व्यापम की कहानी निष्पक्ष जुबानी
व्यापम में हो रही अनियमितताओं की जाँच के लिए 2009 में आनंद राय नामक एक शख्स ने जनहित याचिका लगायी, जिस पर संज्ञान लेते हुए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने एक इन अनियमितताओं की जाँच के लिए आयोग का गठन किया जिसकी रिपोर्ट 2011 में आयी,
इस जाँच रिपोर्ट को अाधार मान कर 2011 से इसी सरकार ने इसमें लिप्त लोगो की धरपकड़ शुरू की गयी, जिसमे हर दिन नयी नयी चौकाने वाली जानकारियाँ सामने आने लगी, ये सब 2004 से चलता आ रहा था,
एक गिरोह इसके पीछे सक्रिय था, जिसमें एक के बदले दूसरा विद्यार्थी परीक्षा देने बैठ जाता था, कुछ चुनिंदा स्टूडेंट्स को एक साथ रोल नंबर अलॉट कर उन्हें सामूहिक नक़ल करायी जाती थी, और सब से खतरनाक था स्टूडेंट्स की ओएमआर शीट्स में उनके नंबर बढ़ाना, ये सब किसी बाहरी गिरोह द्वारा संभव नहीं था, इसके तार बड़े पैमाने में व्यापम के अंदर जुड़े हुए थे,
इन सारी बातो को ध्यान में रखते हुए राज्य सरकार ने 2013 में इसकी जाँच के लिए स्पेशल टास्क फ़ोर्स(STF) का गठन किया,
नवंबर 2013 में एसटीएफ ने एक और बड़ा खुलासा किया, ये फर्जीवाड़ा सिर्फ पीएमटी की परीक्षा में नहीं बल्कि व्यापम द्वारा आयोजित और कई अन्य परीक्षाओ जैसे प्री पीजी, फ़ूड इंस्पेक्टर, सब इंस्पेक्टर, मिल्क फेडरेशन और पुलिस कांस्टेबल भर्ती में भी किये गए थे,
अब इस बात के पुख्ता सबूत मिल चुके थे कि व्यापम के अंदर का सिस्टम किसी बाहरी गिरोह के साथ मिलकर इन सारे कारनामो को अंजाम दे रहा था,
फिर जाँच की रिपोर्ट आते आते लोगो की गिरफ्तारियां शुरू हुयी, जिसमें सबसे बड़ा नाम था मध्यप्रदेश के तकनिकी शिक्षा मंत्री जिनके अंतर्गत व्यापम काम करता था, लक्ष्मी नारायण शर्मा, डॉ. विनोद भंडारी, डॉ. जगदीश सागर जो मेडिकल स्टूडेंट्स के लिए व्यापम के कुछ लोगो के साथ मिलकर उनका रोल नंबर एक साथ अलॉट कराते थे ताकि उन्हें सामूहिक नक़ल करायी जा सके , मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा के ओएसडी ओ.पी. शुक्ला, व्यापम के परीक्षा नियंत्रक पंकज त्रिवेदी, स्टूडेंट्स की ओएमआर आंसर शीट से छेड़छाड़ कर उनके नंबर बढ़ाने वाले व्यापम के सिस्टम एनालिस्ट नितिन महेंद्र और अजय सेन, व्यापम के एक अधिकारी सी.के. मिश्रा जो डॉ. विनोद भंडारी और डॉ. जगदीश सागर से पैसे लेकर उनके चहेते स्टूडेंट्स को एक साथ रोल नंबर अलॉट करते थे, मध्यप्रदेश के बड़े खनन कारोबारी सुधीर शर्मा, मध्यप्रदेश के राज्यपाल रामनरेश यादव और उनके पुत्र शैलेश और फर्जीवाड़ा करके मेडिकल कॉलेजों में दाखिला लेने वाले सैकड़ो मेडिकल स्टूडेंट्स गिरफ्तार हुए, बाहरी गैंग का भांडाफोड़ हुआ जो असली स्टूडेंट्स के बदले परीक्षा देने दूसरे राज्यों से मेडिकल कॉलेज के छात्रो को बुलवाता था,
इन सब के बीच के एसटीएफ द्वारा बतौर परिश्रमिक पर रखा हुआ एक आईटी कंसलटेंट प्रशांत पाण्डेय एसटीएफ द्वारा ही की गयी जाँच और उसमे आरोपियों की इनफार्मेशन लीक करके लोगो से पैसे वसूलता गिरफ्तार हुआ,
बस यहीं से इस पूरी घटना में नाटकीय मोड़ आया, क्योकि प्रशांत पाण्डेय दिग्विजय सिंह की शरण में पंहुचा और प्रशांत पाण्डेय का सहारा लेकर दिग्विजय सिंह को अपनी बंजर हो चुकी राजनीतिक जमीन फिर से उपजाऊ होती नज़र आने लगी, अतिउत्साह में दिग्विजय सिंह एसटीएफ के दस्तावेज जमा करने के पहले ही आरोपियों की 15 पेज की एक्सेल शीट एक शपथपत्र के साथ जाँच कमिटी के अध्यक्ष को सौंप आये, जाँच कमिटी ने संज्ञान लेते हुए एसटीएफ द्वारा और दिग्विजय सिंह द्वारा जमा की गयी दोनों एक्सेल शीट्स की फोरेंसिक लैब में जाँच करायी जिसमें दिंग्विजय सिंह द्वारा जमा की गयी एक्सेल शीट जस्टिस खानविलकर द्वारा फर्जी बताकर रद्द की गयी,
सिर्फ यही नहीं दिग्विजय सिंह ने मध्यप्रदेश उच्च न्यायलय में सीबीआई जाँच के लिए याचिका लगायी, लेकिन माननीय उच्च न्यायलय ने एसटीएफ की जाँच को संतोषप्रद बताते हुए इस मामले की निगरानी हेतु एक तीन सदस्यीय एसआईटी गठित की जिसके द्वारा अब मामले की जाँच की निगरानी की जा रही है,
दिग्विजय सिंह 1992 से 2002 तक मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री रहे 2002 तक मध्यप्रदेश की गिनती बीमारू राज्यों में की जाती रही, लोग सड़क, बिजली, पानी जैसी बुनियादी सुविधाओ के लिए तरसते रहे, लेकिन अब 2002 के बाद अब मध्यप्रदेश की जीडीपी ग्रोथ 121% बढ़ गयी, मध्यप्रदेश की कुल विकास दर 11.98% हो गयी और सब से शानदार प्रदर्शन कृषि के क्षेत्र में हुआ कृषि विकास दर 24.99 % पर आ गयी,
अगर शिवराज सिंह चौहान इस मामले में दोषी होते तो वो कभी इस मामले पर संज्ञान लेकर जाँच नहीं बिठाते, एसटीएफ से जाँच नहीं कराते, और अगर कराते भी तो कुछ छोटी मछलियो को पकड़ के खाना पूर्ति की कार्यवाही कर दी जाती, जाँच कि आंच कभी उनके मंत्री या उस प्रदेश के राज्यपाल तक नहीं पहुंच पाती, और पकड़े गए इतने लोगो में कोई न कोई उन पर प्रत्यक्ष रूप से आरोप जरूर लगा चुका होता,
शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में मध्यप्रदेश विकास की नयी ऊंचाइयों तक पहुंचा है, इस मामले से जुड़े लोगो की संदिग्ध मौतों पर सवाल उठने बिलकुल लाज़मी हैं, इस मामले में जितनी मौते हुयी है उनमे से अधिकतर सड़क हादसे में हुयी हैं, अब ये मामला सिर्फ मध्यप्रदेश का नहीं पूरे देश का है,
कोई एक संगठित गिरोह है जो हर राज्य में प्रतियोगी परीक्षाओ के प्रश्न पत्र लीक कर या और कई अन्य तरीको से फर्जीवाड़ा कर रहा है, अभी हाल ही उत्तरप्रदेश में एसडीएम भर्ती परीक्षा में 86 में 54 एसडीएम एक विशेष वर्ग से ही चुनकर आये,
क्योंकि व्यापम में हेर फेर पकड़े जाने के बाद भी छत्तीसगढ़ जैसे अन्य कई राज्यों में प्रतियोगी परीक्षाओ के प्रश्नपत्र लीक हुए हैं और अभी हाल ही में ऐसे किसी गिरोह ने एआईपीएमटी का पर्चा लीक किया जिसके कारण एआइपीएमटी की परीक्षा भी रद्द की गयी,
शिवराज सिंह चौहान एक कुशल प्रशासक हैं, हम सब भी यही चाहते हैं कि, एक अच्छे प्रशासक होने के नाते इस मामले से जुड़े लोगो की सुरक्षा की जाये और जल्द से जल्द इन रहस्मय तरीके से हो रही मौतों के कारणों की तह तक जाकर बहुत जल्द ही इन मौतों के पीछे का कलुषित चेहरा और वो शिक्षा माफिया पूरे देश के सामने बेनकाब हो, जिसकी वजह से देश के हज़ारो होनहार छात्रो का भविष्य अंधकारमय हुआ..