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Saturday 18 July 2015

Jambhoji and Bishnoi sect of Rajasthan

जाम्भोजी का जन्म सन् 1451 ई० में नागौर जिले के पीपासर नामक गाँव में हुआ था। ये जाति से पंवार राजपूत थे। इनके पिता का नाम लोहाट जी और माता का नाम हंसा देवी ( केशर ) था । ये अपने माता – पिता की इकलौतीसंतान थे। अत: माता – पिता उन्हें बहुत प्यार करते थे।जाम्भोजी बाल्यावस्था से मौन धारण किये हुए थे ।तत्पश्चात् उनका साक्षात्कार गुरु से हुआ। उन्होंने सात वर्ष की आयु से लेकर 27 वर्ष की आयु तक गाय चराने का काम किया। माता-पिता की स्वर्गवास के बाद जाम्भोजी ने अपना घर त्याग कर पवित्र समराथल धोरा(बीकानेर) आप पधारे थे / यहाँ आप ने 34 वर्ष की आयु मेंकार्तिक वादी आठामं (जन्मस्थ्मीं )सन् 1485 (वि सवंत १५४२) के दिन समराथल धोरे पर पवित्र पाहल बनाकर विश्नोई सम्प्रदाय की स्थापना की तथा 51 वर्ष तक वहींपर सत्संग एवं विष्णु नाम में अपना समय गुजारते रहे।तथा देश विदेशों में धर्म का पर्चार किया. इसका परमान गुरुशब्द शं.29 में उल्लेख किया है“गुरु के शब्द असंख्य परबोधी ,खारसमंद परिलो,,खारसमंद परे प्रेरे चोखंड खारु,पहला अंत न पारुं,,अनंत करोड़ गुरु की दावन विलम्बी,करनी साच तिरोलो ,,//उन्होंने उस युग कीसाम्प्रदायिक संकीर्णता, कुप्रथाओं एवं अंधविश्वासों का विरोध करते हुए कहा था कि -”सुण रे काजी, सुण रे मुल्लां, सुण रे बकर कसाई।किणरी थरणी छाली रोसी, किणरी गाडर गाई।।धवणा धूजै पहाड़ पूजै, वे फरमान खुदाई।गुरु चेले के पाए लागे, देखोलो अन्याई।।”वे सामाजिक दशा को सुधारना चाहते थे, ताकि अन्धविश्वास एवं नैतिक पतन के वातावरण को रोका जा सकेऔर आत्मबोध द्वारा कल्याण का मार्ग अपनाया जा सके। संसार के मि होने पर भी उन्होंने समन्वय की प्रवृत्तिपर बल दिया। दान की अपेक्षा उन्होंने ‘ शील स्नान ‘ को उत्तम बताया। उन्होंने पाखण्ड को अधर्म बताया । उन्होंने पवित्र जीवन व्यतीत करने पर बल दिया। ईश्वर के बारे में उन्होंने कहा-”तिल मां तेल पोह मां वास,पांच पंत मां लियो परकाश ।”जाम्भोजी ने गुरु के बारे में कहा था -”पाहण प्रीती फिटा करि प्राणी, गुरु विणि मुकति न आई।”भक्ति पर बल देते हुए कहा था -”भुला प्राणी विसन जपोरे,मरण विसारों केहूं।”जाम्भोजी ने जाति भेद का विरोध करते हुए कहा था कि – “उत्तम कुल में जन्म लेने मात्र से व्यक्ति उत्तम नहीं बन सकता, इसके लिए तो उत्तम करनी होनी चाहिए।उन्होंने कहा “तांहके मूले छोति न होई।दिल-दिल आप खुदायबंद जागै,सब दिल जाग्यो लोई।”तीर्थ यात्रा के बारे में विचार व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा था :”अड़सठि तीरथ हिरदै भीतर, बाहरी लोकाचारु।”मुसलमानों के बांग देने की परम्परा के बारे में उन्होंने कहा था -”दिल साबिति हज काबो नेड़ौ, क्या उलवंग पुकारो।”जाम्भोजी १५२६ ई० में तालवा नामक ग्राम में परलोक सिधार गए। ओर उनको वहां समाधी दी गयी उस दिन से उस जगह का नाम मुक्तिधाम मुकाम पड़ गया . उनकी स्मृति में विश्नोई भक्त फान्गुन मास की त्रियोदशी को वहाँ उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। ओर पर्ती वर्ष आसोज व फाल्गुन महीने की अमावस्या को मेला भरता है जहाँ देश के हर कोने से विश्नोई शर्धालू आते है.जाम्भोजी की शिक्षाएँ, सबदवाणी एवं उनका नैतिक जीवन मध्य युगीन धर्म सुधारक प्रवृत्ति के प्रमुख अंग हैं।विश्नोई सम्प्रदाय.जाम्भोजी द्वारा प्रवर्तित इस सम्प्रदाय के अनुयायियों के लिए उनतीस नियमों का पालन करना आवश्यक है। इस सम्बन्ध में एक कहावत बहुत प्रसिद्ध है, जो इस प्रकार है“उणतीस धर्म की आंकड़ी, हृदय धरियो जोय। जाम्भोजी जी कृपा करी नाम विश्नोई होय ।”जाम्भोजी ने उन्तिश नियम बताये । जाम्भोजी की शिक्षाओं का आज के वैज्ञानिकों पर भी परभाव पड़ रहा है। उन्होंने अहिंसा एवं दया का सिद्धान्त तथा पर्यावरण के क्षेत्र में बहुत बड़ा योगदान दिया .विश्नोइयों ने ने मुर्दों को गाड़ना, विवाह के समय मुहूर्त नहीं निकालना आदि सिद्धान्त ग्रहण किये हैं। उनकी शिक्षाओं पर वैष्णव सम्प्रदाय ,कबीर व नानकपंथ का भी बड़ा प्रभाव है।”इस प्रकार जाम्भोजी ने वैष्णव, जैन, इस्लाम धर्म के सिद्धान्तोंका समन्वय करके एक सार्वभौमिक पंथ “विश्नोई” को जन्म दिया।”DIKSHAविधि : जो व्यक्ति इस सम्प्रदाय के २९ नियमों का पालन करने के लिए तैयार होता था , इसे दीक्षा दी जाती थी। दीक्षा मंत्र तारक मंत्र या गुरु मंत्र कहलाता था, जो इस प्रकार था –”ओं शब्द गुरु सुरत चेला, पाँच तत्व में रहे अकेला।सहजे जोगी सुन में वास, पाँच तत्व में लियो प्रकाश।।ना मेरे भाई, ना मेरे बाप, अलग निरंजन आप ही आप।गंगा जमुना बहे सरस्वती, कोई- कोई न्हावे विरला जती।।तारक मंत्र पार गिराय, गुरु बताओ निश्चय नाम।जो कोई सुमिरै, उतरे पार, बहुरि न आवे मैली धार।।अमृत पाहल विश्नोई सम्प्रदाय में गुरु दीक्षा एवं होली पाहल आदि संस्कार साधुओं द्वारा सम्पादित करवाये जाते हैं, जिनमें कुछ महन्त भी भाग लेते हैं। वे महन्त, स्थानविशेष की गद्दी के अधिकारी होते हैंथापन नामक वर्ग के लोग नामकरण, विवाह एवं अन्तयेष्टि आदि संस्कारों को सम्पादित करवाते हैं। चेतावनी लिखने एवं समारोहों के अवसरों पर गाने बजाने आदि कार्यों के लिए गायनआचार्य अलग होते हैं।अभिवादन का तरीका :इस सम्प्रदाय में परस्पर मिलने पर अभिवादन के लिए ‘नवम प्रणाम’, तथा प्रतिवचन में’ विष्णु नै जांभौजी नै’ कहा जाता है। व बडों का पैर छूकर आभिवादन किया जाता है .विशिष्ट वेशभूषा :रिपोर्ट मर्दुमशुमार राज. मारवाड़ से पता चलता है कि विश्नोई औरतें लाल और काली ऊन के कपड़े पहनती thi । विश्नोई लोग नीले रंगके कपड़े पहनना पसंद नहीं करते हैं। वे ऊनी वस्र पहनना अच्छा मानते हैं, क्योंकी उसे पवित्र मानते हैं। साधु कान तक आने वाली तीखी जांभोजी टोपी एवं चपटे मनकों की आबनूस की काली माला पहनते हैं। महन्त प्राय: धोती, कमीज और सिर पर भगवा साफा बाँधते हैं। लेकिन अब समय के साथ वेशभूषा में भी बदलाव आया है .संस्कार : विश्नोईयों में शव को गाड़ने की प्रथा प्रचलित है।विश्नोई सम्प्रदाय मूर्ति पूजा में विश्वास नहीं करता है। जाम्भोजी ने विश्नोई समाज को तीन संस्कार बताये थे /अत: जाम्भोजी के मंदिर और साथरियों में किसी प्रकार की मूर्ति नहीं होती है। कुछ स्थानों पर इस सम्प्रदाय के सदस्य जाम्भोजी की वस्तुओं की पूजा करते हैं। जैसे कि पीपसार में जाम्भोजी की खड़ाऊ जोड़ी, मुकाम में टोपी, पिछोवड़ों जांगलू में भिक्षा पात्र तथा चोला एवं लोहावट में पैरके निशानों की पूजा की जाती है। वहाँ प्रतिदिन हवन – भजन होता है और विष्णु स्तुति एवं उपासना, संध्यादि कर्म तथा जम्भा जागरण भी सम्पन्न होता है।विश्नोई समाज का प्रभाव : विश्नोई लोग जात – पात में विश्वास नहीं रखते। अत: हिन्दू -मुसलमान दोनों ही जाति के लोग इनको स्वीकार किया हैं। श्री जंभ सार लक्ष्य से इस बात की पुष्टि होती है कि सभी जातियों केलोग इस सम्प्रदाय में दीक्षीत हुए। उदाहरणस्वरुप, ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र, तेली, धोबी, खाती, नाई, डमरु, भाट, छीपा, मुसलमान, जाट, एवं साईं आदि जाति के लोगों ने मंत्रित जल (पाहल) लेकर इस सम्प्रदाय में दीक्षा ग्रहण की।तीर्थ स्थल ; राजस्थान में जोधपुर,जालोर,बाड़मेर,जैसलमेर ,नागौर ,गंगानगर,भीलवाडा,उदयपुर तथा बीकानेर राज्य में बड़ी संख्या में इस सम्प्रदाय के मंदिर और साथरियां बनी हुई हैं।मुक्तिधाम मुकाम (तालवा) बीकानेर नामक स्थान पर इस सम्प्रदाय का विशाल मंदिर बना हुआ है। यहाँ प्रतिवर्ष फाल्गुन की अमावश्या को एक बहुत बड़ा मेला लगता है जिसमें हजारों लोग भाग लेते हैं। इस सम्प्रदाय के अन्य तीर्थस्थानों में जांभोलाव, पीपासार, संभराथल, जांगलू,लोहावर, लालासार आदि तीर्थ विशेष रुप से उल्लेखनीय हैं। इनमें जांभोलाव विश्नोईयों का तीर्थराज तथा संभराथल मथुरा और द्वारिका के सदृश माने जाते हैं। इसके अतिरिक्त रायसिंह नगर, पदमपुर, चक, पीलीबंगा, संगरिया, तन्दूरवाली, श्रीगंगानगर, रिडमलसर, लखासर, कोलायत (बीकानेर), लाम्बा, तिलवासणी, अलाय (नागौर)एवं पुष्कर आदि स्थानों पर भी इस सम्प्रदाय के छोटे -छोटे मंदिर बने हुए हैं। इस सम्प्रदाय का राजस्थान से बाहर भी प्रचार हुआ। पंजाब, हरियाणा, मध्य प्रदेश एवं उत्तर प्रदेश,महारास्त्र ,कर्नाटका ,देल्ही आदि राज्यों मेंबने हुए मंदिर इस बात की पुष्टि करते हैं।जाम्भोजी की शिक्षाओं का विश्नोईयों पर बहुत अधिक प्रभाव पड़ा। इसीलिए इस सम्प्रदाय के लोग न तो मांस खाते हैं और न ही शराब पीते हैं। इसके अतिरिक्त वे अपनी ग्राम की सीमा में हिरण या अन्य किसी पशु का शिकार भी नहीं करने देते हैं।इस सम्प्रदाय के सदस्य पशु हत्या किसी भी कीमत पर नहीं होने देते हैं। बीकानेर राज्य के एक परवाने से पता चलता है कि तालवा के महंत ने दीने नामक व्यक्ति से पशु हत्या की आशंका के कारण उसका मेढ़ा छीन लिया था।व्यक्ति को नियम विरुद्ध कार्य करने से रोकने के लिए प्रत्येक विश्नोई गाँव में एक पंचायत होती थी। नियम विरुद्ध कार्य करने वाले व्यक्ति को यह पंचायत धर्म या जाति से पदच्युत करने की घोषणा कर देती थी। उदाहरणस्वरुप संवत् २००१ में बाबू नामक व्यक्ति ने रुडकली गाँव मेंमुर्गे को मार दिया था, इस पर वहाँ पंचायत ने उसे जाति से बाहर कर दिया था। इस सम्प्रदाय के जिन स्री – पुरुषों ने खेजड़े और हरे वृक्षों को काटा था, उन्होंने स्वेच्छा से आत्मोत्सर्ग किया है। इस बात की पुष्टि जाम्भोजी सम्बन्धी साहित्य से होती है। इस सम्प्रदाय के जिन स्री – पुरुषों ने खेजड़े और हरे वृक्षों को काटा था, उन्होंने स्वेच्छा से आत्मोत्सर्ग किया है। इस बात की पुष्टि जाम्भोजी सम्बन्धी साहित्य से होती है।महाधिवेशन – ग्रामीण पंचायतों के अलावा बड़े पैमाने पर भी विश्नोईयों का एक महाधिवेशन होता है, जो जांभोलाव एवं मुकाम पर आयोजित होने वाले सबसे बड़े मेले के अवसर पर बैठती थी। इसमें इस सम्प्रदाय के बने हुए नियमों के पालन करने पर जोर दिया जाता है। विभिन्न मेलों के अवसर पर लिये गये निर्णयों से पता चलता है कि इस पंचायत की निर्णित बातें और व्यवस्था का पालन करना सभी के लिए अनिवार्य है और जो व्यक्ति इसका उल्लंघन करता है , उसे विश्नोई समाज से बहिष्कृत कर दिया जाता है। विश्नोई गाँव में कोई भी व्यक्ति खेजड़े या शमी वृक्ष की हरी डाली नहीं काट सकता ।राजस्थान के शासकों ने भी इस सम्प्रदाय को मान्यता देते हुए हमेशा उसके धार्मिक विश्वासों का ध्यान रखा है। यही कारण है कि जोधपुर व बिकानेर राज्य की ओर से समय – समय पर अनेक आदेश गाँव के पंचायतों को दिए गए हैं, जिनमें उन्हें विश्नोई गाँवों में खेजड़े न काटनेऔर शिकार न करने का निर्देश दिया गया है। बीकानेर ने संवत् १९०७ में कसाइयों को बकरे लेकर किसी भी विश्नोईगाँव में से होकर न गुजरने का आदेश दिया। बीकानेर राज्य के शासकों ने समय – समय पर विश्नोई मंदिरों को भूमिदान दिए गए हैं। ऐसे प्रमाण प्राप्त हुए हैं कि सुजानसिंह ने मुकाम मंदिर को ३००० बीघा एवं जांगलू मंदिर को १००० बीघा जमीन दी थी। बीकानेर ने संवत् १८७७ व १८८७ में एक आदेश जारी किया था, जिसके अनुसार थापनों से बिना गुनाह के कुछ भी न लेने का निर्देश दिया था। इस प्रकार जोधपुर राज्य के शासक ने भी विश्नोईयों को जमीन एवं लगान के सम्बन्ध में अनेक रियायतें प्रदान की थीं। उदयपुर के महाराणा भीमसिंह जी और जवानसिंह जी ने भी जोधपुर के विश्नोईयों की पूर्व परम्परा अनुसार ही मान – मर्यादा रखने और कर न लगाने के परवाने दिये थे।...

Caste certificate

सरकार कहती है
जाति-पाती हटाओ
और
कानून कहता है
जाति प्रमाण
पत्र ले आओ
ये लोकतंत्र है या
षड़यंत्र है
कुछ समझ नही आता !!

Home remedy for cancer

दोस्तो अगर आपके आसपास या किसी भी परिचित या अपरिचित को केंसर हो किसी भी प्रकार का तो आप उस मरीज के घर पर जाये ओर उसके परिवार या खुद मरीज को समझाये की उसकी जो भी दवाएं केंसर की चल रही हे चलने दे ओर वह साथ मे शीशम के पेड के पत्तों का ज्युस भी दस से पंद्रह दिनों तक लेवें ओर उसके बाद शीशम के पत्ते को चबाना हर रोज शुरू करें देखते देखते ही आपको केंसर के मरीज के अंदर शानदार बदलाव आने दिखने लगे गे ओर यह बिमारी खत्म होजाती है दोस्तों आपका ओर मेरा छोटा सा प्रचार किसी के भी परिवार मे वापिस खुशियां ला सकता हे तो प्लीज यह काम आप आज से शुरु करे ।

दुःख दुसरो को हो या अपनों को दुःख दुःख होता है
आपको कुछ नहीं करना है बस इस msg को कॉपी करो और दुसरो के ग्रुप्स में पेस्ट करदे ।

Medication and treatment in AIIMS

नई दिल्ली - देश का सबसे बड़ा हॉस्पिटल एम्स में इलाज कराना हुआ और आसान। आधार कार्ड नम्बर दीजिये और आन लाइन रजिस्ट्रेशन कराइये। एम्स ने इसकी शुरुआत कर दी है।

जी हाँ एम्स ने ये पहल आज से शुरू कर दिया है। अब आपको ओपीडी कार्ड बनाने के लिये लम्बी लम्बी लाइन में लगना नहीं पड़ेगा और ना ही किसी दलाल के चक्कर में पड़ना पड़ेगा। इसके लिए आपको सिर्फ aiims की वेबसाइट पर जाना है और ओपीडी पर क्लिक करना है। इसमें ऑप्शन आयेगा न्यू रजिस्ट्रेशन एवं ओल्ड रजिस्ट्रेशन का। आपको अपना आधार कार्ड नं० डालना है। उसमें आपकी सारी डिटेल आ जायेगी। अब आपको जिस विभाग में दिखाना है उस पर क्लिक करना है। उसके बाद पेमेंट का ऑप्शन आयेगा। आपको क्रेडिट कार्ड या एटीएम कार्ड का नं० डालना है और ओके पर क्लिक करना है। बस हो गया आपका रजिस्ट्रेशन। अब आपके मोबाइल पर मेसेज आ जायेगा जिसमें रजिस्ट्रेशन नं० से लेकर डाक्टर का नाम और दूसरी सारी जानकारी आपके मोबाइल पर आ जायेगा .

Friday 17 July 2015

नई सोच को सलाम


मोदी सरकार को अब दारु दुगुने दाम पर बेचनी चाहिए !

और आधा पैसा पीने वाले की पत्नी के अकाउंट में सब्सिडी की तरह वापस कर देना चाहिए जिससे ये फायदे होंगे !

1. पति लिमिट में पियेगा, क्योंकि उसके नशे की मात्रा उसकी पत्नी के bank balance के बराबर रहेगी ।

2. पत्निया अपने पतियों को पीने के लिए कभी मना नही करेंगी ।

3. पत्नी को मालूम रहेगा, आज पति ने कितनी पी ।

4. जिस की पत्नी का अकाउंट नहीं है वो भी खुल जाएगा ।

( हो सकता है किसी किसी की पत्नी को आयकर - रिटर्न भी दाखिल करना पड़े  । )

नई सोच को सलाम

Thursday 16 July 2015

पत्नि के प्रिय जुमले

पत्नि के प्रिय जुमले
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आप इनसे वंचित हैं तो यकीन मानिए कि आप बहुत शौभाग्यशाली है।
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शादी के तीन महीने बाद
क्या कर रहे हैं  ? कोई आ जाएगा, थोड़ी बहुत शर्म-वर्म है कि नहीं ?
शादी के चार महीने बाद
सोने दो, तुम्हारी माँ चाहती है कि सुबह छः बजे मैं मन्दिर में उनके साथ घंटियां बजाऊँ।
छह महीने बाद
मेरे मैके नहीं तो, अपनी ससुराल ही ले चलो।
दस महीने बाद
एेसी हालत में शर्मा जी अपनी पत्नी का कितना ध्यान रखते हैं, और एक तुम हो कि  ?
बारह महीने बाद
अपनी माँ की तरह बातें मत करो ,लडका हो या लडकी क्या फर्क पड़ता है   ?
पन्द्रह महीने बाद
जब तुम दुबले-पतले हो तो गुडिया आठ पौण्ड की कैसे होती ,हर बात में मुझे ही दोष देते हो ।
अट्ठारह महीने बाद
हाँ-हाँ सब गुडिया से बहुत प्यार करते हैं ,लेकिन चैन ,अंगुठी तो मेरे मैके वालों ने ही दी ,देख लिया सबका प्यार ।
दौ साल बाद
बिट्टो को बुखार है ,और तुम आफिस की फाइलों में सर खफा रहे हो   ?तुममें अक्ल नाम की कोई चीज है कि नहीं  
तीन साल बाद
कान्वेंट में ही डालेंगे ,नहीं तो अपने बाप की तरह रह जाएगी ,और तुम तो इस मामले में नहीं बोलो तो अच्छा है ।
चार साल बाद अब तुम्हारा भी एक परिवार है ,कब तक माँ बाबूजी के पल्लू से चिपके रहोगे ।बढे भैया को देखो ,कितनी चतुराई से अलग हो गये ।
↪पांच साल बाद
नौकरी बदलो ,ओवर टाईम करो ,डाका डालो ,अब हमारे खरचे बढ़ गये हैं ,पप्पू के खिलौने तक नहीं खरीद पाती ,जबकि पप्पू की डिलिवरी तक मेरे मैके मे हुई है ,यह कोई रिवाज है भला   ?
छह साल बाद
ये मकान ठीक नहीं है ,एक रूम कम पडता है ।
सात साल बाद
बच्चों के चक्कर में मुझे तो बिल्कुल भूल ही गये ,पांच साल से एक अंगुठी तक नहीं दिलवाई ।
आठ साल बाद
नासिक वाले इंजिनियर ने कितने कितने चक्कर काटे थे ,पर मुझे तो तुम्हारे साथ ही बर्बाद होना था ।
नौ साल बाद ↪
कोई अहसान नहीं करते हो ,जो कमा कर खिलाते हो ,सभी खिलाते हैं ।
दस साल बाद
बच्चों के नम्बर नहीं आये तो मैं क्या करूं   ?अकेली दोनों को पढाती हूँ ।तुम्हारे पास न तो टाइम है ना इन्हे पढाने की अकल ।
ग्यारह साल बाद
खरचा कम नहीं होगा ,कमाई बढाने की चिन्ता करो ,और बाबूजी के पी .एफ का क्या हुआ।  ?मकान के वक्त तो कुछ दिया नहीं ,अब जरा सी हेल्प नहीं कर सकते ,या राम ,भरत को ही देंगे ,राजगद्दी   ?
बारह साल बाद
मेरे पापा ने मेरी शादी की जिम्मेदारी ली थी ,तुम्हारी बहन भतीजों की नहीं ,शादियों में इतना वक्त दे रहे हैं ,यह कम है क्या   ?
तेरह साल बाद
ट्रान्सफर हो गया है तो मैं क्या करूं   ?मैं अपने बच्चों के साथ कहीं नही जाने वाली ।
चौदह साल बाद
क्या खाक मजा आया ,बच्चे तो बोर हो गये ,तुममें स्टेशन ढूंढने की भी तमीज नहीं है ,और होटल भी क्या था ,धर्मशाला जैसा ।
पन्द्रह साल बाद
लौट आये ना   ?पहले ही कोशिश करते तो ट्रान्सफर होता ही नहीं ,लेकिन तुममें इतनी स्मार्टनेस कहाँ है सोलह साल बाद
बच्चे बड़े हो गये हैं ,उनसे ढंग से बात किया करो ,ये मेरा घर है ,तुम्हारा दो टके का आफिस नहीं ।
सत्रह साल बाद
बच्चे घूमने चले गये तो कौन-सा पहाड टूट गया ,सब जाते हैं ।तुम्हारे भरोसे तो केवल सब्जीमंडी देख सकते हैं ।बात करते हो ।
अट्ठारह साल बाद
डाक्टर ने आराम करने को कहा है ,पर मेरी जान तो घर का काम करते -करते ही निकल जायेगी ।
उन्नीस साल बाद
हो जाता है इस उम्र में ,बिट्टो को समझा दिया है ,अब वो देर रात तक बाहर नहीं रहेगी ,पर तुम शुरू मत हो जाना ।
बीस साल बाद
मोटर साइकिल चलाएगा तो गिरेगा ही ,पहले ही कहा था ,कार दिला दो ,तब तो बजट का रोना रो रहे थे ।
इक्कीस साल बाद
डायबिटीज हो गयी है तो मै क्या करूं   ?जुबान पर तो लगाम है नहीं ,तीन-तीन बार मीठा ठूंसते रहते हो ,दवा लो ।
बाइस साल बाद ↪
ये गीता भाभी का इतना ध्यान क्यों रखते हो   ?इस उम्र में नाक कटवाओगे क्या   ?
तेईस साल बाद
अपने भाईयों के साथ बिजनेस नहीं करोगे   ?बस नौकरी तो ठीक से होती नहीं ।बिजनेस करेंगे वो भी शातिरों के साथ ।
चौबीस साल बाद
हाँ-हाँ ,तो अपने बूते पर ही की है ,अपनी बिट्टो की शादी ,तुम्हारे परिवारवाले तो मेहमान बन कर आये थे ,मेरा भाई नहीं आता तो लडकी की डोली तक नहीं उठती ।
पच्चीस साल बाद
रहने दो ,काहे की सिल्वर जुबली ,मेरा तो जिगर और फिगर दोनो खराब करके रख दिया तुमने ।अच्छा मना लो ,पर ज्यादा पटर-पटर मत करना और सब से गिफ्ट भी लेना ,हमने भी पचासों जगह बांटी है ।
छब्बीस साल बाद
पढी -लिखी बहू है तो अपने ढंग से रहेगी ही ,कानपुर वाली तो तुम बाप-बेटे को जमीं नहीं ,अब भुगतो ।
सत्ताईस साल बाद
ससुर-नाना हो गये हो ,ये फटे पाजामें में हाल में मत आया करो ,मुझे शर्म आती है ।
अठ्टाईस साल बाद
तुम्हे जाना है तो जाओ ,मै कहीं नहीं जाऊँगी ,पोते को कौन सम्भालेगा   ?बहू में अक्ल है क्या   ?
उन्तीस साल बाद
कोई मन्दिर-वन्दिर नहीं ,तीस साल हो गये घंटियाँ बजाते ,क्या दिया भगवान् ने ,तंगी में ही जी रहे हैं न।  ?
तीस साल बाद
देख लो ,बीमारी में मैं ही काम आ रही है ,बडा दम भरते थे भाई-भाभी का ,कोई झांकने तक नहीं आया ,चिल्लाओ मत ,अभी खांसी शुरू हो जायेगी ।
इकत्तीस साल बाद
आपरेशन से पहले वी.आर एस ले लो ,क्या पता बाद में नौकरी करने लायक रहो ना रहो   ?
बत्तीस साल बाद
सुबह से हल्ला मत मचाया करो ,पचास काम होते हैं घर में ,मै तुम्हारी तरह रिटायर नहीं हूं ,सुबह से शाम तक सबके लिये खटती हूँ ।
तैंतीस साल बाद
भैया आप तो इन्हें ले जाओ ,सुबह से शाम तक सबका जीना हराम कर रखा है ,परेशान हो गये हैं ,क्या मुसीबत है   ?
चौंतीस साल बाद
पप्पू ,सारे पेपर अपने नाम करवाले बेटा ,अब तेरे पापा का कोई भरोसा नहीं ,तबीयत सम्भल भी गयी तो दिमाग की क्या गारंटी है   ?
पैंतीस साल बाद
क्या कर रहे हो   ?कोई आ जाएगा ।थोडी शर्म-वर्म है कि नहीं   ?
जिस किसी भी पडाव में है भुगतते रहे , कुढते रहे । नमस्कार

CCE

CCE सबंधित प्रधानाध्यापक के कर्तव्य__
1.मासिक स्टाफ बैठक लेकरCCE गतिविधियों की समीक्षा करना।
2.शिक्षक योजना डाईरी नियमित रूप से संधारित की जा रही है या नही।
3.विषय अध्यापको द्वारा पाक्षिक योजना बनाई जा रही है या नही।
4.साप्ताहिक समीक्षा की जा रही हे या नही।
5.प्रत्येक माह check list भरी जा रही या नहीं।
6.समय पर टर्म के अनुसार पाठ्यक्रम पूरा किया जा रहा है नही।
7.कक्षा स्तर से निचे वाले बालको के लिए अलग से पाक्षिक योजना बनाई जा रही है या नहीं।
8.पोर्ट फोलियो अप डेट की जा रही है या नही।
9 .अभिभावक बैठक लेवे।
10.बच्चों के कक्षा स्तर  में सुधार हो रहा है या नहीं।

पोर्ट फोलियो में लगाये जाने वाले कागज
1 baseline copy
2स्वास्थ्य संबंधी रिपोर्ट।
3बालक के नैतिकता सामाजिक सहयोग सम्बन्धी गुण
4समय की पाबन्दी सम्बंधित गुण
5प्रोजेक्ट कार्य (प्रति सप्ताह एक बार)
6प्रत्येक विषय के सप्ताह में दो बार पेन पैपर क्लास टेस्ट लेकर कोपिया ।
7 अभिभावक सूचना पृष्ठ।
जिसमे अभिभवक को बालक की सभी प्रकार की गतिविधियों की सुचना देकर उसके हस्ताक्षर लेवे और विषय अध्यापक भी date लगाकर हस्ताक्षर करे।

CCE सम्भन्धित महत्व पूर्ण जानकारी __1 .कक्षा 1 की baseline नहीं लेनी है।
2.पर्यावरण की baseline नहीं लेनी है।
3.CCE में बच्चों को नम्बर नहीं देना है।केवल कॉपी के अंत में शिक्षक टिप्पणी लिखकर हस्ताक्षर करके date लगानी है।
4.टिप्पणी का तरीका...बालक अनिल कक्षा 4 में नामांकित हे और यह गणित विषय मे कक्षा 4 या 3 या 2 का स्टर रखता है ।यह शिक्षक की सहायता से कार्य कर सकता हे अतः यह B grade के अंतर्गत आता है।
5.प्रत्येक बालक की एक personal फाइल(पोर्ट फोलियो) बनानी है।
6.पोर्ट फोलियो में निम्न दस्तावेज लगावे....
A.बालक का विवरण(biodata) ।
बालक के स्वास्थ्य, नैतिकता, सामाजिक सहयोग, कला, संगीत, समय की पाबन्दी, अनुशाशन, अन्य मानवीय गुणों और उसकी अच्छी आदतो के बारे में टिप्पणी समय समय पर लिखे।
C.सप्ताह में दो बार पेन पेपर टेस्ट लेकर (एक या दो प्रश्न) उसे जांच कर टिप्पणी लिखे और पोर्ट फोलियो में लगाये ।
D.ऐसा प्रत्येक विषय में करे।
E. 15 दिन में एक बार बालक के अभिभावक से सम्पर्क कर उसे बच्चे के स्टर की जानकारी देवे और पोर्ट फोलियो में अभिभावक के हस्ताक्षर लेवे।

Wednesday 15 July 2015

Basic education and level of Govt. School

न्यूज चैनल पर "राजस्थान की बेसिक शिक्षा का गिरता स्तर" पर चर्चा चली जिसमें अनेक विद्वान लोगों ने भाग लिया और अपने अपने तर्क दिये। इस सम्बन्ध में टीवी पर बैठे लोगों से मैं एक प्रश्न करना चाहता हूँ कि आपमें से किसका बच्चा है जो केवल क्लास में ही पढ़ता है और घर पर किताब उठाकर न देखता हो और बिना अभिभावक अथवा ट्यूटर के मेधावी बन गया हो।
आज बेसिक शिक्षा बदहाल तब दिखाई पड़ती है जब इसकी तुलना कान्वेंट स्कूल से की जाती है जबकि कान्वेंट व परिषदीय विद्यालयों में पढ़ने वाले बच्चे की पृष्ठभूमि में कोई नहीं जाना चाहता है।
कान्वेंट स्कूल में बच्चे के प्रवेश से पूर्व बच्चे के माता पिता की योग्यता का test होता है। फिर बच्चे का टेस्ट होता है। प्रवेश के पश्चात अभिभावक मोटी मोटी रकम फीस व किताबों में खर्च करता है बच्चे को विद्यालय से आने जाने वाले वाहन पर भी मोटी रकम खर्च करता है। अभिभावकों के शिक्षित होने के कारण इतनी मोती रकम खर्च करने के उद्देश्य को वो शिक्षित अभिभावक भलीभांति जानते है और उनका पहला उद्देश्य मात्र अपने बच्चे की शिक्षा होती है।
शिक्षित व समृद्ध अभिभावक प्रतिदिन सुबह को अपने बच्चे को स्कूल की वै स्वयं आने से पूर्व समय से उठाकर पढाते है उसके पश्चात् नहलाकर uniform पहनाते है माँ बड़े प्यार से लंच बॉक्स तैयार करके उसके बैग में रखती है और घर से बाहर सड़क पर खड़े होकर वैन आने का इंतजार करते है जब बच्चा वैन में बैठ कर स्कूल चला जाता है उसके बाद माँ बाप की अपनी निजी जिंदगी के काम शुरू होते हैं।
बच्चे की छुट्टी के पश्चात् माँ बाप उसको रिसीव करने के लिए चिन्तित होते है और व्यापारी अपना व्यापार नौकरपेशा अपनी ड्यूटी से समय निकालकर बच्चे को रिसीव करता है।
बच्चा घर आने के बाद निर्धारित टाइम टेबिल के अनुसार टीवी देखता एवं खेलता है उसके पश्चात् माँ पिता स्वयं अथवा ट्यूटर बच्चे को लेकर बैठते है और स्कूल में कराये काम का 4 गुना काम होम वर्क के रूप में पूरा कराते है। यहाँ तक कि बच्चा सोने से पहले भी याद (learn) करता है।
छोटे छोटे बच्चों को स्कूल से प्रोजेक्ट के नाम पर ऐसे ऐसे काम मिलते जो छात्र तो कर ही नहीं सकता माता पिता को भी करने में पसीने छुट जाते हैं उसको तैयार करने में बाज़ार की खाक छाननी पड़ती है।
प्रति माह होनी वाली पेरेंट्स मीटिंग में चाहे व्यापार बंद करना पड़े अथवा नौकरपेशा को CL लेनी पड़े लेकिन मीटिंग में भाग लेकर अपने बच्चे से जुडी जानकारी लेते है।
कहने का अभिप्राय है कि उक्त अभिभावक वो है जो शिक्षित व समृद्ध हैं और अपने बच्चे को ही अपना भविष्य व पूँजी मानकर अपनी खुद की इच्छाओं से ज्यादा मेहनत अपने बच्चे पर करते हैं।
इसका दूसरा रूप सरकारी स्कूल में पड़ने वाले छात्र व उसके अभिभावक है। इन स्कूल में आने वाले 80% बच्चों के अभिभावकों को बच्चे के एड्मिसन से कोई मतलब ही नहीं है अध्यापक स्वयं गली अथवा गाँव में जाकर बच्चों को खोजकर उनका प्रवेश स्कूल में करता है जिसको प्रतिदिन अथवा समय से विद्यालय भेजने के प्रति उसके माता पिता को कोई मतलब नहीं होता है बल्कि जब बच्चे को कोई काम घर पर नहीं होता है तब बच्चा स्कूल की ओर रुख करता है इससे भी बड़ा एक और कारण कि ये ऐसे माता पिता है जिन्हें बच्चे की शिक्षा से पहले अपनी रोजी रोटी कमानी होती है आज कक्षा 5 से लेकर 8 तक का बच्चा 100 से लेकर150 रु रोज कमाता है इन गरीब बच्चों के माँ बाप आज इन बच्चों से पहले कमाई करवाना पसन्द करते है और समय बचे तो स्कुल भेजना होता है।
ग्रामीण क्षेत्र के सरकारी स्कुल का छात्र जब सुबह उठता है तो पहले घर के पालतू पशुओं के चारे की व्यवस्था करता है उसके पश्चात खेती या मजदूरी का काम देखता है और जब कोई काम नहीं होता तो खाली समय में स्कूल आता है उस दिन स्कूल में जो पड़कर जाता है उसे घर पर देखने वाले न अभिभावक हैं न ट्यूटर है।अर्थात जहाँ CONVENT स्कूल के छात्र के हाथ में 24घंटे में से लगभग 10 घंटे किताब होती है बहीं सरकारी स्कूल के छात्र के हाथ में हसिया या खुरपी होती है। एक ओर वो अभिभावक है जिसे उसका बच्चा ही सब कुछ है एक ओर वो है जिसे अपने भूखे पेट को भरने के लिए रोजी रोटी ही सब कुछ है।
पत्रकारों का कहना है कि कक्षा 2 के बच्चे को नाम लिखना नहीं आता ।मैं कहता हूँ कि कक्षा 2 यानि कान्वेंट का नर्सरी ,क्या नर्सरी का बच्चा अपना नाम लिख सकता है मुफ्त भोजन के चक्कर में न समझ अभिभावक 3-3 साल के बच्चे की उम्र अधिक बताकर कक्षा 1 में प्रवेश दिला देते हैं यानि 3साल पहले। जबकि कान्वेंट में PLAY,NURSARY,JUNIOR KG,SENIOR KG उसके बाद कक्षा1 में बच्चा आता है।आज परिषदीय स्कूल का कक्षा 4 के छात्र की आयु CONVENT वाले कक्षा 1 के छात्र के बराबर है।सरकार ने नीति बना दी कि बच्चे को फेल नहीं करना है। और इन स 1 में बच्चा आता है।आज परिषदीय स्कूल का कक्षा 4 के छात्र की आयु CONVENT वाले कक्षा 1 के छात्र के बराबर है।सरकार ने नीति बना दी कि बच्चे को फेल नहीं करना है। और इन सब के बावजूद हमेशा फंसता कौन है। कृपया पूरा लेख जरूर पढ़ें...
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एक शिक्षक की कलम से....
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वर्तमान परिस्थिति के कुछ सटीक विश्लेषण..
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मेरे प्रिय शिक्षक साथियों।
बहुत समय से मैं आत्मसंघर्ष से गुजर रहा हूँ
विचारों में, कर्म में और अभिव्यक्ति में भी।
परन्तु वस्तुत: मानसिक संघर्ष को आज आपके समक्ष व्यक्त करने से स्यवं को रोक नहीं पा रहा हूँ।
शिक्षक होना अपने आप में गर्व की बात है।
परन्तु अब ऐसा लग रहा है इस विकल्प को चुनकर घोर अपराध किया है। उस पर प्राथमिक शिक्षक होना "एक तो करेला ऊपर से नीम चढ़ा" वाली कहावत को चरितार्थ करता है।
सरकारी स्कूलों मे प्राथमिक शिक्षा की दशा अत्यन्त शोचनीय है। यह कहने की आवश्यकता भी नहीं है। लेकिन ऐसी स्थिति के लिए जिम्मेदार किसे माना जाए यह यक्ष प्रश्न मेरे सम्मुख काफी समय से मुँह बाए खड़ा है, परन्तु जितना चिन्तन करता हूँ समस्या गहरी और बहुमुखी प्रतीत होती जाती है।
कभी प्रशासनिक स्तर, कभी संस्थागत स्तर पर, कभी व्यक्तिगत स्तर पर, कभी सामाजिक स्तर पर और कभी चयन के स्तर पर। परन्तु समस्या एक शिक्षक के लिए बहुआयामी है जबकि शेष समाज,
सरकार, प्रशासन के लिए समस्या एकल-आयामी है। वह शिक्षक को घूर के देखता है जैसे वही अपराधी हो।
बेसिक शिक्षा की सारी दुर्दशा का एकमात्र दोशी शिक्षक को माना जा रहा है। अच्छी विडम्बना है।
अब बात अपने प्राथमिक शिक्षा को लेकर करता हूँ। मैं भी सरकारी प्राथमिक स्कूल से कक्षा 5 उत्तीर्ण हूँ। तब न सही भवन थे, न ही किताबें मिलती थी, न ही ड्रेस मिलती थी, न ही मध्याह्न भोजन की व्यस्था थी, विद्यालय भी प्राय: दूर ही होते थे। प्रशासनिक नियन्त्रण व हस्तक्षेप न के बराबर था। परन्तु शिक्षा आज से कई गुना बेहतर थी। शिक्षक भी पर्याप्त संख्या में प्रत्येक विषय के अलग-2। शिक्षण के अलावा कोई कार्य नहीं था। न रोज सूचना देना था, न खाना बनवाना था, न बिल्डिंग बनवानी थी, न आडिट करवाना था, न प्रधान के घर के चक्कर लगाने थे और न अधिकारियों की चापलूसी करनी थी। मेरे प्राथमिक शैक्षिक जीवन में कभी विद्यालय का निरीक्षण भी न के बराबर हुआ। फिर भी अच्छी पढ़ाई होती थी। आज इसके जवाब में कहा जाता है तब शिक्षक ईमानदार चरित्रवान होते थे, पर आज नही है। अगर आज ईमानदार चरित्रवान शिक्षक कम हैं तो इसका जिम्मेदार कौन है..??? क्या चयन प्रणाली इसके लिए जिम्मेदार नही है..??? आज शिक्षक को कर्मचारी बना दिया गया है। किसने बनाया खुद शिक्षक ने..??? सरकार ने पहले उन्हे बिल्डर, टेलर, बुक सेलर, खानसामा, विभिन्न विभागों के भिन्न-2 पदों के कार्य सौंप दिये जैसे राजस्व विभाग, पंचायत विभाग, खाद्य आपूर्ति, स्वास्थ्य आदि । अब जब कर्मचारी बन गए हैं तो स्वाभाविक है कि कुछ गुण कर्मचारी के आ ही जाएंगे।
वाह रे नीति नियन्ता। अब उपदेश देते हैं शिक्षक धर्म का पालन करो।वो भी बिना किसी अधिकार के। जैसे बंगाल में ईस्ट इंडिया कंपनी ने 1765-72 तक द्वैध शासन चलाया था। जिसमें अधिकार कंपनी के पास और कर्तव्य सारे नवाब करें। वैसी हालत हमारे बेशिक शिक्षा की है।
जब तक शिक्षा की नीति रीति शिक्षक स् नही बनाएगा और ऊपर से हवा-हवाई नीतियाँ बनेगी तब तक शिक्षा व्यवस्था सुधरने से रही। दंडात्मक प्रक्रिया चलती रहेगी, प्रशासनिक हस्तक्षेप बढ़ता रहेगा, साथ ही शिक्षकों का शोषण बढ़ता रहेगा जिससे शिक्षा व्यवस्था का स्तर गिरता रहेगा। शिक्षा विभाग मे आज भी एक से बढ़कर एक बहुत से विद्वान शिक्षक मौजूद हैं परंतु चापलूसों और चाटुकारों के आगे उनकी कोई पहचान नहीं है।

G.P.F.खातों के BALANCE ENQUIRY

सरकारी कर्मचारियों के G.P.F.खातों के BALANCE ENQUIRY के लिए इस URL पर जाकर जाकर अपने BALANCE की जानकारी ले सकते है
http://www.sipfportal.rajasthan.gov.in/sipf/Signin.aspx

Check service book online- Also you can edit

सभी अधिकारी कर्मचारी अपनी अपनी सेवा पुस्तिका (सर्विस बुक) का इंद्राज ओन लाइन देखे। और जो जो इंद्राज की कमी लगे वो आप खुद फिल अप करे।
आप द्वारा किये गए इन्द्राज को आपका DDO अवलोकन कर उसे वेरिफाई करेगा।

DDO के वेरिफिकेसन के बाद आपकी सर्विस बुक ओन लाइन हो जायेगी।
लोग इन का तरीका इस तरह हे।

http://ihrms.raj.nic.in/

इस URL को ओपन करे।
लोग इन बटन पे क्लिक करे।
User Name में आपकी एम्प्लॉई ID लिखे। जेसे ये मेरी ID का एक्जाम्पल दे रहा हूँ।
RJPA199129008650
पासवर्ड में भी आपकी एम्प्लॉई ID लिखे।
RJPA199129008650

वहीँ पे आपको चार अंको का कोड दिखेगा। जो आपको तीसरे कॉलम में लिखना हे।
ये तीनो कॉलम भरने के बाद लोग इन पे क्लिक करे।
तत पश्चास्त
नया पेज खुलेगा।
वहाँ आपको नया पासवर्ड बनाने के लिए कहा जायेगा।

जो आप अपने हिसाब से बना सकते हे। वहाँ आपको अपना नाम नजर आ जायेगा। जेसे साबीर मोहम्मद ड्राईवर Addcmho Pali
फिर आप एक एक पेज खोल कर फिल अप डेटा का अवलोकन करे।
जो डेटा सही हो उसको न छेड़े।
और जो सही न हो उसे आप एडिट करे और ख़ाली पड़े कॉलम में भी आप अपने सही सही जानकारी (डेटा) भरे। और सबमिट करे।

फिर आपका DDO समस्त डेटा को चेक करके वेरिफाई करेगा।
इस तरह आपकी सर्विस बुक ऑनलाइन तैयार हो जायेगी।

ये हम सब के लिए बहुत जरूरी हे।
क्योकि सर्विस बुक हमारी नोकरी का एक महत्व पूर्ण दस्तावेज हे।