अगर नीचे लिखे लेख की बातें सच हैं तो ये बड़ा खतरनाक खेल है। शिक्षकों के लिए तो चिंतन का विषय है।
उत्तराखंड : शिक्षा के निजीकरण की ओर
Posted by समयांतर डैस्क
त्रेपन सिंह चौहान----- से साभार
उत्तराखंड सरकार 2200 सरकारी स्कूलों को निजी हाथों में देने की तैयारी कर चुकी है। सुनने में तो यहां तक आ रहा है कि दिल्ली के कुछ शिक्षा के व्यापारियों का सरकार पर लगातार दबाव बना हुआ है। इनके दबाव का असर ही हुआ कि बीस सरकारी स्कूलों के संचालन हेतु टेंडर भी निकाल दिए गए हैं। अजीम प्रेम जी फाउंडेशन ने दो जिले उत्तरकाशी और उधम सिंह नगर का ठेका भी ले लिया है। शुरुआती दौर में उत्तरकाशी जिले के मातली नामक स्थान पर उन्होंने तीस एकड़ जमीन भी खरीद ली है। सरकार के योग्य शिक्षा अधिकारियों एवं शिक्षकों को सरकारी मानदंड से दोगुना वेतन पर नियुक्ति की प्रक्रिया भी शुरू कर दी गई है। कुछ के साथ मोल-भाव चल रहा है। आने वाले कुछ सालों में हजारों विद्यालय निजी हाथों में चले जाएंगे। क्योंकि सरकार और विश्व बैंक ने मिल कर 1997 से ही सरकारी शिक्षा व्यवस्था को पूर्ण रूप से ध्वस्त करने का काम शुरू कर दिया था, जब सरकारी स्कूलों में विश्व बैंक के सहयोग से सर्व शिक्षा अभियान की शुरुआत हुई थी और मुकेश अंबानी इस अभियान के राष्ट्रीय सलाहकार बनाए गए थे।
व्यापारी देशों की एक घोषित नीति रही है। गरीब देशों के जिस किसी भी मुनाफे से जुड़े सरकारी प्रतिष्ठान पर उसकी नजर गड़ जाती है उसको हड़पने के लिए वे दो तरह की रणनीति अपनाते हैं, एक उस देश की सरकार को विश्व बैंक से कर्ज दिलाओ और अपने एजेंडे के आधार पर उस सेक्टर के कथित विकास के लिए सरकार के ऊपर दबाव बनाओ। दूसरा उस सेक्टर के कर्मचारियों और अधिकारियों को जो वेतन मिलता है उसमें अतिरिक्त आय जोड़कर उन्हें उनके मूल कामों से हटा कर अन्य कामों में लगा दो। उनकी कोशिश होती है कि उस प्रतिष्ठान के कर्मचारियों को भ्रष्ट करके या कोई अन्य कारणों से इतना बदनाम कर दो कि लोगों की ओर से खुद ही निजीकरण की मांग उठने लगे। अब उनके इस जाल में हमारे देश की सरकारी शिक्षा व्यवस्था पूर्ण रूप से फंस चुकी है और वे अपने स्वाभाविक चेहरे के साथ सामने भी आ गए हैं।
शिक्षक की छवि हमारे समाज में बेहद सम्मान वाली रही है। आज उसकी यह छवि खतरे में पड़ चुकी है। क्योंकि विश्व बैंक के दबाव के चलते सरकार शिक्षकों से गैर शैक्षणिक काम लेकर उनको खलनायक साबित करने में लगी है। पहले प्राथमिक विद्यालयों में सरकार द्वारा थोपे गए डीपीईपी एवं एसएसए के तहत अनुमानित दो दर्जन से अधिक कार्यक्रमों में जैसे विद्यालय स्तर पर सतत एवं व्यापक मूल्यांकन, ग्राम शिक्षा समिति एवं विद्यालय प्रबंधन समिति द्वारा मूल्यांकन के अलावा विद्यालय कोटिकरण, समेकित शिक्षा, कंप्यूटर एडेड लर्निंग प्रोग्राम, समर रीड कार्यक्रम, नींव, एनपीईजीएल, मिड डे मील, सेवारत अध्यापक प्रशिक्षण कार्यक्रम, सामुदायिक प्रशिक्षण कार्यक्रम, निर्माण कार्य, टीएलएम प्रतियोगिता, सीआरजी, बीआरजी, डीआरजी कार्यशालाएं, सृजन प्रतियोगिता और हर ब्लॉक में कस्तूरबा गांधी आवासीय विद्यालय में अध्यापकों की अनिवार्य भागीदारी के चलते वे अधिकांश समय स्कूलों से अनुपस्थित ही रहते हैं। जहां अध्यापकों को ग्रीष्म एवं शीत कालीन अवकाशों तक में उक्त प्रशिक्षणों को पूरा करना होता है वहीं कक्षा आठ तक के अधिकांश बच्चों को हिंदी तक की पुस्तकें पढऩी नहीं आ रही हैं। जिसका जनता और सरकार द्वारा सीधा दोष शिक्षकों के सर ही मढ़ा जाता है। उक्त प्रशिक्षण के बारे में बात करेंगे तो पता चलेगा की बच्चों के चहुंमुखी विकास के नाम से शिक्षक स्कूल से गायब हैं। इसका परिणाम यह है कि खुद विश्व बैंक सारे विश्व में बदनाम करता फिर रहा है कि भारत के सरकारी स्कूलों में पढऩे वाले नब्बे प्रतिशत बच्चे किसी काम के नहीं रहते हैं। जिससे अध्यापकों की छवि पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है।
सर्व शिक्षा अभियान का कार्यक्रम जब शुरू हुआ और उस दौर में शिक्षक जब प्रशिक्षण के नाम से बाहर जाने लगे तो लोगों को लगा कि शायद उनके बच्चों के भविष्य को लेकर सरकार सच में कुछ गंभीर हो गई है। अध्यापकों को भी लगा कि उनको अच्छा एक्सपोजर मिलेगा तो वे बच्चों के लिए कुछ ठोस कर पाएंगे। लेकिन किसी को यह पता नहीं था कि जो शिक्षक प्रशिक्षण के नाम पर स्कूलों से बाहर जा रहा है उसके जिम्मे ढेर सारे गैर शैक्षणिक काम लगा दिए जाएंगे। इन कथित प्रशिक्षणों के नाम पर सरकार और विश्व बैंक ने कई प्रयोगों का सिलसिला सरकारी स्कूलों में शुरू क्या किया उसके दुष्परिणाम अध्यापकों और आम लोगों के बीच एक अविश्वास की दीवार खड़ी हो गई है के रूप में आमने आ रहे हैं। जो नवाचारी प्रयोग स्कूलों में चलाए जा रहे हैं उससे समाज को काफी नुकसान उठाना पड़ रहा है। कई एनजीओ के नए आईडिया की प्रयोगशाला भी सरकारी स्कूल ही बन रहे हैं।
अगर यह कह जाय कि सरकारी स्कूलों को विश्व बैंक ने नवाचारी प्रयोग की मात्र प्रयोगशाला बनाकर रख दिया है तो ज्यादा ठीक रहेगा। हमारी सरकारी शिक्षा व्यवस्था को चौपट करने के बाद विश्व बैंक से समय-समय पर जो रिपोर्ट आती है उसे सब जानते ही हैं। आज हालात यह है कि सरकारी स्कूलों में पढ़ाई का माहौल पूर्णरूप से अनुपस्थित है। सरकारी शिक्षण संस्थाओं से लोगों का विश्वास उठ चुका है। इसका सीधा फायदा उन संस्थाओं को हो रहा है जो शिक्षा को या तो व्यापार का केंद्र बनाना चाहते हैं या अपने सिद्धांतों के आधार पर हांकना चाहते हैं। उसी का परिणाम है कि गांव के थोड़े बहुत जागरूक लोगों ने अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों से निकालकर निजी स्कूलों में दाखिला दिला दिया है। आज शिक्षा के प्रति घोर लापरवाह या विकल्पहीन लोगों के बच्चे ही सरकारी स्कूल में पढऩे के लिए मजबूर हैं।
पहले प्राथमिक विद्यालय स्थर पर डीपीइपी, जूनियर स्तर पर सर्व शिक्षा अभियान और अब हाई स्कूल और इंटर मीडिएट स्तर पर राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान (रमसा) शुरू कर दिया गया है। इसके पीछे के खेल को आप इस तरह भी देख सकते हैं। ये सब कार्यक्रम एक समयबद्ध कार्यक्रम (एसएसए पहले 2010 और अब इसे बढ़ा कर 2017 कर दिया गया है। रमसा 2011 से शुरू कर दिया गया है। ) के तहत संचालित हो रहे हैं। इसका उद्देश्य शत-प्रतिशत नामांकन धारण एवं ठहराव, 6 से 14 वर्ष तक के सभी बच्चों को कक्षा 8 तक गुणवत्ता परक शिक्षा पूरी करने के साथ विद्यालय प्रबंधन में समुदाय की सक्रिय भागीदारी से सामाजिक भेदभाव दूर करना आदि था। अब रमसा शुरू हुआ तो उसके अंतर्गत कई प्रोजेक्ट एवं प्रयोगशालाओं में प्रयोग के कार्यक्रम तय हैं। इसके लिए शिक्षा विभाग में अलग से विज्ञान कांग्रेस का गठन कर कई शिक्षक इस प्रोग्राम के तहत संबद्ध कर दिए गए हैं। वे अध्यापक विज्ञान कांग्रेस के नाम से स्कूलों से बाहर हो गए हैं।
उत्तराखंड राज्य में सर्व शिक्षा अभियान के अंतर्गत प्राथमिक विद्यालयों के संचालन हेतु राजकीय प्राथमिक विद्यालय में 40 बच्चों पर 1 अध्यापक की नियुक्ति की व्यवस्था की गई थी। उच्च प्राथमिक विद्यालय में संचालन हेतु 100 से कम छात्र सं. पर 3 अध्यापकों की नियुक्ति की व्यवस्था थी। राज्य का अधिकांश हिस्सा पहाड़ी होने के कारण सबसे अधिक प्राथमिक एवं उच्च प्राथमिक विद्यालय दुर्गम एवं अति दुर्गम क्षेत्रों में स्थित है। राज्य में कुल राजकीय प्राथमिक विद्यालयों की संख्या 12684 है। इनमें 17 प्रतिशत विद्यालयों में एकल अध्यापकीय शिक्षण व्यवस्था है। इस प्रकार से राज्य में लगभग 4599 राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालयों में 116 में से एकल अध्यापकीय शिक्षण व्यवस्था है।
अब सवाल उठना लाजमी है कि सर्व शिक्षा अभियान के तहत विद्यालयों में प्रतिदिन कई नवाचारी प्रयोग किए जा रहे हैं तो एक अध्यापक द्वारा संचालित प्राथमिक एवं उच्च प्राथमिक विद्यालयों में गुणवत्ता परख शिक्षा का लक्ष्य कैसे पूरा हो सकता है? अध्यापकों की गैर शैक्षणिक कार्यों की सूची इतनी लंबी है कि उसे शिक्षा से जानबूझ कर विमुख करने का षड्यंत्र साफ दिखाई देता है। वह दिन भर मध्याह्न भोजन योजना, अध्यापक डायरी, एसएसए परियोजना से संबंधित अनेकों सूचनाओं के निर्माण के साथ सूचनाओं का संकलन, विश्लेषण एवं विद्यालय में चलने वाले निर्माण के कार्यक्रम में बुरी तरह से उलझा रहता है। प्रारंभिक शिक्षा से जुड़े इन अध्यापकों को सर्व शिक्षा अभियान के सेवारत प्रशिक्षणों, अभिमुखीकरण कार्यशालाओं व अन्य नवाचारी कार्यक्रमों के शिविरों एवं बैठकों में प्रतिभाग हेतु बुलाया जाता है। ऐसी स्थिति में एकल विद्यालय वाले स्कूल तो बंद ही हो जाते हैं। यह सब तो शिक्षा के विकास के नाम पर चलने वाला खेल है जो आम जनता की समझ से बाहर होने के कारण शिक्षक बेचारा उनकी नजरों की भी किरकिरी बना हुआ है। इन कार्यक्रमों के अतिरिक्त सरकार द्वारा त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव, विधान सभा एवं लोक सभा चुनाव से पहले निर्वाचन सूची निर्माण के लिए अध्यापकों को स्कूल से हटाया जाता है, उसके बाद पुनर्निरीक्षण की जिम्मेदारी के बाद चुनाव संपन्न कराने की जिम्मेदारी भी अध्यापकों के सर ही आ पड़ती है। इस पूरी प्रक्रिया में अध्यापक कई महीनों उलझा रहता है। सवाल उठता है कि वह जब वापस स्कूल में पहुंचता है, स्कूल पाठ्यक्रम को कैसे पूरा करता होगा? सरकारी स्कूल में पढऩे वाले बच्चों का भविष्य कैसा होगा…? इन सबके गैर शिक्षण संपादन के बावजूद भी अध्यापकों को कुछ समय मूल्यांकन की प्रक्रिया से भी गुजरना पड़ता है। जो कई स्तरीय होती है।
अध्यापकों को स्कूलों से कितना समय बाहर रखा जाता है उक्त चार्ट से कुछ तस्वीर साफ हो जाएगी।
इस चार्ट में जो कुछ भी दिन अध्यापक स्कूल में दे रहा है इसमें एक तो उनकी किसी प्रकार की छुट्टियों को नहीं जोड़ा गया है और दूसरे गांव के वे कार्यक्रम जो स्कूलों में आयोजित किए जाते हैं और विभागीय कार्यक्रमों में जैसे हिंदी सप्ताह, वृक्षारोपण सप्ताह, विज्ञान दिवस, साक्षरता रैलियां, पर्यावरण रैलियां, पल्स पोलियो के खिलाफ रैलियां, एड्स के खिलाफ जन जागरण रैलियां, इको क्लब के कार्यक्रम, स्काउट एवं गाईड कैंप, हाल में शुरू हुआ राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान (रमसा) के कार्यक्रम, विभिन्न जयन्तियों पर होने वाले आयोजन, राष्ट्रीय पर्वों के कार्यक्रम के साथ हर माह करोड़ों का वारा-न्यारा करने वाले एनजीओ के हर दिन उगने वाले नए वैचारिक प्रयोग इस चार्ट में शामिल नहीं किए गए हैं।
अतीत में कई लोग सवाल उठाते आ रहे थे कि जब अध्यापक स्कूल में ही नहीं है तो उक्त प्रयोग क्यों और किसके लिए किए जा रहे है? उसका परिणाम अब आना शुरू हो गया हैं। उत्तराखंड सरकार 2200 स्कूलों को निजी हाथों में देने की प्रक्रिया शुरू कर चुकी है और इन स्कूलों के पक्ष में बोलने वाला कोई आम आदमी नहीं है। कुछ शिक्षक संगठन विरोध में उतरे तो एक तरफ चतुर सरकार ने उन्हें दो साल का समय देकर स्कूलों में छात्र संख्या बढ़ाने के लिए कह दिया है। दूसरी तरफ 20 सरकारी स्कूलों के संचालन हेतु टेंडर आमंत्रित कर दिए हैं। सरकार जानती है कि शिक्षक संगठनों का जो टारगेट समुदाय है उस समुदाय के बच्चों के लिए आरटीआई के तहत निजी स्कूलों में पच्चीस प्रतिशत मुफ्त शिक्षा का प्रावधान कर दिया गया है। वैसे भी शिक्षक संगठनों की विश्वसनीयता इतनी संदिग्ध कर दी गई है कि आम आदमी अब इन पर विश्वास करने को कतई तैयार नहीं दिखता। वह अपने बच्चों का भविष्य स्कूलों के निजीकरण में ही देख रहा है। वह इतना त्रस्त है कि अपने बच्चों के भविष्य को लेकर उसे फिलहाल अपनी लूट की कोई चिंता नहीं है। जो कि बेहद चिंताजनक है। अगर व्यापक स्तर पर सरकारी शिक्षा संस्थानों के निजीकरण के खिलाफ अभियान नहीं चलाया गया तो कल शिक्षा के नाम पर शहरों से आगे गांवों में भी लूट का एक बड़ा बाजार खड़ा हो जाएगा।
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Saturday, 20 June 2015
Privatization in education sector
Latest modification in tatkal railway reservation
1 जुलाई से रेलवे में कई बदलाव .. कृपया जनहित में शेयर करें ...1. तत्काल टिकट कैंसिल कराने पर किराए की 50 फीसदी राशि रिफंड होगी। साथ ही तत्काल टिकट बुकिंग के समय में भी बदलाव किया गया है।2. एसी और स्लीपर श्रेणियों की टिकट बुकिंग अलग-अलग समय पर शुरू होगी। एसी कोच के लिए टिकट बुकिंग सुबह 10 बजे से और स्लीपर श्रेणी के लिए तत्काल टिकट 11 बजे से मिलेगा। यह बदलाव 15 जून से होगा। साथ ही सुबह आठ बजे से 8.30 बजे तक प्राधिकृत रेलवे एजेंटों के लिए सामान्य टिकट बुकिंग पर रोक होगी। यानी, सुबह 10 से 11 बजे के बीच सिर्फ एसी कोच में सीटें बुक की जा सकेंगी। इसके बाद सुबह 11 से 12 बजे के बीच स्लीपर कोच के लिए तत्काल टिकटों की बुकिंग होगी।3. राजधानी और शताब्दी एक्सप्रेस जैसी ट्रेनों में पेपरलेस मोबाइल टिकटिंग की व्यवस्था लागू होगी। यानी, इन ट्रेनों में सफर करनेवाले यात्रियों को कागज पर छपे हुए टिकट नहीं मिलेंगे। टिकटउनके मोबाइल पर रहेगा। यह योजना शुरू होने के बाद रेलवे सालाना 600 टन कागज की बचत कर सकेगा।4. रेलवे मल्टी लिंगुअल (कई भाषाओं में) रिजर्वेशन टिकट देने की शुरुआत भी करने जा रही है। अभी रिजर्वेशन टिकट अंग्रेजी और हिंदी में ही होते हैं। लेकिन, नए पोर्टल में किए जा रहे बदलाव के बाद दूसरी भाषाओं में भी रेल टिकट रिजर्व कराने की सुविधा दी जाएगी।5. ट्रेनों में ज्यादा से ज्यादा यात्रियों को सफर कराने के लिए सभी राजधानी और शताब्दी ट्रेनों में कोच भी बढ़ाए जाएंगे।6. भीड़भाड़ के दिनों में रेलयात्रियों को बेहतर सुविधा उपलब्ध कराने के लिए वैकल्पिक रेलगाड़ीसमायोजन प्रणाली (एटीएएस), सुविधा ट्रेन शुरू करने और महत्वपूर्ण ट्रेनों की ‘डुप्लीकेट’ गाड़ी चलाने की योजना।7. रेल मंत्रालय ने एक जुलाई से राजधानी, शताब्दी, दुरंतो और मेल-एक्सप्रेस ट्रेनों की तर्ज परसुविधा ट्रेन चलाएगा। सुविधा ट्रेन चलाने का मकसद यात्रियों को दलालों के चंगुल से बचाना और थोड़ा अधिक किराया देकर आरक्षित सीट पर आरामदेह सफर मुहैया कराना है। इसमें प्रीमियर ट्रेनों कीतरह केवल ऑनलाइन टिकट बुक नहीं होंगे, बल्कि काउंटर से भी टिकट लिया जा सकेगा।8. एक जुलाई से प्रीमियम ट्रेनें पूर्ण रूप से बंद हो जाएंगी। उनके स्थान पर सुविधा ट्रेनें चलेंगी। प्रीमियम ट्रेनों में टिकट रद्द कराने पर पैसा वापस नहीं मिलता था लेकिन, सुविधा ट्रेनों में टिकट रद्द कराने पर किराए की 50 फीसदी राशि ही वापसी होगी। इसके अलावा एसी-2 पर100 रुपए, एसी-3 पर 90 रुपए व स्लीपर क्लास में 60 रुपए प्रति यात्री कटेंगे। यात्री को ट्रेन छूटने के छह घंटे पहले रिफंड के लिए आवेदन करना होगा। सुविधा ट्रेन में वेटिंग टिकट नहीं मिलेगा। टिकट बुकिंग 10 से 30 दिन पहले कराई जा सकेगी, साथ ही टिकट में किसी तरह की रियायत लागू नहीं होगी।
-राजदीप परवाल-
सांसद प्रतिनिधि
रतलाम मंडल रेल सलाहकार समिति
Friday, 19 June 2015
” जरुरत के मुताबिक “जिंदगी” जिओ – “ख्वाहिश”….. के मुताबिक नहीं………
नंगे पाँव चलते “इन्सान” को लगता है
कि “चप्पल होते तो कितना अच्छा होता”
बाद मेँ……….
“साइकिल होती तो कितना अच्छा होता”
उसके बाद में………
“मोपेड होता तो थकान नही लगती”
बाद में………
“मोटर साइकिल होती तो बातो-बातो मेँ
रास्ता कट जाता”
फिर ऐसा लगा की………
“कार होती तो धूप नही लगती”
फिर लगा कि,
“हवाई जहाज होता तो इस ट्रैफिक का झंझट
नही होता”
जब हवाई जहाज में बैठकर नीचे हरे-भरे घास के मैदान
देखता है तो सोचता है,
कि “नंगे पाव घास में चलता तो दिल
को कितनी “तसल्ली” मिलती”…..
” जरुरत के मुताबिक “जिंदगी” जिओ – “ख्वाहिश”….. के
मुताबिक नहीं………
क्योंकि ‘जरुरत’
तो ‘फकीरों’ की भी ‘पूरी’ हो जाती है, और
‘ख्वाहिशें’….. ‘बादशाहों ‘ की भी “अधूरी” रह जाती है”…..
“जीत” किसके लिए, ‘हार’ किसके लिए
‘ज़िंदगी भर’ ये ‘तकरार’ किसके लिए…
जो भी ‘आया’ है वो ‘जायेगा’ एक दिन
फिर ये इतना “अहंकार” किसके लिए…
ए बुरे वक़्त !
ज़रा “अदब” से पेश आ !!
“वक़्त” ही कितना लगता है
“वक़्त” बदलने में………
मिली थी ‘जिन्दगी’ , किसी के
‘काम’ आने के लिए…..
पर ‘वक्त’ बीत रहा है , “कागज” के “टुकड़े” “कमाने” के लिए………
good evening
बकरे का गोश्त
एक बार
एक किसान का
घोडा बीमार हो गया।
उसने उसके इलाज के लिए
डॉक्टर को बुलाया
डॉक्टर ने घोड़े का अच्छे से
मुआयना किया और बोल|
"आपके घोड़े को
काफी गंभीर बीमारी है।
हम तीन दिन तक इसे
दवाई देकर देखते हैं,
अगर यह ठीक हो गया तो
ठीक नहीं तो हमें
इसे मारना होगा।
क्योंकि
यह बीमारी
दूसरे जानवरों में
भी फ़ैल सकती है।"
यह सब बातें पास में खड़ा
एक बकरा भी सुन रहा था।
अगले दिन डॉक्टर आया,
उसने घोड़े को
दवाई दी चला गया।
उसके जाने के बाद
बकरा घोड़े के
पास गया और बोला,
"उठो दोस्त, हिम्मत करो,
नहीं तो यह तुम्हें मार देंगे।"
दूसरे दिन
डॉक्टर फिर आया
और दवाई देकर चला गया।
बकरा फिर घोड़े के पास आया
और बोला,
"दोस्त
तुम्हें उठना ही होगा।
हिम्मत करो
नहीं तो तुम मारे जाओगे।
मैं तुम्हारी मदद करता हूँ।
चलो उठो"
तीसरे दिन
जब डॉक्टर आया तो
किसान से बोला,
"मुझे अफ़सोस है कि
हमें इसे मारना पड़ेगा
क्योंकि कोई भी सुधार
नज़र नहीं आ रहा।"
जब वो वहाँ से गए तो
बकरा घोड़े के पास
फिर आया और बोला,
"देखो दोस्त,
तुम्हारे लिए अब
करो या मरो वाली
स्थिति बन गयी है।
अगर तुम आज भी नहीं उठे
तो कल तुम मर जाओगे।
इसलिए हिम्मत करो।
हाँ, बहुत अच्छे।
थोड़ा सा और,
तुम कर सकते हो।
शाबाश,
अब भाग कर देखो,
तेज़ और तेज़।"
इतने में किसान
वापस आया तो उसने देखा कि
उसका घोडाभाग रहा है।
वो ख़ुशी से झूम उठा
और सब घर वालों को
इकट्ठा कर के चिल्लाने लगा,
"चमत्कार हो गया,
मेरा घोडा ठीक हो गया।
हमें जश्न मनाना चाहिए
आज बकरे का गोश्त खायेंगे।"
शिक्षा :
Management को
कभी नही पता होता कि
कौन employee
काम कर रहा है ...
Thursday, 18 June 2015
email id नहीं है
यह कहानी आपकी जिंदगी बदल सकती है
एक बार की बात है किसी शहर में एक लड़का रहता था जो बहुत गरीब था। मेंहनत मजदूरी करके बड़ी मुश्किल से 2 वक्त का खाना जुटा पाता ।
एक दिन वह किसी बड़ी कंपनी में चपरासी के लिए इंटरव्यू देने गया । बॉस ने उसे देखकर उसे काम दिलाने का भरोसा जताया ।
जब बॉस ने पूछा -”तुम्हारी email id क्या है”?
लड़के ने मासूमियत से कहा कि उसके पास email id नहीं है ।
ये सुनकर बॉस ने उसे बड़ी घृणा दृष्टि से देखा और कहा कि आज दुनिया इतनी आगे निकल गयी है , और एक तुम हो कि email id तक नहीं है , मैं तुम्हें नौकरी पर नहीं रख सकता ।
ये सुनकर लड़के के आत्मसम्मान को बहुत ठेस पहुंची , उसकी जेब में उस समय 50 रुपये थे । उसने उन 50 रुपयों से 1 किलो सेब खरीद कर वह अपने घर चलता बना। वह घर घर जाकर उन सेबों को बेचने लगा और ऐसा करके उसने 80 रुपये जमा कर लिए ।
अब तो लड़का रोज सेब खरीदता और घर घर जाकर बेचता । सालों तक यही सिलसिला चलता रहा लड़के की कठिन मेहनत रंग लायी और एक दिन उसने खुद की कंपनी खोली जहाँ से विदेशों में सेब सप्लाई किये जाते थे । उसके बाद लड़के ने पीछे मुड़कर नहीं देखा और जल्दी ही बहुत बड़े पैमाने पर अपना बिज़नेस फैला दिया और एक सड़क छाप लड़का बन गया अरबपति ।
एक कुछ मीडिया वाले लड़के का इंटरव्यू लेने आये और अचानक किसी ने पूछ लिया – “सर आपकी emailid क्या है”??
लड़के ने कहा -”नहीं है “, ये सुनकर सारे लोग चौंकने लगे कि एक अरबपति आदमी के पास एक “email id” तक नहीं है ।
लड़के ने हंसकर जवाब दिया - ”मेरे पास email id नहीं है इसीलिए मैं अरबपति हूँ , अगर email id होती तो मैं आज एक चपरासी होता”।
मित्रों ,
इसीलिए कहा जाता है कि हर इंसान के अंदर कुछ ना कुछ खूबी जरूर होती है, भीड़ के पीछे भागना बंद करो और अपने टेलेंट और स्किल को पहचानो ।
दूसरों से अपनी तुलना मत करो (Do not compare yourself to others) कि उसके पास वो है मेरे पास नहीं है , जो कुछ तुम्हारे पास है उसे लेकर आगे बढ़ो
फिर दुनियां की कोई ताकत तुम्हें सफल होने से नहीं रोक सकती.
Communication with god
A nice story:
A Construction Supervisor from 16th Floor of a Building was calling a Worker on Ground Floor.
Because of noise
the Worker
did not hear his Call.
To draw Attention,
the Supervisor threw a 10 Rupee Note
in Front of Worker.
He picked up the Note, put it in His Pocket &
Continued to Work.
Again to Draw Attention the Supervisor threw 500 Rupee Note & the Worker did the same.
Now the Supervisor picked a small Stone & threw on the Worker.
The Stone hit the Worker.
This time the Worker looked Up & the Supervisor Communicated with Him.
.
.
.
This Story is same as to our 'LIFE'...
God from Up,
wants to Communicate with Us...
but We are Busy doing our Worldly Jobs.
Then, he gives Us Small Gifts & Big Gifts...
We just keep them without looking from Where We Got it.
We are the Same.
Just keeping the gifts
without Thanking him,
We just say
We are LUCKY.
And when we are Hit with a Small Stone, which We call PROBLEMS,
then only We look Up & Communicate with him.
That is why it is said,
He gives, gives n forgives
And
We get, get n forget...
. ..
Tuesday, 16 June 2015
जेल में रामायण
हवलदार:-
'सर कल रात सभी कैदियों ने जेल में रामायण प्ले
किया था।
जेलर:-
'ये तो अच्छी बात है,
इसमें इतना परेशान क्यों हो रहे हो?
हवलदार:-
'सर परेशानी ये है कि
हनुमान बना कैदी अभी तक 'संजीवनी लेकर वापस
नही आया।
Sunday, 14 June 2015
Regular consumption of alcohol
I don't think I've ever heard a concept explained scientifically better than this...
"Well you see, it's like this...
A herd of buffalos can only move as fast as the slowest buffalo?
And when the herd is hunted, it is the slowest and weakest ones at the back that are killed first.
This natural selection is good for the herd as a whole, because the general speed and health of the whole group keeps improving by the regular killing of the weakest members.
In much the same way, the human brain can only work as fast as the slowest brain cells.
Now, as we know,excessive intake of alcohol kills brain cells.
But naturally, it attacks the slowest and weakest brain cells first. In this way, regular consumption of alcohol eliminates the weaker brain cells, making the brain a faster and more efficient machine.
And that's why you always feel smarter after a few drinks....,
Restoring old pension scheme a possibility in future
First International yoga day 21 June 2015
First International yoga day
21 June 2015
Time period- 33 min.
Part 1 (2 min)
श्लोक
"संगच्छध्वम संवद्यध्वम, संवो मनासी जानताम् ।
देवाभागम् यथा पूर्वे, संजानाना उपासते ।।"
Part 2 (3 min)
Warming up
(For relextion)
Neck rotation
Shoulder rotation
Hip rotation
Knee rotation
etc...
Part 3 (15 min)
A) Yogasan in standing position
1) Tadasan ताड़ासन
2) Vrukshasan वृक्षासन
3) Pad Hastsan पादहस्तासन
4) Ardhchakrasan अर्धचक्रासन
5) Trikonasan त्रिकोणासन
B) Yogasan in seating position
1) Bhadrasan भद्रासन
2) Shashankasan शशांकासन
3) Ardh ushtrasan अर्धउष्ट्रासन
4) Vkrasan वक्रासन
C) Yogasan in sleeping position (on stomach)
1) Bhujangasan भुजंगासन
2) Shalbhasan शलभासन
3) Makrasan मकरासन
D) Yogasan in sleeping position
1) Setu bandh sarvangasan सेतुबंध सर्वांगसन
2) Pawan muktasan पवन मुक्तासन
3) Shwasan शवासन
Part 4 (2 min)
Kapalbhati कपालभाति
(10-12 strocks in 3 round)
Part 5 (5 min)
Pranayaam प्राणायाम
1) Nadishodhan नाडीशोधन (5 round)
2) bhramari Pranayaam भ्रामरी प्राणायाम (5 round)
Part 6 (6 min)
Seat in any kind of Dhyan mudra
(शांभवी मुद्रा, आँखे बंद और हातों की ज्ञान मुद्रा ।)
At the time of Meditation play melodies background music.
Lastly take Sankalp
संकल्प
" हमें हमारे मन को हमेशा संतुलित रखना है। इसीमेही हमारा आत्मविकास समाया हुआ है। विश्व की ऐक्यता के लिये, स्वास्थ के लिये और शांतता के वृद्धि के लिये, विश्व के प्रति, समाज के प्रति, मेरे काम के प्रति, मेरे परिवार के प्रति और मेरे खुद केn प्रति जो कर्तव्य है मैं उन्हें पूरा करने का निश्चय करता हूँ।
Dear Citizens
Forward this msg to a minimum of twenty people on your contact list; and in turn ask each of them to do likewise.
In three days, most people in India will have this message.
This is one idea that really should be passed around.
प्याज और लहसुन ना खाए जाने के पीछे सबसे प्रसिद्ध पौराणिक कथा
प्याज और लहसुन ना खाए जाने के पीछे सबसे प्रसिद्ध पौराणिक कथा यह है कि समुद्रमंथनसे निकले अमृत को, मोहिनी रूप धरे विष्णु भगवान जब देवताओं में बांटरहे थे;तभी दो राक्षस राहू और केतू भी वहीं आकर बैठ गए। भगवान ने उन्हें भी देवता समझकर अमृत की बूंदे दे दीं। लेकिन तभी उन्हें सूर्य व चंद्रमा ने बतायाकि यह दोनों राक्षस हैं। भगवान विष्णु ने तुरंत उन दोनों के सिर धड़ से अलग कर दिए। इस समय तक अमृत उनके गले से नीचे नहीं उतर पाया था और चूंकि उनके शरीरों में अमृत नहीं पहुंचाथा, वो उसी समय ज़मीन पर गिरकर नष्ट हो गए। लेकिन राहू और केतु के मुख में अमृत पहुंचचुका था इसलिए दोनों राक्षसो केमुख अमर हो गए (यहीं कारण है कि आज भी राहू और केतू के सिर्फ सिरों को ज़िन्दामाना जाता है)।पर भगवान विष्णु द्वारा राहू और केतू के सिर काटे जाने पर उनके कटे सिरों से अमृत की कुछ बूंदे ज़मीन पर गिर गईं जिनसे प्याज और लहसुन उपजे। चूंकि यह दोनों सब्ज़िया अमृत की बूंदों से उपजी हैं इसलिए यह रोगों और रोगाणुओं को नष्ट करने में अमृत समान होती हैं पर क्योंकि यह राक्षसों के मुख से होकर गिरी हैं इसलिए इनमें तेज़ गंध है और ये अपवित्र हैं जिन्हें कभी भी भगवान के भोग में इस्तमाल नहीं किया जाता।
-श्री राधे।।।
Wednesday, 10 June 2015
Lipstick with LEAD!!
LIPSTICK INFORMATION
This comes from someone
Who works in the breast cancer unit at Mt. Sinai Hospital , in Toronto ..
From: Dr. Nahid Neman
If there is a female you care anything about..,
Share this with her.
Recently a lipstick brand called 'Red Earth'
Decreased their prices from
$67 to $9.90.
It contained lead.
Lead is a chemical which causes cancer.
The lipstick brands that contain lead are:
CHRISTIAN DIOR
LANCÃME
LAKME
MAYBELINE
CLINIQUE
Y.S.L.
ESTEE LAUDER
SHISEIDO
RED EARTH (Lip Gloss)
CHANEL (Lip Conditioner)
MARKET AMERICA-MOTNES LIPSTICK.
EL18
MANY LOCAL BRANDS SELLING IN CHINA, INDIA, UK, SINGAPORE, HONGKONG, USA, MALAYSIA..
The higher the lead content,
The greater the chance of causing cancer.
After doing a test on lipsticks,
It was found that the Y.S.L. Lipstick
Contained the most amount of lead.
Watch out for those lipsticks
Which are supposed to stay longer.
If your lipstick stays longer, it is
Because of the higher content of lead.
Here is the test you can do yourself:
1. Put some lipstick on your hand
2. Use a Gold ring to scratch on the lipstick.
3. If the lipstick colour changes to black,
Then you know the lipstick contains lead.
Please send this information to all your Sisters, Wife.., Daughters,..., and other female family members and female friend .
This information is being circulated at Walter Reed Army Medical Centre
Dioxin Carcinogens Cause Cancer..
( as received )
Monday, 8 June 2015
What management decides is decided..
There was a king he had 10 wild dogs...
He used them to torture and eat all ministers who made mistakes.
One of the ministers once gave an opinion which the king didn’t like at all, so he ordered that the minister to be thrown to the dogs.
So the minister said,
"I served you 10 years and you do this..?
Please give me 10 days before you throw me in with those dogs!"
The king agreed…
In those 10 days the minister went to the guard that was guarding the dogs and told him he wants to serve the dogs for the next 10 days…
The guard was baffled…
But he agreed…
So the minister started feeding the dogs, cleaning for them, washing them, providing all sorts of comfort for them.
So when the 10 days were up…
The king ordered that the minister be thrown in to the dogs for his punishment.
But when he was thrown in,
Everyone was amazed at what they saw..
They saw the dogs licking the feet of the minister!
The king baffled at what he saw… Said:” what happened to the dog. !!!”
The minister then said;”
I served the dogs for 10 days and they didn’t forget my service…
Yet I served you for 10 years and you forgot all at the first mistake!”…
So the king realised his mistake
and
Got wolves instead
Moral : What management decides is decided.. Eventhough they are wrong, u will be screwed!
1990 का दूरदर्शन और हम
1990 का दूरदर्शन और हम -
1.सन्डे को सुबह-2 नहा-धो कर टीवी के सामने बैठ जाना
2."रंगोली"में शुरू में पुराने फिर नए गानों का इंतज़ार करना
3."जंगल-बुक"देखने के लिए जिन दोस्तों के पास टीवी नहीं था उनका घर पर आना
4."चंद्रकांता"की कास्टिंग से ले कर अंत तक देखना
5.हर बार सस्पेंस बना कर छोड़ना चंद्रकांता में और हमारा अगले हफ्ते तक सोचना
6.शनिवार और रविवार की शाम को फिल्मों का इंतजार करना
7.किसी नेता के मरने पर कोई सीरियल ना आए तो उस नेता को और गालियाँ देना
8.सचिन के आउट होते ही टीवी बंद कर के खुद बैट-बॉल ले कर खेलने निकल जाना
9."मूक-बधिर"समाचार में टीवी एंकर के इशारों की नक़ल करना
10.कभी हवा से ऐन्टेना घूम जाये तो छत पर जा कर ठीक करना
बचपन वाला वो 'रविवार' अब नहीं आता,
दोस्त पर अब वो प्यार नहीं आता।
जब वो कहता था तो निकल पड़ते थे बिना घडी देखे,
अब घडी में वो समय वो वार नहीं आता।
बचपन वाला वो 'रविवार' अब नहीं आता...।।।
वो साईकिल अब भी मुझे बहुत याद आती है, जिसपे मैं उसके पीछे बैठ कर खुश हो जाया करता था। अब कार में भी वो आराम नहीं आता...।।।
जीवन की राहों में कुछ ऐसी उलझी है गुथियाँ, उसके घर के सामने से गुजर कर भी मिलना नहीं हो पाता...।।।
वो 'मोगली' वो 'अंकल Scrooz', 'ये जो है जिंदगी' 'सुरभि' 'रंगोली' और 'चित्रहार' अब नहीं आता...।।।
रामायण, महाभारत, चाणक्य का वो चाव अब नहीं आता, बचपन वाला वो 'रविवार' अब नहीं आता...।।।
वो एक रुपये किराए की साईकिल लेके,
दोस्तों के साथ गलियों में रेस लगाना!
अब हर वार 'सोमवार' है
काम, ऑफिस, बॉस, बीवी, बच्चे;
बस ये जिंदगी है। दोस्त से दिल की बात का इज़हार नहीं हो पाता।
बचपन वाला वो 'रविवार' अब नहीं आता...।।।
बचपन वाला वो 'रविवार' अब नहीं आता...।।।
.
Saturday, 6 June 2015
Joshua Bell and a social experiment about perception, taste and people's priorities.
It's Perception...
THE SITUATION:
In Washington, DC, at a Metro Station, on a cold January morning in 2007, this man with a violin played six Bach pieces for about 45 minutes. During that time, approximately 2,000 people went through the station, most of them on their way to work. After about 3 minutes, a middle-aged man noticed that there was a musician playing. He slowed his pace and stopped for a few seconds, and then he hurried on to meet his schedule.
About 4 minutes later:
The violinist received his first dollar. A woman threw money in the hat and, without stopping, continued to walk.
At 6 minutes:
A young man leaned against the wall to listen to him, then looked at his watch and started to walk again.
At 10 minutes:
A 3-year old boy stopped, but his mother tugged him along hurriedly. The kid stopped to look at the violinist again, but the mother pushed hard and the child continued to walk, turning his head the whole time. This action was repeated by several other children, but every parent — without exception — forced their children to move on quickly.
At 45 minutes:
The musician played continuously. Only 6 people stopped and listened for a short while. About 20 gave money but continued to walk at their normal pace. The man collected a total of $32.
After 1 hour:
He finished playing and silence took over. No one noticed and no one applauded. There was no recognition at all.
No one knew this, but the violinist was Joshua Bell, one of the greatest musicians in the world. He played one of the most intricate pieces ever written, with a violin worth $3.5 million dollars. Two days earlier, Joshua Bell sold out a theater in Boston where the seats averaged over $100 each to sit and listen to him play the same music.
This is a true story. Joshua Bell, playing incognito in the D.C. Metro Station, was organized by the Washington Post as part of a social experiment about perception, taste and people's priorities.
This experiment raised several questions:
In a common-place environment, at an inappropriate hour, do we perceive beauty?
If so, do we stop to appreciate it?
Are we able to recognize talent in an unexpected context?
One possible conclusion reached from this experiment could be this:
If we do not have a moment to stop and listen to one of the best musicians in the world, playing some of the finest music ever written, with one of the most beautiful instruments ever made . . .
How many other things are we missing as we rush through life ?
Introspect and have a wonderful life.
बिना दोस्तों के
एक पल के लिये सोचो कि यदि दोस्त ना होते तो क्या हम ये कर पाते----
.
.नर्सरी में गुम हुये पानी की बॉटल का ढक्कन कैसे ढूंढ पाते
.
.LKG में A B C D लिख कर होशियारी किसे दिखाते
.
.UKG में आकर हम किसकी पेन्सिल छुपाते
.
.पहली में बटन वाला पेन्सिल बॉक्स किसे दिखाते
.
.दूसरी में गिर जाने पर किसका हाथ सामने पाते
.
.तीसरी में absent होने पर कॉपी किसकी लाते
.
.चौथी में दूसरे से लड़ने पर डांट किसकी खाते
.
.पांचवी में फिर हम अपना लंच किसे चखाते
.
.छठी में टीचर की पिटाई पर हम किसे चिढा़ते
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.सातवीं में खेल में किसे हराते / किससे हारते
.
.आठवीं में बेस्ट फ्रेंड कह कर किससे मिलवाते
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.नवमीं में बीजगणित के सवाल किससे हल करवाते
.
.दसवीं में बॉयलाजी के स्केचेज़ किससे बनवाते
.
.ग्यारहवीं में "अपनी वाली" के बारे में किसे बताते
.
.बारहवीं में बाहर जाने पर आंसू किसके कंधे पर बहाते
.
.मोबाइल नं. से लेकर "उसके भाई कितने हैं" कैसे जान पाते
.
.मम्मी, पापा,दीदी या भैय्या की कमी कैसे सह पाते
.
.हर रोज कॉपी या पेन भूल कर कॉलेज कैसे जाते
.
."अबे बता" परीक्षा में ऐसी आवाज किसे लगाते
.
.जन्मदिनों पर केक क्या हम खुद ही अपने चेहरे पर लगाते
.
.कॉलेज बंक कर पिक्चर किसके साथ जाते
.
."उसके" घर के चक्कर किसके साथ लगाते
.
.डिग्री मिलने की खुशी हम किसके साथ बांटते
.
बहनों की डोलियां हम किसके कंधों के भरोसे उठाते
.ऐसी ही अनगिनत यादों को हम कैसे जोड़ पाते
बिना दोस्तों के हम सांस तो लेते पर,
शायद जिन्दगी ना जी पाते ।
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सभी दोस्तों को समर्पित
Friday, 5 June 2015
Maggie ki LEAD
सड़े तेल में डूबे भटूरे और समोसे,
सल्फर के तेजाब वाले पानी के गोलगप्पे,
बर्ड फ्लू वाले जख्मी मुर्गे की चांप,
एक ही पत्ती से कई बार बनी चाय,
Detergent powder वाला दूध,
धूल वाली सड़क पे खुले कटे फलों की चाट,
नाली किनारे बिकती सब्जियां,
कभी ना साफ हुई टंकी के प्याऊ का पानी,
खुजलाते हाथों की ढाबे की रोटीयां,
मरे मच्छरों की चाश्नी में डूबी जलेबियां,
और सूखे दूध के नकली मेवे की मिठाई,
जिसका बाल भी बांका नहीं कर सके।
उसका Maggie ki LEAD क्या बिगाड़ लेगी !!
33 करोड नहीँ 33 कोटी देवी देवता हैँ हिँदू धर्म मे
33 करोड नहीँ 33 कोटी देवी देवता हैँ हिँदू
धर्म मेँ।
कोटि = प्रकार।
देवभाषा संस्कृत में कोटि के दो अर्थ होते है,
कोटि का मतलब प्रकार होता है और एक अर्थ करोड़ भी होता।
हिन्दू धर्म का दुष्प्रचार करने के लिए ये बात उडाई गयी की हिन्दुओ के 33 करोड़ देवी देवता हैं और अब तो मुर्ख हिन्दू खुद ही गाते फिरते हैं की हमारे 33 करोड़ देवी देवता हैं...
कुल 33 प्रकार के देवी देवता हैँ हिँदू धर्म मे :-
12 प्रकार हैँ
आदित्य , धाता, मित, आर्यमा,
शक्रा, वरुण, अँश, भाग, विवास्वान, पूष,
सविता, तवास्था, और विष्णु...!
8 प्रकार हे :-
वासु:, धर, ध्रुव, सोम, अह, अनिल, अनल, प्रत्युष और प्रभाष।
11 प्रकार है :-
रुद्र: ,हर,बहुरुप, त्रयँबक,
अपराजिता, बृषाकापि, शँभू, कपार्दी,
रेवात, मृगव्याध, शर्वा, और कपाली।
एवँ
दो प्रकार हैँ अश्विनी और कुमार।
कुल :- 12+8+11+2=33 कोटी
Mahabharat and Bhagwat geeta
पाण्डव पाँच भाई थे जिनके नाम हैं -
1. युधिष्ठिर 2. भीम 3. अर्जुन
4. नकुल। 5. सहदेव
(बहन - देवी एकवीरा लोनावाला, महाराष्ट्र)
( इन पांचों के अलावा , महाबली कर्ण
भी कुंती के ही पुत्र थे , परन्तु उनकी गिनती पांडवों में नहीं की जाती है )
यहाँ ध्यान रखें कि… पाण्डु के उपरोक्त
पाँचों पुत्रों में से युधिष्ठिर, भीम और अर्जुन
की माता कुन्ती थीं ……तथा , नकुल और सहदेव की माता माद्री थी ।
वहीँ …. धृतराष्ट्र और गांधारी के सौ पुत्र…..
कौरव कहलाए जिनके नाम हैं -
1. दुर्योधन 2. दुःशासन 3. दुःसह
4. दुःशल 5. जलसंघ 6. सम
7. सह 8. विंद 9. अनुविंद
10. दुर्धर्ष 11. सुबाहु। 12. दुषप्रधर्षण
13. दुर्मर्षण। 14. दुर्मुख 15. दुष्कर्ण
16. विकर्ण 17. शल 18. सत्वान
19. सुलोचन 20. चित्र 21. उपचित्र
22. चित्राक्ष 23. चारुचित्र 24. शरासन
25. दुर्मद। 26. दुर्विगाह 27. विवित्सु
28. विकटानन्द 29. ऊर्णनाभ 30. सुनाभ
31. नन्द। 32. उपनन्द 33. चित्रबाण
34. चित्रवर्मा 35. सुवर्मा 36. दुर्विमोचन
37. अयोबाहु 38. महाबाहु 39. चित्रांग 40. चित्रकुण्डल41. भीमवेग 42. भीमबल
43. बालाकि 44. बलवर्धन 45. उग्रायुध
46. सुषेण 47. कुण्डधर 48. महोदर
49. चित्रायुध 50. निषंगी 51. पाशी
52. वृन्दारक 53. दृढ़वर्मा 54. दृढ़क्षत्र
55. सोमकीर्ति 56. अनूदर 57. दढ़संघ 58. जरासंघ 59. सत्यसंघ 60. सद्सुवाक
61. उग्रश्रवा 62. उग्रसेन 63. सेनानी
64. दुष्पराजय 65. अपराजित
66. कुण्डशायी 67. विशालाक्ष
68. दुराधर 69. दृढ़हस्त 70. सुहस्त
71. वातवेग 72. सुवर्च 73. आदित्यकेतु
74. बह्वाशी 75. नागदत्त 76. उग्रशायी
77. कवचि 78. क्रथन। 79. कुण्डी
80. भीमविक्र 81. धनुर्धर 82. वीरबाहु
83. अलोलुप 84. अभय 85. दृढ़कर्मा
86. दृढ़रथाश्रय 87. अनाधृष्य
88. कुण्डभेदी। 89. विरवि
90. चित्रकुण्डल 91. प्रधम
92. अमाप्रमाथि 93. दीर्घरोमा
94. सुवीर्यवान 95. दीर्घबाहु
96. सुजात। 97. कनकध्वज
98. कुण्डाशी 99. विरज
100. युयुत्सु
( इन 100 भाइयों के अलावा कौरवों की एक बहनभी थी… जिसका नाम""दुशाला""था,
जिसका विवाह"जयद्रथ"सेहुआ था )
"श्री मद्-भगवत गीता"के बारे में-
ॐ . किसको किसने सुनाई?
उ.- श्रीकृष्ण ने अर्जुन को सुनाई।
ॐ . कब सुनाई?
उ.- आज से लगभग 7 हज़ार साल पहले सुनाई।
ॐ. भगवान ने किस दिन गीता सुनाई?
उ.- रविवार के दिन।
ॐ. कोनसी तिथि को?
उ.- एकादशी
ॐ. कहा सुनाई?
उ.- कुरुक्षेत्र की रणभूमि में।
ॐ. कितनी देर में सुनाई?
उ.- लगभग 45 मिनट में
ॐ. क्यू सुनाई?
उ.- कर्त्तव्य से भटके हुए अर्जुन को कर्त्तव्य सिखाने के लिए और आने वाली पीढियों को धर्म-ज्ञान सिखाने के लिए।
ॐ. कितने अध्याय है?
उ.- कुल 18 अध्याय
ॐ. कितने श्लोक है?
उ.- 700 श्लोक
ॐ. गीता में क्या-क्या बताया गया है?
उ.- ज्ञान-भक्ति-कर्म योग मार्गो की विस्तृत व्याख्या की गयी है, इन मार्गो पर चलने से व्यक्ति निश्चित ही परमपद का अधिकारी बन जाता है।
ॐ. गीता को अर्जुन के अलावा
और किन किन लोगो ने सुना?
उ.- धृतराष्ट्र एवं संजय ने
ॐ. अर्जुन से पहले गीता का पावन ज्ञान किन्हें मिला था?
उ.- भगवान सूर्यदेव को
ॐ. गीता की गिनती किन धर्म-ग्रंथो में आती है?
उ.- उपनिषदों में
ॐ. गीता किस महाग्रंथ का भाग है....?
उ.- गीता महाभारत के एक अध्याय शांति-पर्व का एक हिस्सा है।
ॐ. गीता का दूसरा नाम क्या है?
उ.- गीतोपनिषद
ॐ. गीता का सार क्या है?
उ.- प्रभु श्रीकृष्ण की शरण लेना
ॐ. गीता में किसने कितने श्लोक कहे है?
उ.- श्रीकृष्ण जी ने- 574
अर्जुन ने- 85
धृतराष्ट्र ने- 1
संजय ने- 40.
अपनी युवा-पीढ़ी को गीता जी के बारे में जानकारी पहुचाने हेतु इसे ज्यादा से ज्यादा शेअर करे। धन्यवाद