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Wednesday 19 November 2014

Hindi Poem on teacher for teacher day

ये नेत्र सजल हो जाते है,
मस्तिस्क भ्रमित हो जाता है।
जब दर्द लिखूं अध्यापक का,
तब ह्रदय द्रवित हो जाता है।
सहता जीवनपर्यन्त सदा,
रह मौन कुठाराघातों से।
कभी अधिकारी, कभी पेरेन्ट कभी जनप्रतिनिधि तो,
कभी अपनो के आघातों से।
बन बैठा है दुश्मन देखो,
भाई ही भाई का रण में।
है चाल चली शकुनी ने फिर,
प्रतिनिधियों के संरक्षण में।
दिन-रात जला निज रक्त उदय,
विद्या का दीपक करता है।
फिर भी ना जाने अध्यापक,
क्यों डरा-डरा सा रहता है।
खो गया कहीं है मैत्री भाव,
भाईचारा भी नहीं रहा।
ईर्ष्या और द्वेष चरम पर है।
मन-प्रेम गवारा नही रहा।
मेने देखा कुछ मित्रो को,
करते हैं गुलामी ऑफिस की।
अफ़सर से लेकर चपरासी,
करते हैं दलाली ऑफिस की।
अब बन्द करो छीना झपटी,
हो रहा जुआ सा ऑफिस में।
वीयर,स्कोच और रम छोड़ो,
पियो दूध बतासा ऑफिस में।
बन कर स्कूल के अधिकारी
पढ़ते अपनी-अपनी फारसी।
स्कूल निरीक्षण के बहाने,
घूमें लखनऊ, दिल्ली, झाँसी।
एक जान की आफत सीसीई बन गया,
जीना मरना दुश्वार हुआ।
है यम समान हर इन्स्पेक्शन पे,
सर पर आकर के सवार हुआ।
स्काउट ने खून पिया, प्रदर्श्नीयों ने है रुलाया, और रोज रोज की मीटिन्ग ने मास्टर का पसीना छुडाया.
कुछ बची जान अब तक बाकी,
वो सब्जेक्ट कमेटी ले डूबी।
प्राचार्य महोदय कहे आकर,
मास्टर तेरी एजेन्डा पोइन्ट ही फीकी।
लो आगए बडे साब कभी,
बस इनकीकमी रह गयी थी बाकी।
ना दाल गले इनके आगे,
ना चले किसी की चालाकी।
सब देख रजिस्टर यूँ बोले,
सब गलत..गलत कुछ सही नहीं।
मास्साब धैर्यशाली थे सो,
आँखो से गंगा बही नही।
बोले साहब वेतन रोकूं,
या फिर तुझको सस्पेण्ड करूं।
या डीसी साहब से जाकर,
तेरी सारी कम्प्लेण्ड करूं।
कप गए मास्साब अन्दर तक,
और हाथ जोड़ कहने लग गये।
सौरी सर सौरी सर मास्साब करने लगे
गर्व कर साहब का कलेजा ठण्डा हुआ,
और अगले साल गलती न करने के प्रोमिस से साहब का गुस्सा धुंआ हुआ।
साहब का पेट अब फूल गया घमंड से,
जब टीचर जैसा पेड़ मिल गया धूल से !

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