गए।

4-a) इसी साल भगवान् ने एक्सिडेंट में मेरे बेटे की रक्षा की। कार टूट फूट गई लेकिन मेरे बच्चे की जिंदगी बच गई। उसे नई जिंदगी तो मिली ही और हाँथ पाँव भी सही सलामत हैं।

अंत में उसकी पत्नी ने लिखा था,
**इस साल भगवान की हम पर बहुत कृपा रही, साल अच्छा बीता।☺

मानव-जीवन में प्रत्येक मनुष्य के समक्ष अनेकों परिस्थितियां आती हैं, उन परिस्थितियों का प्रभाव क्या और कितना पड़ेगा, यह पूरी तरह हमारे सोचने के तरीके पर निर्भर करता है। चीजें वही रहती हैं पर नजरिया बदलने से पूरा परिणाम बदल जाता है।