Search This Blog

Friday 31 July 2015

REET - STAY REMOVED

तृतीय श्रेणी अध्यापकों की भर्ती के लिए राज्य अध्यापक पात्रता सह भर्ती परीक्षा (रीट)  की अधिसूचना सिंतबर में जारी होगी। परीक्षा माध्यमिक शिक्षा बोर्ड राजस्थान कराएगा। राज्य सरकार ने भर्ती  परीक्षा में आ रही  विधिक अड़चन को दूर कर दिया है। 

राज्य में वर्ष 2012 के बाद तृतीय श्रेणी अध्यापक भर्ती के लिए परीक्षा नहीं हुई है। वर्ष 2011 और 2012 में राज्य अध्यापक पात्रता परीक्षा 'आरटेटÓ का आयोजन माध्यमिक शिक्षा बोर्ड ने किया था। इन परीक्षाओं में राज्य सरकार द्वारा कट ऑफ माक्र्स में छूट को लेकर विवाद खड़ा हो गया और मामला उच्च न्यायालय तक पहुंच गया। लंबी कानूनी लड़ाई के बाद आखिर शिक्षा बोर्ड आरटेट-2012 का परिणाम जारी कर पाया था। 

यूं हटी अड़चन 

'रीटÓ को लेकर शिक्षा बोर्ड के सामने विधिक अड़चन आ गई थी। दरअसल पूर्व में 'रीटÓ के लिए  मई के अंतिम सप्ताह में अधिसूचना जारी होनी थी। लेकिन अंतिम समय में खुलासा हुआ कि बोर्ड अधिनियम में भर्ती के लिए परीक्षा आयोजित करने का प्रावधान  ही नहीं है। इसके लिए मंत्रिमंडल में प्रस्ताव पारित करने के बाद मामला राज्यपाल के पास भेजा गया। राज्यपाल ने भी शिक्षा बोर्ड अधिनियम में संशोधन करने का प्रस्ताव पास कर दिया है। इसके  बाद अब 'रीटÓ आयोजित करने का रास्ता साफ हो गया है। 

 नगर निकाय चुनाव समाप्त होते ही रीट प्रक्रिया प्रारंभ कर दी जाएगी। सितंबर में अधिसूचना जारी होगी। शिक्षा बोर्ड द्वारा परीक्षा आयोजित करने संबंधी विधिक अड़चन साफ हो गई है। राज्यपाल ने अधिनियम में संशोधन की स्वीकृति दे दी है। इस साल सरकारी विद्यालयों में प्रवेश नामांकन की रिकार्ड बढ़ोतरी को देखते हुए रीट के माध्यम से अध्यापकों के पदों पर भर्ती का आंकड़ा भी उसी अनुपात में बढऩे की संभावना है। 

प्रोफेसर वासुदेव देवनानी, शिक्षा राज्य मंत्री

 राज्य सरकार से निर्देश मिलते ही रीट की परीक्षा आयोजित कर ली जाएगी। शिक्षा बोर्ड स्तर पर परीक्षा की तैयारी कर ली है। 

प्रोफेसर बी.एल. चौधरी, अध्यक्ष, माध्यमिक शिक्षा बोर्ड राजस्थान। 

2013 से नहीं हुई परीक्षा

कट ऑफ माक्र्स विवाद के चलते वर्ष 2013 में आरटेट के लिए आवेदन मांगने के बावजूद शिक्षा बोर्ड अंतिम समय में परीक्षा कराने से मुकर गया। दरअसल 2013 में विधानसभा चुनाव से पहले सुराज संकल्प यात्रा के दौरान मौजूदा मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने आरटेट को समाप्त कर नई प्रक्रिया प्रारंभ करने की चुनावी घोषणा की थी। 

चुनाव के बाद भाजपा सत्ता में आई तो शिक्षा बोर्ड ने भी आरटेट से हाथ खींच लिया। इसके बाद राज्य सरकार ने  आरटेट की  जगह अध्यापकों की भर्ती के लिए एक ही परीक्षा  रिक्रूटमेंट कम एलिजिब्लिटी एक्जॉम फॉर टीचर्स (रीट) की घोषणा कर दी।  राज्य सरकार फिलहाल जिलावार खाली पदों की संख्या की समीक्षा करा रही है।

Wednesday 29 July 2015

Home remedy - pipali (Ayurveda)

पिप्पली (Indian long pepper) -
पिप्पली के विभिन्न औषधीय गुण -

१- पिप्पली को पानी में पीसकर माथे पर लेप करने से सिर दर्द ठीक होता है |

२- पिप्पली और वच चूर्ण को बराबर मात्रा में लेकर ३ ग्राम की मात्रा में नियमित रूप से दो बार दूध या गर्म पानी के साथ सेवन करने से आधासीसी का दर्द ठीक होता है |

३- पिप्पली के १-२ ग्राम चूर्ण में सेंधानमक,हल्दी और सरसों का तेल मिलाकर दांत पर लगाने से दांत का दर्द ठीक होता है |

४- पिप्पली,पीपल मूल,काली मिर्च और सौंठ के समभाग चूर्ण को २ ग्राम की मात्रा में लेकर शहद के साथ चाटने से जुकाम में लाभ होता है |

५- पिप्पली चूर्ण में शहद मिलाकर प्रातः सेवन करने से,कोलेस्ट्रोल की मात्रा नियमित होती है तथा हृदय रोगों में लाभ होता है |

६-पिप्पली और छोटी हरड़ को बराबर-बररबर मिलाकर,पीसकर एक चम्मच की मात्रा में सुबह- शाम गुनगुने पानी से सेवन करने पर पेट दर्द,मरोड़,व दुर्गन्धयुक्त अतिसार ठीक होता है |

७- आधा चम्मच पिप्पली चूर्ण में बराबर मात्रा में भुना जीरा तथा थोड़ा सा सेंधा नमक मिलाकर छाछ के साथ प्रातः खाली पेट सेवन करने से बवासीर में लाभ होता है |

Data theft by pakistani hackers through calls


0092 ये नम्बर पाकिस्तान का कोड है. ये नंबर स्टार्टिंग है.. ex. 00923044164317 ऐसे नंबर है.. ये कॉल किसी भी हालत में रिसिव ना करे
पाकिस्तान वाले कॉल करके अपने मोबाइल का पूरा डाटा चुरा रहे है ..
आज CNX news में देखलो.. 
प्लीज msg ज्यादा से ज्यादा  फॉरवर्ड करे...

Issue by Indian Army...⚓

Sunday 26 July 2015

Hindi - deteriorating basic education in india

न्यूज चैनल पर बेसिक शिक्षा का गिरता स्तर" पर चर्चा चली जिसमें अनेक विद्वान लोगों ने भाग लिया और अपने अपने तर्क दिये। इस सम्बन्ध में टीवी पर बैठे लोगों से मैं एक प्रश्न करना चाहता हूँ कि आपमें से किसका बच्चा है जो केवल क्लास में ही पढता है और घर पर किताब उठाकर न देखता हो और बिना अभिभावक अथवा ट्यूटर के मेधावी बन गया हो।
आज बेसिक शिक्षा बदहाल तब दिखाई पड़ती है जब इसकी तुलना कान्वेंट स्कूल से की जाती है जबकि कान्वेंट व परिषदीय विद्यालयों में पड़ने वाले बच्चे की पृष्ठभूमि  में कोई नहीं जाना चाहता है।
कान्वेंट स्कूल में बच्चे के प्रवेश से पूर्व बच्चे के माता पिता की योग्यता का test होता है। फिर बच्चे का टेस्ट होता है। प्रवेश के पश्चात अभिभावक मोटी मोटी रकम फीस व किताबों में खर्च करता है बच्चे को विद्यालय से आने जाने वाले वाहन पर भी मोटी रकम खर्च करता है। अभिभावकों के शिक्षित होने के कारण इतनी मोती रकम खर्च करने के उद्देश्य को वो शिक्षित अभिभावक भलीभाँति जानते है और उनका पहला उद्देश्य मात्र अपने बच्चे की शिक्षा होती है।
शिक्षित व समृद्ध अभिभावक प्रतिदिन सुबह को अपने बच्चे को स्कूल की वैन आने से पूर्व समय से उठाकर पढाते है उसके पश्चात् नहलाकर uniform पहनाते है माँ बड़े प्यार से लंच बॉक्स तैयार करके उसके बैग में रखती है और घर से बाहर सड़क पर खड़े होकर वैन आने का इंतजार करते है जब बच्चा वैन में बैठ कर स्कूल चला जाता है उसके बाद माँ बाप की अपनी निजी जिंदगी के काम शुरू होते हैं।
बच्चे की छुट्टी के पश्चात् माँ बाप उसको रिसीव करने के लिए चिन्तित होते है और व्यापारी अपना व्यापार नौकरपेशा अपनी ड्यूटी से समय निकालकर बच्चे को रिसीव करता है।
बच्चा घर आने के बाद निर्धारित टाइम टेबिल के अनुसार टीवी देखता एवं खेलता है उसके पश्चात् माँ पिता स्वयं अथवा ट्यूटर बच्चे को लेकर बैठते है और स्कूल में कराये काम का 4 गुना काम होम वर्क के रूप में पूरा कराते है। यहाँ तक कि बच्चा सोने से पहले भी याद (learn) करता है।
छोटे छोटे बच्चों को स्कूल से प्रोजेक्ट के नाम पर ऐसे ऐसे काम मिलते जो छात्र तो कर ही नहीं सकता माता पिता को भी करने में पसीने छूट जाते हैं उसको तैयार करने में बाज़ार की खाक छाननी पड़ती है।
प्रति माह होनी वाली पेरेंट्स मीटिंग में चाहे व्यापार बंद करना पड़े अथवा नौकरपेशा को CL लेनी पड़े लेकिन मीटिंग में भाग लेकर अपने बच्चे से जुडी जानकारी लेते है।
कहने का अभिप्राय है कि उक्त अभिभावक वो है जो शिक्षित व समृद्ध हैं और अपने बच्चे को ही अपना भविष्य व पूँजी मानकर अपनी खुद की इच्छाओं से ज्यादा मेहनत अपने बच्चे पर करते हैं।
इसका दूसरा रूप सरकारी स्कूल में पड़ने वाले छात्र व उसके अभिभावक है। इन स्कूल में आने वाले 80% बच्चों के अभिभावकों को बच्चे के एड्मिसन से कोई मतलब ही नहीं है अध्यापक स्वयं गली अथवा गाँव में जाकर बच्चों को खोजकर उनका प्रवेश स्कूल में करता है जिसको प्रतिदिन अथवा समय से विद्यालय भेजने के प्रति उसके माता पिता को कोई मतलब नहीं होता है बल्कि जब बच्चे को कोई काम घर पर नहीं होता है तब बच्चा स्कूल की ओर रुख करता है इससे भी बड़ा एक और कारण कि ये ऐसे माता पिता है जिन्हें बच्चे की शिक्षा से पहले अपनी रोजी रोटी कमानी होती है आज कक्षा 5 से लेकर 8 तक का बच्चा 100 से लेकर150 रु रोज कमाता है इन गरीब बच्चों के माँ बाप आज इन बच्चों से पहले कमाई करवाना पसन्द करते है और समय बचे तो स्कूल भेजना होता है।
ग्रामीण क्षेत्र के सरकारी स्कूल  का छात्र जब सुबह उठता है तो पहले घर के पालतू पशुओं के चारे की व्यवस्था करता है उसके पश्चात खेती या मजदूरी का काम देखता है और जब कोई काम नहीं होता तो खाली समय में स्कूल आता है उस दिन स्कूल में जो पड़कर जाता है उसे घर पर देखने वाले न अभिभावक हैं न ट्यूटर है।अर्थात जहाँ CONVENT स्कूल के छात्र के हाथ में 24घंटे में से लगभग 10 घंटे किताब होती है बहीं सरकारी स्कूल के छात्र के हाथ में हसिया या खुरपी होती है। एक ओर वो अभिभावक है जिसे उसका बच्चा ही सब कुछ है एक ओर वो है जिसे अपने भूखे पेट को भरने के लिए रोजी रोटी ही सब कुछ है।
पत्रकारों का कहना है कि कक्षा 2 के बच्चे को नाम लिखना नहीं आता ।मैं कहता हूँ कि कक्षा 2 यानि कान्वेंट का नर्सरी ,क्या नर्सरी का बच्चा अपना नाम लिख सकता है मुफ्त भोजन के चक्कर में न समझ अभिभावक 3-3 साल के बच्चे की उम्र अधिक बताकर कक्षा 1 में प्रवेश दिला देते हैं यानि 3साल पहले। जबकि कान्वेंट में PLAY,NURSARY,JUNIOR KG,SENIOR KG उसके बाद कक्षा1 में बच्चा आता है।आज परिषदीय स्कूल का कक्षा 4 के छात्र की आयु CONVENT वाले कक्षा 1 के छात्र के बराबर है।सरकार ने नीति बना दी कि बच्चे को फेल नहीं करना है। और इन सब के बावजूद हमेशा फंसता कौन है। कृपया पूरा लेख जरूर पढ़ें...
.
एक शिक्षक की कलम से....
.
वर्तमान परिस्थिति के कुछ सटीक विश्लेषण..
.
मेरे प्रिय शिक्षक साथियों।
बहुत समय से मैं आत्मसंघर्ष से गुजर रहा हूँ
विचारों में, कर्म में और अभिव्यक्ति में भी।
परन्तु वस्तुत: मानसिक संघर्ष को आज आपके समक्ष व्यक्त करने से स्यवं को रोक नहीं पा रहा हूँ।
शिक्षक होना अपने आप में गर्व की बात है।
परन्तु अब ऐसा लग रहा है इस विकल्प को चुनकर घोर अपराध किया है। उस पर प्राथमिक शिक्षक होना "एक तो करेला ऊपर से नीम चढ़ा" वाली कहावत को चरितार्थ करता है।
सरकारी स्कूलों मे प्राथमिक शिक्षा की दशा अत्यन्त शोचनीय है। यह कहने की आवश्यकता भी नहीं है। लेकिन ऐसी स्थिति के लिए जिम्मेदार किसे माना जाए यह यक्ष प्रश्न मेरे सम्मुख काफी समय से मुँह बाए खड़ा है, परन्तु जितना चिन्तन करता हूँ समस्या गहरी और बहुमुखी प्रतीत होती जाती है।
कभी प्रशासनिक स्तर, कभी संस्थागत स्तर पर, कभी व्यक्तिगत स्तर पर, कभी सामाजिक स्तर पर और कभी चयन के स्तर पर। परन्तु समस्या एक शिक्षक के लिए बहुआयामी है जबकि शेष समाज,
सरकार, प्रशासन के लिए समस्या एकल-आयामी है। वह शिक्षक को घूर के देखता है जैसे वही अपराधी हो।
बेसिक शिक्षा की सारी दुर्दशा का एकमात्र दोशी शिक्षक को माना जा रहा है। अच्छी विडम्बना है।
अब बात अपने प्राथमिक शिक्षा को लेकर करता हूँ। मैं भी सरकारी प्राथमिक स्कूल से कक्षा 5 उत्तीर्ण हूँ। तब न सही भवन थे, न ही किताबें मिलती थी, न ही ड्रेस मिलती थी, न ही मध्याह्न भोजन की व्यस्था थी, विद्यालय भी प्राय: दूर ही होते थे। प्रशासनिक नियन्त्रण व हस्तक्षेप न के बराबर था। परन्तु शिक्षा आज से कई गुना बेहतर थी। शिक्षक भी पर्याप्त संख्या में प्रत्येक विषय के अलग-2। शिक्षण के अलावा कोई कार्य नहीं था। न रोज सूचना देना था, न खाना बनवाना था, न बिल्डिंग बनवानी थी, न आडिट करवाना था, न प्रधान के घर के चक्कर लगाने थे और न अधिकारियों की चापलूसी करनी थी। मेरे प्राथमिक शैक्षिक जीवन में कभी विद्यालय का निरीक्षण भी न के बराबर हुआ। फिर भी अच्छी पढ़ाई होती थी। आज इसके जवाब में कहा जाता है तब शिक्षक ईमानदार चरित्रवान होते थे, पर आज नही है। अगर आज ईमानदार चरित्रवान शिक्षक कम हैं तो इसका जिम्मेदार कौन है..??? क्या चयन प्रणाली इसके लिए जिम्मेदार नही है..??? आज शिक्षक को कर्मचारी बना दिया गया है। किसने बनाया खुद शिक्षक ने..??? सरकार ने पहले उन्हे बिल्डर,  टेलर, बुक सेलर, खानसामा, विभिन्न विभागों के भिन्न-2 पदों के कार्य सौंप दिये जैसे राजस्व विभाग, पंचायत विभाग, खाद्य आपूर्ति, स्वास्थ्य आदि । अब जब कर्मचारी बन गए हैं तो स्वाभाविक है कि कुछ गुण कर्मचारी के आ ही जाएंगे।
वाह रे नीति नियन्ता। अब उपदेश देते हैं शिक्षक धर्म का पालन करो।वो भी बिना किसी अधिकार के। जैसे बंगाल में ईस्ट इंडिया कंपनी ने 1765-72 तक द्वैध शासन चलाया था। जिसमें अधिकार कंपनी के पास और कर्तव्य सारे नवाब करें। वैसी हालत हमारे बेशिक शिक्षा की है।
जब तक शिक्षा की नीति रीति शिक्षक स्यवं नही बनाएगा और ऊपर से हवा-हवाई नीतियाँ बनेगी तब तक शिक्षा व्यवस्था सुधरने से रही। दंडात्मक प्रक्रिया चलती रहेगी, प्रशासनिक हस्तक्षेप बढ़ता रहेगा, साथ ही शिक्षकों का शोषण बढ़ता रहेगा जिससे शिक्षा व्यवस्था का स्तर गिरता रहेगा। शिक्षा विभाग मे आज भी एक से बढ़कर एक बहुत से विद्वान शिक्षक मौजूद हैं परंतु चापलूसों और चाटुकारों के आगे उनकी कोई पहचान नहीं है।

Saturday 25 July 2015

Election Code of conduct and municipal election programme 2015

प्रदेश में आचार संहिता लागू
स्थानीय चुनावों की घोषणा
जयपुर/ निर्वाचन आयुक्त राम लुभेया ने आज स्थानीय निकाय चुनावों की घोषणा कर दी है । इस घोषणा के साथ ही आचार संहिता लागू हो गई है । चुनाव कार्यक्रम इस प्रकार है
1/8/15  --' अधिसूचना जारी 
5/8/15 --- नामांकन दाखिल होगे
6/8/15 -- नामांकन पुत्रो की जांच
8/8/15 -- नाम वापसी
9/8/15 -- नाम वापसी
17/8/15-- मतदान सवेरे 7 बजे से  सांय 6 बजे तक
20/8/15 -- को मतगणना
21/8/15 -- अध्यक्ष का  चुनाव
22/8/15 -- उपाध्यक्ष का चुनाव
कुल वार्ड-- 3351
कुल मतदाता- 3312316
पुरूष मतदाता-- 1935009
महिला मतदाता-- 1777260
अन्य मतदाता-- 47000
नगर निगम-- 1 ,
नगर परिषद-- 15
नगर पालिकाए - 113
2010 मे भाजपा का था कब्जा - 57
2010 मे कांग्रेस का था कब्जा -49

संसार में हकीकत में कौन क्या है.....

इस संसार में हकीकत में कौन क्या है.......?
• केले का छिलका----- पृथ्वी से मिलाप करने का दलाल
• सिनेमा----- पैसा देकर कैद होने का स्थान
• जेल ----- बिना पैसे का हास्टल
• सास ----- बहु के पीछे छोडा गया बिना पैसे का जासूस
• चिन्ता----- बजन कम करने की सबसे सस्ती दवा
• मृत्यु ----- बिना पासपोर्ट के पृथ्वी सेदूर जाने की छूट
• ताला ----- बिना वेतन का चौकीदार
• मुर्गा ----- देहात की अलार्म घडी
• झगडा ----- वकील का कमाऊ बेटा
• चश्मा----- जादूई आँख
• स्वप्न ----- बिना पैसे की फिल्म
• हॉस्पिटल----- रोगियों का संग्रहालय
• श्मशान----- दुनिया का आखिरी स्टेशन
• ईश्वर----- किसी से मुलाकात न करने वाला व्यवस्थापक
• चाय कॉफी----- कलयुग का अमृत
• विद्वान----- अक्ल का ठेकेदार
• चोर----- रात का शरीफ व्यापारी
• विश्व----- एक महान धर्मशाला।
गलती जिंदगी का एक पन्ना है;
परन्तु 'रिश्ते' पूरी किताब हैं।
ज़रूरत पड़ने पर 'गलती' का पन्ना फाड़ देना लेकिन एक पन्ने के लिए पूरी किताब मत फाड़ देना।

इंकलाब जिंदाबाद

Comments - क्या आप जानते है "इन्कलाब" का अर्थ क्या है, नीचे देखते है सहीद ए आजम भगत सिंह के शब्दो में --- .
.
.
इन्कलाब एक लड़ाई है, जुल्म और नाइंसाफी के खिलाफ....

इन्कलाब एक हथियार है, आदमी पर से आदमी का शोषण रोकने के लिए.....

इन्कलाब एक ऐलान है, देश के नौजवानों को एकजुट करने के लिए..

इन्कलाब एक चेतावनी है, इस बरबस सरकार को होशियार करने के लिए.....

इन्कलाब एक पुकार है, सोये हुए आवाम को उठाने के लिए.....
इन्कलाब एक आवाज है, दबे हुए जमीर को जगाने के लिए........

तो पूरी ताकत के साथ बोलते हैं और बोलते रहेंगे.....
  " इंकलाब जिंदाबाद "

तुम्हारा भाई तुम्हारे साथ है, और मेरा भाई ...????

रावण जब रणभूमि में मृत्युशय्या पर अंतिम सांसे ले रहा था तब उसने श्री राम से कहा-
'राम मैं तुमसे हर बात में श्रेष्ठ हूँ।
जाति मेरी ब्राह्मण हैं, जो तुमसे श्रेष्ठ है।
आयु में भी तुमसे बड़ा हूँ,
मेरा कुटुम्ब तुम्हारे कुटुम्ब से बड़ा है।
मेरा वैभव तुमसे अघिक हैं,
तुम्हारा महल स्वर्णजड़ित है परन्तु मेरी पूरी लंका ही स्वर्ण नगरी है,
मैं बल और पराक्रम में भी तुमसे श्रेष्ठ हूँ,
मेरा राज्य तुम्हारे राज्य से बड़ा है,
ज्ञान और तपस्या में तुमसे श्रेष्ठ हूँ।
इतनी श्रेष्ठताओं के होने पर भी रणभूमि में मैं तुमसे परास्त हो गया।
सिर्फ इसलिये कि
तुम्हारा भाई तुम्हारे साथ है, और मेरा भाई ...????

रामकृष्ण परमहंस और स्वामी विवेकानंद के बीच एक दुर्लभ संवाद

रामकृष्ण परमहंस और स्वामी विवेकानंद के बीच एक दुर्लभ संवाद

स्वामी विवेकानंद     :  मैं समय नहीं निकाल पाता. जीवन आप-धापी से भर गया है.

रामकृष्ण परमहंस   :  गतिविधियां तुम्हें घेरे रखती हैं. लेकिन उत्पादकता आजाद करती है.

स्वामी विवेकानंद     :  आज जीवन इतना जटिल क्यों हो गया है?   
     
रामकृष्ण परमहंस   :  जीवन का विश्लेषण करना बंद कर दो. यह इसे जटिल बना देता है. जीवन को सिर्फ जिओ.

स्वामी विवेकानंद     :  फिर हम हमेशा दुखी क्यों रहते हैं?   
   
रामकृष्ण परमहंस   :  परेशान होना तुम्हारी आदत बन गयी है. इसी वजह से तुम खुश नहीं रह पाते.

स्वामी विवेकानंद     :  अच्छे लोग हमेशा दुःख क्यों पाते हैं?

रामकृष्ण परमहंस   :  हीरा रगड़े जाने पर ही चमकता है. सोने को शुद्ध होने के लिए आग में तपना पड़ता है. अच्छे लोग दुःख नहीं पाते बल्कि परीक्षाओं से गुजरते हैं. इस अनुभव से उनका जीवन बेहतर होता है, बेकार नहीं होता.

स्वामी विवेकानंद     :  आपका मतलब है कि ऐसा अनुभव उपयोगी होता है?

रामकृष्ण परमहंस   :  हां. हर लिहाज से अनुभव एक कठोर शिक्षक की तरह है. पहले वह परीक्षा लेता है और फिर सीख देता है.

स्वामी विवेकानंद     :  समस्याओं से घिरे रहने के कारण, हम जान ही नहीं पाते कि किधर जा रहे हैं...

रामकृष्ण परमहंस   :  अगर तुम अपने बाहर झांकोगे तो जान नहीं पाओगे कि कहां जा रहे हो. अपने भीतर झांको. आखें दृष्टि देती हैं. हृदय राह दिखाता है.

स्वामी विवेकानंद     :  क्या असफलता सही राह पर चलने से ज्यादा कष्टकारी है?

रामकृष्ण परमहंस   :  सफलता वह पैमाना है जो दूसरे लोग तय करते हैं. संतुष्टि का पैमाना तुम खुद तय करते हो.

स्वामी विवेकानंद     :  कठिन समय में कोई अपना उत्साह कैसे बनाए रख सकता है?

रामकृष्ण परमहंस   :  हमेशा इस बात पर ध्यान दो कि तुम अब तक कितना चल पाए, बजाय इसके कि अभी और कितना चलना बाकी है. जो कुछ पाया है, हमेशा उसे गिनो; जो हासिल न हो सका उसे नहीं.

स्वामी विवेकानंद     :  लोगों की कौन सी बात आपको हैरान करती है?

रामकृष्ण परमहंस   :  जब भी वे कष्ट में होते हैं तो पूछते हैं, "मैं ही क्यों?" जब वे खुशियों में डूबे रहते हैं तो कभी नहीं सोचते, "मैं ही क्यों?"

स्वामी विवेकानंद     :  मैं अपने जीवन से सर्वोत्तम कैसे हासिल कर सकता हूँ?

रामकृष्ण परमहंस   :  बिना किसी अफ़सोस के अपने अतीत का सामना करो. पूरे आत्मविश्वास के साथ अपने वर्तमान को संभालो. निडर होकर अपने भविष्य की तैयारी करो.

स्वामी विवेकानंद     :  एक आखिरी सवाल. कभी-कभी मुझे  लगता है कि मेरी प्रार्थनाएं बेकार जा रही हैं.

रामकृष्ण परमहंस   :  कोई भी प्रार्थना बेकार नहीं जाती. अपनी आस्था बनाए रखो और डर को परे रखो. जीवन एक रहस्य है जिसे तुम्हें खोजना है. यह कोई समस्या नहीं जिसे तुम्हें सुलझाना है. मेरा विश्वास करो- अगर तुम यह जान जाओ कि जीना कैसे है तो जीवन सचमुच बेहद आश्चर्यजनक है.|

रामकृष्ण परमहंस और स्वामी विवेकानंद के बीच एक दुर्लभ संवाद

रामकृष्ण परमहंस और स्वामी विवेकानंद के बीच एक दुर्लभ संवाद

स्वामी विवेकानंद     :  मैं समय नहीं निकाल पाता. जीवन आप-धापी से भर गया है.

रामकृष्ण परमहंस   :  गतिविधियां तुम्हें घेरे रखती हैं. लेकिन उत्पादकता आजाद करती है.

स्वामी विवेकानंद     :  आज जीवन इतना जटिल क्यों हो गया है?   
     
रामकृष्ण परमहंस   :  जीवन का विश्लेषण करना बंद कर दो. यह इसे जटिल बना देता है. जीवन को सिर्फ जिओ.

स्वामी विवेकानंद     :  फिर हम हमेशा दुखी क्यों रहते हैं?   
   
रामकृष्ण परमहंस   :  परेशान होना तुम्हारी आदत बन गयी है. इसी वजह से तुम खुश नहीं रह पाते.

स्वामी विवेकानंद     :  अच्छे लोग हमेशा दुःख क्यों पाते हैं?

रामकृष्ण परमहंस   :  हीरा रगड़े जाने पर ही चमकता है. सोने को शुद्ध होने के लिए आग में तपना पड़ता है. अच्छे लोग दुःख नहीं पाते बल्कि परीक्षाओं से गुजरते हैं. इस अनुभव से उनका जीवन बेहतर होता है, बेकार नहीं होता.

स्वामी विवेकानंद     :  आपका मतलब है कि ऐसा अनुभव उपयोगी होता है?

रामकृष्ण परमहंस   :  हां. हर लिहाज से अनुभव एक कठोर शिक्षक की तरह है. पहले वह परीक्षा लेता है और फिर सीख देता है.

स्वामी विवेकानंद     :  समस्याओं से घिरे रहने के कारण, हम जान ही नहीं पाते कि किधर जा रहे हैं...

रामकृष्ण परमहंस   :  अगर तुम अपने बाहर झांकोगे तो जान नहीं पाओगे कि कहां जा रहे हो. अपने भीतर झांको. आखें दृष्टि देती हैं. हृदय राह दिखाता है.

स्वामी विवेकानंद     :  क्या असफलता सही राह पर चलने से ज्यादा कष्टकारी है?

रामकृष्ण परमहंस   :  सफलता वह पैमाना है जो दूसरे लोग तय करते हैं. संतुष्टि का पैमाना तुम खुद तय करते हो.

स्वामी विवेकानंद     :  कठिन समय में कोई अपना उत्साह कैसे बनाए रख सकता है?

रामकृष्ण परमहंस   :  हमेशा इस बात पर ध्यान दो कि तुम अब तक कितना चल पाए, बजाय इसके कि अभी और कितना चलना बाकी है. जो कुछ पाया है, हमेशा उसे गिनो; जो हासिल न हो सका उसे नहीं.

स्वामी विवेकानंद     :  लोगों की कौन सी बात आपको हैरान करती है?

रामकृष्ण परमहंस   :  जब भी वे कष्ट में होते हैं तो पूछते हैं, "मैं ही क्यों?" जब वे खुशियों में डूबे रहते हैं तो कभी नहीं सोचते, "मैं ही क्यों?"

स्वामी विवेकानंद     :  मैं अपने जीवन से सर्वोत्तम कैसे हासिल कर सकता हूँ?

रामकृष्ण परमहंस   :  बिना किसी अफ़सोस के अपने अतीत का सामना करो. पूरे आत्मविश्वास के साथ अपने वर्तमान को संभालो. निडर होकर अपने भविष्य की तैयारी करो.

स्वामी विवेकानंद     :  एक आखिरी सवाल. कभी-कभी मुझे  लगता है कि मेरी प्रार्थनाएं बेकार जा रही हैं.

रामकृष्ण परमहंस   :  कोई भी प्रार्थना बेकार नहीं जाती. अपनी आस्था बनाए रखो और डर को परे रखो. जीवन एक रहस्य है जिसे तुम्हें खोजना है. यह कोई समस्या नहीं जिसे तुम्हें सुलझाना है. मेरा विश्वास करो- अगर तुम यह जान जाओ कि जीना कैसे है तो जीवन सचमुच बेहद आश्चर्यजनक है.|