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Tuesday, 23 June 2015

गृहस्थी का मूल मंत्र

=आपसी विश्वास=
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संत कबीर रोज सत्संग किया करते थे। दूर-दूर से लोग उनकी बात सुनने आते थे।

एक दिन सत्संग खत्म होने पर भी एक आदमी बैठा ही रहा।

कबीर ने इसका कारण पूछा तो वह बोला, ‘मुझे आपसे कुछ पूछना है।

मैं गृहस्थ हूं, घर में सभी लोगों से मेरा झगड़ा होता रहता है। मैं जानना चाहता हूं कि मेरे यहां गृह क्लेश क्यों होता है और वह कैसे दूर हो सकता है?’

कबीर थोड़ी देर चुप रहे, फिर उन्होंने अपनी पत्नी से कहा, ‘लालटेन जलाकर लाओ’।

कबीर की पत्नी लालटेन जलाकर ले आई।

वह आदमी भौंचक देखता रहा। सोचने लगा इतनी दोपहर में कबीर ने लालटेन क्यों मंगाई।

थोड़ी देर बाद कबीर बोले, ‘कुछ मीठा दे जाना।’

इस बार उनकी पत्नी मीठे के बजाय नमकीन देकर चली गई।
उस आदमी ने सोचा कि यह तो शायद पागलों का घर है। मीठा के बदले नमकीन, दिन में लालटेन।

वह बोला, ‘कबीर जी मैं चलता हूं।’

कबीर ने पूछा, ‘आपको अपनी समस्या का समाधान मिला या अभी कुछ संशय बाकी है?’

वह व्यक्ति बोला, ‘मेरी समझ में कुछ नहीं आया।’

कबीर ने कहा, ‘जैसे मैंने लालटेन मंगवाई तो मेरी घरवाली कह सकती थी कि तुम क्या सठिया गए हो।

इतनी दोपहर में लालटेन की क्या जरूरत। लेकिन नहीं, उसने सोचा कि जरूर किसी काम के लिए लालटेन मंगवाई होगी।

मीठा मंगवाया तो नमकीन देकर चली गई। हो सकता है घर में कोई मीठी वस्तु न हो। यह सोचकर मैं चुप रहा।

इसमें तकरार क्या?

आपसी विश्वास बढ़ाने और तकरार में न फंसने से विषम परिस्थिति अपने आप दूर हो गई।’

उस आदमी को हैरानी हुई। वह समझ गया कि कबीर ने यह सब उसे बताने के लिए किया था।

कबीर ने फिर कहा,’ गृहस्थी में आपसी विश्वास से ही तालमेल बनता है।

आदमी से गलती हो तो औरत संभाल ले और औरत से कोई त्रुटि हो जाए तो पति उसे नजरअंदाज कर दे।

यही गृहस्थी का मूल मंत्र है।’

All married must read it.

Monday, 22 June 2015

'Nostalgic' June...!!!

  It's the last week of June...!!!
LETS RECALL OUR CHILDHOOD DAYS...
This is that wonderful time when some years back, the most exciting things of our lives used to happen.

> Our school used to re-open.

> For a moment, just think of it all.

> And try, if you can visualize those days.

> That excitement of a new bag.

> New books.

> The end of an exciting vacation, with a tinge of sadness.

> A bit of anxiety on the 1st day of another school year.

> The unforgetable smell from the pages of new books.

> New subjects.

> New teachers.

> New sitting positions of a class.

> And the most exciting was to welcome our best friends in the class.

> The pouring rains outside.

> The shopping for raincoat.

> Everything around us freshend up.

> Lush green.

> Cold and pleasant.

Wasn't it the most beautiful period of our lives.

It can never return...!!!

But you can always close your eyes for a moment, and try to relive it.

And don't forget to experience the same through the kidz heart.

Wishing everyone a 'nostalgic' June...!!!

वही ज़हर है"..

किसी ने बुद्ध से पुछा..
   
"ज़हर क्या है"..?

बुद्ध ने बहुत सुन्दर जबाब दिया

"हर वो चीज़ जो ज़िन्दगी में
आवश्यकता से अधिक होती है
�� वही ज़हर है"..

(फ़िर चाहे वो ताक़त हो, धन हो, भूख हो, लालच हो, अभिमान हो, आलस हो, महत्वकाँक्षा हो, प्रेम हो या घृणा..
आवश्यकता से अधिक
"ज़हर" ही है..)

सफल होने का तरीका

एक विचार लो  .
उस  विचार  को  अपना जीवन  बना  लो – उसके  बारे  में  सोचो  उसके  सपने  देखो , उस  विचार  को  जियो  .
अपने  मस्तिष्क , मांसपेशियों , नसों , शरीर  के  हर  हिस्से  को  उस विचार में  डूब  जाने  दो , और  बाकी  सभी विचार  को  किनारे  रख  दो .
यही सफल  होने  का तरीका  है.

Sunday, 21 June 2015

पिंजरे को ताला

एक सरदार ने चिड़ियाघर में नौकरी कर ली
उसने शेर के पिंजरे को ताला नहीं लगाया.!
अफसर: तुमने शेर के पिंजरे को ताला क्यों नहीं लगाया.?
सरदार: क्या ज़रूरत है,इतने खतरनाक जानवर को कौन चुराएगा.?

Saturday, 20 June 2015

Privatization in education sector

अगर नीचे लिखे लेख की बातें सच हैं तो ये बड़ा खतरनाक खेल है। शिक्षकों के लिए तो चिंतन का विषय है।
उत्तराखंड : शिक्षा के निजीकरण की ओर
Posted by समयांतर डैस्क
त्रेपन सिंह चौहान----- से साभार
उत्तराखंड सरकार 2200 सरकारी स्कूलों को निजी हाथों में देने की तैयारी कर चुकी है। सुनने में तो यहां तक आ रहा है कि दिल्ली के कुछ शिक्षा के व्यापारियों का सरकार पर लगातार दबाव बना हुआ है। इनके दबाव का असर ही हुआ कि बीस सरकारी स्कूलों के संचालन हेतु टेंडर भी निकाल दिए गए हैं। अजीम प्रेम जी फाउंडेशन ने दो जिले उत्तरकाशी और उधम सिंह नगर का ठेका भी ले लिया है। शुरुआती दौर में उत्तरकाशी जिले के मातली नामक स्थान पर उन्होंने तीस एकड़ जमीन भी खरीद ली है। सरकार के योग्य शिक्षा अधिकारियों एवं शिक्षकों को सरकारी मानदंड से दोगुना वेतन पर नियुक्ति की प्रक्रिया भी शुरू कर दी गई है। कुछ के साथ मोल-भाव चल रहा है। आने वाले कुछ सालों में हजारों विद्यालय निजी हाथों में चले जाएंगे। क्योंकि सरकार और विश्व बैंक ने मिल कर 1997 से ही सरकारी शिक्षा व्यवस्था को पूर्ण रूप से ध्वस्त करने का काम शुरू कर दिया था, जब सरकारी स्कूलों में विश्व बैंक के सहयोग से सर्व शिक्षा अभियान की शुरुआत हुई थी और मुकेश अंबानी इस अभियान के राष्ट्रीय सलाहकार बनाए गए थे।
व्यापारी देशों की एक घोषित नीति रही है। गरीब देशों के जिस किसी भी मुनाफे से जुड़े सरकारी प्रतिष्ठान पर उसकी नजर गड़ जाती है उसको हड़पने के लिए वे दो तरह की रणनीति अपनाते हैं, एक उस देश की सरकार को विश्व बैंक से कर्ज दिलाओ और अपने एजेंडे के आधार पर उस सेक्टर के कथित विकास के लिए सरकार के ऊपर दबाव बनाओ। दूसरा उस सेक्टर के कर्मचारियों और अधिकारियों को जो वेतन मिलता है उसमें अतिरिक्त आय जोड़कर उन्हें उनके मूल कामों से हटा कर अन्य कामों में लगा दो। उनकी कोशिश होती है कि उस प्रतिष्ठान के कर्मचारियों को भ्रष्ट करके या कोई अन्य कारणों से इतना बदनाम कर दो कि लोगों की ओर से खुद ही निजीकरण की मांग उठने लगे। अब उनके इस जाल में हमारे देश की सरकारी शिक्षा व्यवस्था पूर्ण रूप से फंस चुकी है और वे अपने स्वाभाविक चेहरे के साथ सामने भी आ गए हैं।
शिक्षक की छवि हमारे समाज में बेहद सम्मान वाली रही है। आज उसकी यह छवि खतरे में पड़ चुकी है। क्योंकि विश्व बैंक के दबाव के चलते सरकार शिक्षकों से गैर शैक्षणिक काम लेकर उनको खलनायक साबित करने में लगी है। पहले प्राथमिक विद्यालयों में सरकार द्वारा थोपे गए डीपीईपी एवं एसएसए के तहत अनुमानित दो दर्जन से अधिक कार्यक्रमों में जैसे विद्यालय स्तर पर सतत एवं व्यापक मूल्यांकन, ग्राम शिक्षा समिति एवं विद्यालय प्रबंधन समिति द्वारा मूल्यांकन के अलावा विद्यालय कोटिकरण, समेकित शिक्षा, कंप्यूटर एडेड लर्निंग प्रोग्राम, समर रीड कार्यक्रम, नींव, एनपीईजीएल, मिड डे मील, सेवारत अध्यापक प्रशिक्षण कार्यक्रम, सामुदायिक प्रशिक्षण कार्यक्रम, निर्माण कार्य, टीएलएम प्रतियोगिता, सीआरजी, बीआरजी, डीआरजी कार्यशालाएं, सृजन प्रतियोगिता और हर ब्लॉक में कस्तूरबा गांधी आवासीय विद्यालय में अध्यापकों की अनिवार्य भागीदारी के चलते वे अधिकांश समय स्कूलों से अनुपस्थित ही रहते हैं। जहां अध्यापकों को ग्रीष्म एवं शीत कालीन अवकाशों तक में उक्त प्रशिक्षणों को पूरा करना होता है वहीं कक्षा आठ तक के अधिकांश बच्चों को हिंदी तक की पुस्तकें पढऩी नहीं आ रही हैं। जिसका जनता और सरकार द्वारा सीधा दोष शिक्षकों के सर ही मढ़ा जाता है। उक्त प्रशिक्षण के बारे में बात करेंगे तो पता चलेगा की बच्चों के चहुंमुखी विकास के नाम से शिक्षक स्कूल से गायब हैं। इसका परिणाम यह है कि खुद विश्व बैंक सारे विश्व में बदनाम करता फिर रहा है कि भारत के सरकारी स्कूलों में पढऩे वाले नब्बे प्रतिशत बच्चे किसी काम के नहीं रहते हैं। जिससे अध्यापकों की छवि पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है।
सर्व शिक्षा अभियान का कार्यक्रम जब शुरू हुआ और उस दौर में शिक्षक जब प्रशिक्षण के नाम से बाहर जाने लगे तो लोगों को लगा कि शायद उनके बच्चों के भविष्य को लेकर सरकार सच में कुछ गंभीर हो गई है। अध्यापकों को भी लगा कि उनको अच्छा एक्सपोजर मिलेगा तो वे बच्चों के लिए कुछ ठोस कर पाएंगे। लेकिन किसी को यह पता नहीं था कि जो शिक्षक प्रशिक्षण के नाम पर स्कूलों से बाहर जा रहा है उसके जिम्मे ढेर सारे गैर शैक्षणिक काम लगा दिए जाएंगे। इन कथित प्रशिक्षणों के नाम पर सरकार और विश्व बैंक ने कई प्रयोगों का सिलसिला सरकारी स्कूलों में शुरू क्या किया उसके दुष्परिणाम अध्यापकों और आम लोगों के बीच एक अविश्वास की दीवार खड़ी हो गई है के रूप में आमने आ रहे हैं। जो नवाचारी प्रयोग स्कूलों में चलाए जा रहे हैं उससे समाज को काफी नुकसान उठाना पड़ रहा है। कई एनजीओ के नए आईडिया की प्रयोगशाला भी सरकारी स्कूल ही बन रहे हैं।
अगर यह कह जाय कि सरकारी स्कूलों को विश्व बैंक ने नवाचारी प्रयोग की मात्र प्रयोगशाला बनाकर रख दिया है तो ज्यादा ठीक रहेगा। हमारी सरकारी शिक्षा व्यवस्था को चौपट करने के बाद विश्व बैंक से समय-समय पर जो रिपोर्ट आती है उसे सब जानते ही हैं। आज हालात यह है कि सरकारी स्कूलों में पढ़ाई का माहौल पूर्णरूप से अनुपस्थित है। सरकारी शिक्षण संस्थाओं से लोगों का विश्वास उठ चुका है। इसका सीधा फायदा उन संस्थाओं को हो रहा है जो शिक्षा को या तो व्यापार का केंद्र बनाना चाहते हैं या अपने सिद्धांतों के आधार पर हांकना चाहते हैं। उसी का परिणाम है कि गांव के थोड़े बहुत जागरूक लोगों ने अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों से निकालकर निजी स्कूलों में दाखिला दिला दिया है। आज शिक्षा के प्रति घोर लापरवाह या विकल्पहीन लोगों के बच्चे ही सरकारी स्कूल में पढऩे के लिए मजबूर हैं।
पहले प्राथमिक विद्यालय स्थर पर डीपीइपी, जूनियर स्तर पर सर्व शिक्षा अभियान और अब हाई स्कूल और इंटर मीडिएट स्तर पर राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान (रमसा) शुरू कर दिया गया है। इसके पीछे के खेल को आप इस तरह भी देख सकते हैं। ये सब कार्यक्रम एक समयबद्ध कार्यक्रम (एसएसए पहले 2010 और अब इसे बढ़ा कर 2017 कर दिया गया है। रमसा 2011 से शुरू कर दिया गया है। ) के तहत संचालित हो रहे हैं। इसका उद्देश्य शत-प्रतिशत नामांकन धारण एवं ठहराव, 6 से 14 वर्ष तक के सभी बच्चों को कक्षा 8 तक गुणवत्ता परक शिक्षा पूरी करने के साथ विद्यालय प्रबंधन में समुदाय की सक्रिय भागीदारी से सामाजिक भेदभाव दूर करना आदि था। अब रमसा शुरू हुआ तो उसके अंतर्गत कई प्रोजेक्ट एवं प्रयोगशालाओं में प्रयोग के कार्यक्रम तय हैं। इसके लिए शिक्षा विभाग में अलग से विज्ञान कांग्रेस का गठन कर कई शिक्षक इस प्रोग्राम के तहत संबद्ध कर दिए गए हैं। वे अध्यापक विज्ञान कांग्रेस के नाम से स्कूलों से बाहर हो गए हैं।
उत्तराखंड राज्य में सर्व शिक्षा अभियान के अंतर्गत प्राथमिक विद्यालयों के संचालन हेतु राजकीय प्राथमिक विद्यालय में 40 बच्चों पर 1 अध्यापक की नियुक्ति की व्यवस्था की गई थी। उच्च प्राथमिक विद्यालय में संचालन हेतु 100 से कम छात्र सं. पर 3 अध्यापकों की नियुक्ति की व्यवस्था थी। राज्य का अधिकांश हिस्सा पहाड़ी होने के कारण सबसे अधिक प्राथमिक एवं उच्च प्राथमिक विद्यालय दुर्गम एवं अति दुर्गम क्षेत्रों में स्थित है। राज्य में कुल राजकीय प्राथमिक विद्यालयों की संख्या 12684 है। इनमें 17 प्रतिशत विद्यालयों में एकल अध्यापकीय शिक्षण व्यवस्था है। इस प्रकार से राज्य में लगभग 4599 राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालयों में 116 में से एकल अध्यापकीय शिक्षण व्यवस्था है।
अब सवाल उठना लाजमी है कि सर्व शिक्षा अभियान के तहत विद्यालयों में प्रतिदिन कई नवाचारी प्रयोग किए जा रहे हैं तो एक अध्यापक द्वारा संचालित प्राथमिक एवं उच्च प्राथमिक विद्यालयों में गुणवत्ता परख शिक्षा का लक्ष्य कैसे पूरा हो सकता है? अध्यापकों की गैर शैक्षणिक कार्यों की सूची इतनी लंबी है कि उसे शिक्षा से जानबूझ कर विमुख करने का षड्यंत्र साफ दिखाई देता है। वह दिन भर मध्याह्न भोजन योजना, अध्यापक डायरी, एसएसए परियोजना से संबंधित अनेकों सूचनाओं के निर्माण के साथ सूचनाओं का संकलन, विश्लेषण एवं विद्यालय में चलने वाले निर्माण के कार्यक्रम में बुरी तरह से उलझा रहता है। प्रारंभिक शिक्षा से जुड़े इन अध्यापकों को सर्व शिक्षा अभियान के सेवारत प्रशिक्षणों, अभिमुखीकरण कार्यशालाओं व अन्य नवाचारी कार्यक्रमों के शिविरों एवं बैठकों में प्रतिभाग हेतु बुलाया जाता है। ऐसी स्थिति में एकल विद्यालय वाले स्कूल तो बंद ही हो जाते हैं। यह सब तो शिक्षा के विकास के नाम पर चलने वाला खेल है जो आम जनता की समझ से बाहर होने के कारण शिक्षक बेचारा उनकी नजरों की भी किरकिरी बना हुआ है। इन कार्यक्रमों के अतिरिक्त सरकार द्वारा त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव, विधान सभा एवं लोक सभा चुनाव से पहले निर्वाचन सूची निर्माण के लिए अध्यापकों को स्कूल से हटाया जाता है, उसके बाद पुनर्निरीक्षण की जिम्मेदारी के बाद चुनाव संपन्न कराने की जिम्मेदारी भी अध्यापकों के सर ही आ पड़ती है। इस पूरी प्रक्रिया में अध्यापक कई महीनों उलझा रहता है। सवाल उठता है कि वह जब वापस स्कूल में पहुंचता है, स्कूल पाठ्यक्रम को कैसे पूरा करता होगा? सरकारी स्कूल में पढऩे वाले बच्चों का भविष्य कैसा होगा…? इन सबके गैर शिक्षण संपादन के बावजूद भी अध्यापकों को कुछ समय मूल्यांकन की प्रक्रिया से भी गुजरना पड़ता है। जो कई स्तरीय होती है।
अध्यापकों को स्कूलों से कितना समय बाहर रखा जाता है उक्त चार्ट से कुछ तस्वीर साफ हो जाएगी।
इस चार्ट में जो कुछ भी दिन अध्यापक स्कूल में दे रहा है इसमें एक तो उनकी किसी प्रकार की छुट्टियों को नहीं जोड़ा गया है और दूसरे गांव के वे कार्यक्रम जो स्कूलों में आयोजित किए जाते हैं और विभागीय कार्यक्रमों में जैसे हिंदी सप्ताह, वृक्षारोपण सप्ताह, विज्ञान दिवस, साक्षरता रैलियां, पर्यावरण रैलियां, पल्स पोलियो के खिलाफ रैलियां, एड्स के खिलाफ जन जागरण रैलियां, इको क्लब के कार्यक्रम, स्काउट एवं गाईड कैंप, हाल में शुरू हुआ राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान (रमसा) के कार्यक्रम, विभिन्न जयन्तियों पर होने वाले आयोजन, राष्ट्रीय पर्वों के कार्यक्रम के साथ हर माह करोड़ों का वारा-न्यारा करने वाले एनजीओ के हर दिन उगने वाले नए वैचारिक प्रयोग इस चार्ट में शामिल नहीं किए गए हैं।
अतीत में कई लोग सवाल उठाते आ रहे थे कि जब अध्यापक स्कूल में ही नहीं है तो उक्त प्रयोग क्यों और किसके लिए किए जा रहे है? उसका परिणाम अब आना शुरू हो गया हैं। उत्तराखंड सरकार 2200 स्कूलों को निजी हाथों में देने की प्रक्रिया शुरू कर चुकी है और इन स्कूलों के पक्ष में बोलने वाला कोई आम आदमी नहीं है। कुछ शिक्षक संगठन विरोध में उतरे तो एक तरफ चतुर सरकार ने उन्हें दो साल का समय देकर स्कूलों में छात्र संख्या बढ़ाने के लिए कह दिया है। दूसरी तरफ 20 सरकारी स्कूलों के संचालन हेतु टेंडर आमंत्रित कर दिए हैं। सरकार जानती है कि शिक्षक संगठनों का जो टारगेट समुदाय है उस समुदाय के बच्चों के लिए आरटीआई के तहत निजी स्कूलों में पच्चीस प्रतिशत मुफ्त शिक्षा का प्रावधान कर दिया गया है। वैसे भी शिक्षक संगठनों की विश्वसनीयता इतनी संदिग्ध कर दी गई है कि आम आदमी अब इन पर विश्वास करने को कतई तैयार नहीं दिखता। वह अपने बच्चों का भविष्य स्कूलों के निजीकरण में ही देख रहा है। वह इतना त्रस्त है कि अपने बच्चों के भविष्य को लेकर उसे फिलहाल अपनी लूट की कोई चिंता नहीं है। जो कि बेहद चिंताजनक है। अगर व्यापक स्तर पर सरकारी शिक्षा संस्थानों के निजीकरण के खिलाफ अभियान नहीं चलाया गया तो कल शिक्षा के नाम पर शहरों से आगे गांवों में भी लूट का एक बड़ा बाजार खड़ा हो जाएगा।

Latest modification in tatkal railway reservation

1 जुलाई से रेलवे में कई बदलाव .. कृपया जनहित में शेयर करें ...1. तत्काल टिकट कैंसिल कराने पर किराए की 50 फीसदी राशि रिफंड होगी। साथ ही तत्काल टिकट बुकिंग के समय में भी बदलाव किया गया है।2. एसी और स्लीपर श्रेणियों की टिकट बुकिंग अलग-अलग समय पर शुरू होगी। एसी कोच के लिए टिकट बुकिंग सुबह 10 बजे से और स्लीपर श्रेणी के लिए तत्काल टिकट 11 बजे से मिलेगा। यह बदलाव 15 जून से होगा। साथ ही सुबह आठ बजे से 8.30 बजे तक प्राधिकृत रेलवे एजेंटों के लिए सामान्य टिकट बुकिंग पर रोक होगी। यानी, सुबह 10 से 11 बजे के बीच सिर्फ एसी कोच में सीटें बुक की जा सकेंगी। इसके बाद सुबह 11 से 12 बजे के बीच स्लीपर कोच के लिए तत्काल टिकटों की बुकिंग होगी।3. राजधानी और शताब्दी एक्सप्रेस जैसी ट्रेनों में पेपरलेस मोबाइल टिकटिंग की व्यवस्था लागू होगी। यानी, इन ट्रेनों में सफर करनेवाले यात्रियों को कागज पर छपे हुए टिकट नहीं मिलेंगे। टिकटउनके मोबाइल पर रहेगा। यह योजना शुरू होने के बाद रेलवे सालाना 600 टन कागज की बचत कर सकेगा।4. रेलवे मल्टी लिंगुअल (कई भाषाओं में) रिजर्वेशन टिकट देने की शुरुआत भी करने जा रही है। अभी रिजर्वेशन टिकट अंग्रेजी और हिंदी में ही होते हैं। लेकिन, नए पोर्टल में किए जा रहे बदलाव के बाद दूसरी भाषाओं में भी रेल टिकट रिजर्व कराने की सुविधा दी जाएगी।5. ट्रेनों में ज्यादा से ज्यादा यात्रियों को सफर कराने के लिए सभी राजधानी और शताब्दी ट्रेनों में कोच भी बढ़ाए जाएंगे।6. भीड़भाड़ के दिनों में रेलयात्रियों को बेहतर सुविधा उपलब्ध कराने के लिए वैकल्पिक रेलगाड़ीसमायोजन प्रणाली (एटीएएस), सुविधा ट्रेन शुरू करने और महत्वपूर्ण ट्रेनों की ‘डुप्लीकेट’ गाड़ी चलाने की योजना।7. रेल मंत्रालय ने एक जुलाई से राजधानी, शताब्दी, दुरंतो और मेल-एक्सप्रेस ट्रेनों की तर्ज परसुविधा ट्रेन चलाएगा। सुविधा ट्रेन चलाने का मकसद यात्रियों को दलालों के चंगुल से बचाना और थोड़ा अधिक किराया देकर आरक्षित सीट पर आरामदेह सफर मुहैया कराना है। इसमें प्रीमियर ट्रेनों कीतरह केवल ऑनलाइन टिकट बुक नहीं होंगे, बल्कि काउंटर से भी टिकट लिया जा सकेगा।8. एक जुलाई से प्रीमियम ट्रेनें पूर्ण रूप से बंद हो जाएंगी। उनके स्थान पर सुविधा ट्रेनें चलेंगी। प्रीमियम ट्रेनों में टिकट रद्द कराने पर पैसा वापस नहीं मिलता था लेकिन, सुविधा ट्रेनों में टिकट रद्द कराने पर किराए की 50 फीसदी राशि ही वापसी होगी। इसके अलावा एसी-2 पर100 रुपए, एसी-3 पर 90 रुपए व स्लीपर क्लास में 60 रुपए प्रति यात्री कटेंगे। यात्री को ट्रेन छूटने के छह घंटे पहले रिफंड के लिए आवेदन करना होगा। सुविधा ट्रेन में वेटिंग टिकट नहीं मिलेगा। टिकट बुकिंग 10 से 30 दिन पहले कराई जा सकेगी, साथ ही टिकट में किसी तरह की रियायत लागू नहीं होगी।
-राजदीप परवाल-
सांसद प्रतिनिधि
रतलाम मंडल रेल सलाहकार समिति

Friday, 19 June 2015

” जरुरत के मुताबिक “जिंदगी” जिओ – “ख्वाहिश”….. के मुताबिक नहीं………


नंगे पाँव चलते “इन्सान” को लगता है
कि “चप्पल होते तो कितना अच्छा होता”
बाद मेँ……….
“साइकिल होती तो कितना अच्छा होता”
उसके बाद में………
“मोपेड होता तो थकान नही लगती”
बाद में………
“मोटर साइकिल होती तो बातो-बातो मेँ
रास्ता कट जाता”

फिर ऐसा लगा की………
“कार होती तो धूप नही लगती”

फिर लगा कि,
“हवाई जहाज होता तो इस ट्रैफिक का झंझट
नही होता”

जब हवाई जहाज में बैठकर नीचे हरे-भरे घास के मैदान
देखता है तो सोचता है,
कि “नंगे पाव घास में चलता तो दिल
को कितनी “तसल्ली” मिलती”…..

” जरुरत के मुताबिक “जिंदगी” जिओ – “ख्वाहिश”….. के
मुताबिक नहीं………

क्योंकि ‘जरुरत’
तो ‘फकीरों’ की भी ‘पूरी’ हो जाती है, और
‘ख्वाहिशें’….. ‘बादशाहों ‘ की भी “अधूरी” रह जाती है”…..

“जीत” किसके लिए, ‘हार’ किसके लिए
‘ज़िंदगी भर’ ये ‘तकरार’ किसके लिए…

जो भी ‘आया’ है वो ‘जायेगा’ एक दिन
फिर ये इतना “अहंकार” किसके लिए…

ए बुरे वक़्त !
ज़रा “अदब” से पेश आ !!
“वक़्त” ही कितना लगता है
“वक़्त” बदलने में………

मिली थी ‘जिन्दगी’ , किसी के
‘काम’ आने के लिए…..
पर ‘वक्त’ बीत रहा है , “कागज” के “टुकड़े” “कमाने” के लिए………
good  evening

बकरे का गोश्त

एक बार
एक किसान का
घोडा बीमार हो गया।
उसने उसके इलाज के लिए
डॉक्टर को बुलाया

डॉक्टर ने घोड़े का अच्छे से
मुआयना किया और बोल|

"आपके घोड़े को
काफी गंभीर बीमारी है।
हम तीन दिन तक इसे
दवाई देकर देखते हैं,
अगर यह ठीक हो गया तो
ठीक नहीं तो हमें
इसे मारना होगा।
क्योंकि
यह बीमारी
दूसरे जानवरों में
भी फ़ैल सकती है।"

यह सब बातें पास में खड़ा
एक बकरा भी सुन रहा था।

अगले दिन डॉक्टर आया,
उसने घोड़े को
दवाई दी चला गया।

उसके जाने के बाद
बकरा घोड़े के
पास गया और बोला,
"उठो दोस्त, हिम्मत करो,
नहीं तो यह तुम्हें मार देंगे।"

दूसरे दिन
डॉक्टर फिर आया
और दवाई देकर चला गया।
बकरा फिर घोड़े के पास आया
और बोला,
"दोस्त
तुम्हें उठना ही होगा।
हिम्मत करो
नहीं तो तुम मारे जाओगे।
मैं तुम्हारी मदद करता हूँ।
चलो उठो"

तीसरे दिन
जब डॉक्टर आया तो
किसान से बोला,
"मुझे अफ़सोस है कि
हमें इसे मारना पड़ेगा
क्योंकि कोई भी सुधार
नज़र नहीं आ रहा।"

जब वो वहाँ से गए तो
बकरा घोड़े के पास
फिर आया और बोला,
"देखो दोस्त,
तुम्हारे लिए अब
करो या मरो वाली
स्थिति बन गयी है।

अगर तुम आज भी नहीं उठे
तो कल तुम मर जाओगे।
इसलिए हिम्मत करो।
हाँ, बहुत अच्छे।
थोड़ा सा और,
तुम कर सकते हो।
शाबाश,
अब भाग कर देखो,
तेज़ और तेज़।"

इतने में किसान
वापस आया तो उसने देखा कि
उसका घोडाभाग रहा है।

वो ख़ुशी से झूम उठा
और सब घर वालों को
इकट्ठा कर के चिल्लाने लगा,

"चमत्कार हो गया,
मेरा घोडा ठीक हो गया।
हमें जश्न मनाना चाहिए
आज बकरे का गोश्त खायेंगे।"

शिक्षा :
Management को
कभी नही पता होता कि
कौन employee
काम कर रहा है ...

Thursday, 18 June 2015

email id नहीं है

यह कहानी आपकी जिंदगी बदल सकती है
एक बार की बात है किसी शहर में एक लड़का रहता था जो बहुत गरीब था। मेंहनत मजदूरी करके बड़ी मुश्किल से 2 वक्त का खाना जुटा पाता ।
एक दिन वह किसी बड़ी कंपनी में चपरासी के लिए इंटरव्यू देने गया । बॉस ने उसे देखकर उसे काम दिलाने का भरोसा जताया ।
जब बॉस ने पूछा -”तुम्हारी email id क्या है”?
लड़के ने मासूमियत से कहा कि उसके पास email id नहीं है ।
ये सुनकर बॉस ने उसे बड़ी घृणा दृष्टि से देखा और कहा कि आज दुनिया इतनी आगे निकल गयी है , और एक तुम हो कि email id तक नहीं है , मैं तुम्हें नौकरी पर नहीं रख सकता ।
ये सुनकर लड़के के आत्मसम्मान को बहुत ठेस पहुंची , उसकी जेब में उस समय 50 रुपये थे । उसने उन 50 रुपयों से 1 किलो सेब खरीद कर वह अपने घर चलता बना। वह घर घर जाकर उन सेबों को बेचने लगा और ऐसा करके उसने 80 रुपये जमा कर लिए ।
अब तो लड़का रोज सेब खरीदता और घर घर जाकर बेचता । सालों तक यही सिलसिला चलता रहा लड़के की कठिन मेहनत रंग लायी और एक दिन उसने खुद की कंपनी खोली जहाँ से विदेशों में सेब सप्लाई किये जाते थे । उसके बाद लड़के ने पीछे मुड़कर नहीं देखा और जल्दी ही बहुत बड़े पैमाने पर अपना बिज़नेस फैला दिया और एक सड़क छाप लड़का बन गया अरबपति ।
एक कुछ मीडिया वाले लड़के का इंटरव्यू लेने आये और अचानक किसी ने पूछ लिया – “सर आपकी emailid क्या है”??
लड़के ने कहा -”नहीं है “, ये सुनकर सारे लोग चौंकने लगे कि एक अरबपति आदमी के पास एक “email id” तक नहीं है ।
लड़के ने हंसकर जवाब दिया - ”मेरे पास email id नहीं है इसीलिए मैं अरबपति हूँ , अगर email id होती तो मैं आज एक चपरासी होता”।
मित्रों ,
इसीलिए कहा जाता है कि हर इंसान के अंदर कुछ ना कुछ खूबी जरूर होती है, भीड़ के पीछे भागना बंद करो और अपने टेलेंट और स्किल को पहचानो ।
दूसरों से अपनी तुलना मत करो (Do not compare yourself to others) कि उसके पास वो है मेरे पास नहीं है , जो कुछ तुम्हारे पास है उसे लेकर आगे बढ़ो
फिर दुनियां की कोई ताकत तुम्हें सफल होने से नहीं रोक सकती.