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Tuesday 30 June 2015

हम गुस्से मे चिल्लाते क्यों हैं ?

हम गुस्से मे चिल्लाते क्यों हैं ?

(पढने के बाद चिल्लाना अवश्य भूल जाओगे )

एक बार एक संत अपने शिष्यों के साथ बैठे थे। अचानक उन्होंने सभी शिष्यों से एक सवाल पूछा। बताओ जब दो लोग एक दूसरे पर गुस्सा करते हैं तो जोर-जोर से चिल्लाते क्यों हैं?

शिष्यों ने कुछ देर सोचा और एक ने उत्तर दिया : हम अपनी शांति खो चुके होते हैं इसलिए चिल्लाने लगते हैं।
संत ने मुस्कुराते हुए कहा : दोनों लोग एक दूसरे के काफी करीब होते हैं तो फिर धीरे-धीरे भी तो बात कर सकते हैं। आखिर वह चिल्लाते क्यों हैं?
कुछ और शिष्यों ने भी जवाब दिया लेकिन संत संतुष्ट नहीं हुए और उन्होंने खुद उत्तर देना शुरू किया।
वह बोले : जब दो लोग एक दूसरे से नाराज होते हैं तो उनके दिलों में दूरियां बहुत बढ़ जाती हैं। जब दूरियां बढ़ जाएं तो आवाज को पहुंचाने के लिए उसका तेज होना जरूरी है। दूरियां जितनी ज्यादा होंगी उतनी तेज चिल्लाना पड़ेगा। दिलों की यह दूरियां ही दो गुस्साए लोगों को चिल्लाने पर मजबूर कर देती हैं। वह आगे बोले, जब दो लोगों में प्रेम होता है तो वह एक दूसरे से बड़े आराम से और धीरे-धीरे बात करते हैं। प्रेम दिलों को करीब लाता है और करीब तक आवाज पहुंचाने के लिए चिल्लाने की जरूरत नहीं। जब दो लोगों में प्रेम और भी प्रगाढ़ हो जाता है तो वह खुसफुसा कर भी एक दूसरे तक अपनी बात पहुंचा लेते हैं। इसके बाद प्रेम की एक अवस्था यह भी आती है कि खुसफुसाने की जरूरत भी नहीं पड़ती। एक दूसरे की आंख में देख कर ही समझ आ जाता है कि क्या कहा जा रहा है।

शिष्यों की तरफ देखते हुए संत बोले : अब जब भी कभी बहस करें तो दिलों की दूरियों को न बढ़ने दें। शांत चित्त और धीमी आवाज में ही बात करें। ध्यान रखें कि कहीं दूरियां इतनी न बढ़जाएं कि वापस आना ही मुमकिन न हो

Monday 29 June 2015

एक बार जनरल क्लास में सफ़र करके देखो

रेल की जनरल बोगी
पता नहीं आपने कभी भोगी कि नहीं भोगी
एक बार हम भी कर रहे थे यात्रा
प्लेटफार्म पर देखकर सवारियों की मात्रा
हमारे पसीने छूटने लगे
हम झोला उठाकर घर की ओर फूटने लगे
तभी एक कुली आया
मुस्कुरा कर बोला -
'अन्दर जाओगे ?'
हमने कहा - 'तुम पहुँचाओगे !'
वो बोला - बड़े-बड़े पार्सल पहुँचाए हैं
आपको भी पहुँचा दूंगा
मगर रुपये पूरे पचास लूँगा.
हमने कहा - पचास रुपैया ?
वो बोला - हाँ भैया
दो रुपये आपके
बाकी सामान के
हमने कहा - सामान नहीं है, अकेले हम हैं
वो बोला - बाबूजी,
आप किस सामान से कम हैं !
भीड़ देख रहे हैं,
कंधे पर उठाना पड़ेगा,
धक्का देकर अन्दर पहुँचाना पड़ेगा
वैसे तो ये हमारे लिए बाएँ हाथ का खेल है
मगर आपके लिए दाँया हाथ भी लगाना पड़ेगा
मंजूर हो तो बताओ
हमने कहा - देखा जायेगा,
तुम उठाओ
कुली ने बजरंगबली का नारा लगाया
और पूरी ताकत लगाकर हमें जैसे ही उठाया
कि खुद बैठ गया
दूसरी बार कोशिश की तो लेट ही गया
बोला - बाबूजी पचास रुपये तो बहुत कम हैं
हमें क्या मालूम था कि आप आदमी नहीं,
एटम बम हैं
भगवान ही आपको उठा सकता है
हम क्या खाकर उठाएंगे
आपको उठाते-उठाते खुद ही दुनिया से उठ जायेंगे !

तभी गाड़ी ने सीटी दे दी
हम झोला उठाकर भाये
बड़ी मुश्किल से डिब्बे के अन्दर घुस पाए
डिब्बे के अन्दर का दृश्य घमासान था
पूरा डिब्बा अपने आप में हल्दी घाटी का मैदान था
लोग लेटे थे,
बैठे थे,
खड़े थे
जिनको कहीं जगह नहीं मिली,
वो बर्थ के नीचे पड़े थे|

हमने एक गंजे यात्री से कहा - भाई साहब
थोडी सी जगह हमारे लिए भी बनाइये
वो सिर झुका के बोला - आइये हमारी खोपड़ी पे ही बैठ जाइये
आप ही के लिए तो साफ़ की है|
केवल दस रूपए देना,
लेकिन फिसल जाओ तो हमसे मत कहना|

तभी एक भरा हुआ बोरा खिड़की के रास्ते चढ़ा
आगे बढा और गंजे के सिर पर गिर पड़ा
गंजा चिल्लाया - किसका बोरा है ?
बोरा फौरन खडा हो गया
और उसमें से एक लड़का निकल कर बोला
बोरा नहीं है
बोरे के भीतर बारह साल का छोरा है
अन्दर आने का यही एक तरीका बचा है
ये हमने आपने माँ-बाप से सीखा है
आप तो एक बोरे में ही घबरा रहे हैं
जरा ठहर तो जाओ अभी गददे में लिपट कर
हमारे बाप जी अन्दर आ रहे हैं
उनको आप कैसे समझायेंगे
हम तो खड़े भी हैं वो तो आपकी गोद में ही लेट जाएँगे|

एक अखंड सोऊ चादर ओढ़ कर सो रहा था
एकदम कुम्भकरण का बाप हो रहा था
हमने जैसे ही उसे हिलाया
उसकी बगल वाला चिल्लाया -
ख़बरदार हाथ मत लगाना वरना पछताओगे
हत्या के जुर्म मैं अन्दर हो जाओगे
हमने पुछा-
भाई साहब क्या लफड़ा है ?
वो बोला - बेचारा आठ घंटे से बिना हिले डुले पड़ा है
क्या पता ज़िंदा है की मरा है
आपके हाथ लगते ही अगर ऊपर पहुँच जायेगा
इस भीड़ में ज़मानत करने क्या तुम्हारा बाप आयेगा ?

एक नौजवान खिड़की से अन्दर आने लगा
तो पूरे डिब्बा मिल कर उसे बाहर धकियाने लगा
नौजवान बोला - भाइयों,
भाइयों
सिर्फ खड़े रहने की जगह चाहिए
एक अन्दर वाला बोला - क्या ?
खड़े रहने की जगह चाहिए
तो प्लेटफोर्म पर खड़े हो जाइये
जिंदगी भर खड़े रहिये कोई हटाये तो कहिये
जिसे देखो घुसा चला आ रहा है
रेल का डिब्बा साला जेल हुआ जा रहा है !
इतना सुनते ही एक अपराधी जोर से चिल्लाया -
रेल को जेल मत कहो मेरी आत्मा रोती है
यार जेल के अन्दर कम से कम
चलने-फिरने की जगह तो होती है !

एक सज्जन फर्श पर बैठे हुए थे आँखें मूँदे
उनके सर पर अचानक गिरीं पानी की गरम-गरम बूँदें
तो वे सर उठा कर चिल्लाये - कौन है,
कौन है
साला ऊपर से पानी गिरा कर मौन है
दिखता नहीं नीचे तुम्हारा बाप बैठा है !

क्षमा करना बड़े भाई
पानी नहीं है
हमारा छः महीने का बच्चा है कृपया माफ़ कर दीजिये
और
अपना मुँह भी नीचे कर लीजिये

वरना बच्चे का क्या भरोसा !
क्या मालूम अगली बार उसने आपको क्या परोसा !!

अचानक डिब्बे में बड़ी जोर का हल्ला हुआ
एक सज्जन दहाड़ मार कर चिल्लाये -
पकड़ो-पकड़ो जाने न पाए
हमने पुछा क्या हुआ,
क्या हुआ ?
वे बोले - हाय-हाय,
मेरा बटुआ किसी ने भीड़ में मार दिया
पूरे पांच सौ रुपये से उतार दिया टिकट भी उसी में था !
कोई बोला - रहने दो यार भूमिका मत बनाओ
टिकट न लिया हो तो हाथ मिलाओ
हमने भी नहीं लिया है पर आप इस तरह चिल्लायेंगे
तो आपके साथ हम भी खामखाः पकड़ लिए जायेंगे?
वे सज्जन रोकर बोले - नहीं भाई साहब
मैं झूठ नहीं बोलता
मैं एक टीचर हूँ

कोई बोला - तभी तो झूठ है टीचर के पास और बटुआ ?
इससे अच्छा मजाक इतिहास मैं आज तक नहीं हुआ !
टीचर बोला - कैसा इतिहास
मेरा विषय तो भूगोल है
तभी एक विद्यार्थी चिल्लाया - सर इसलिए तुम्हारा बटुआ गोल है !

बाहर से आवाज आई - 'गरम समोसे वाला'
अन्दर से फ़ौरन बोले एक लाला - दो हमको भी देना भाई
सुनते ही ललाइन ने डाँट लगायी - बड़े चटोरे हो !
क्या पाँच साल के छोरे हो ?
इतनी गर्मी मैं समोसा खाओगे ?
फिर पानी पानी चिल्लाओगे ?

अभी तो पानी मुह में आ रहा है समोसे खाते ही आँखों में आ जायेगा
इस भीड़ में पानी क्या तुमको रेल मंत्री दे जायेगा ?

तभी डिब्बे में हुआ हल्का उजाला
किसी ने जुमला उछाला ये किसने बीड़ी जलाई है ?
कोई बोला - बीड़ी नहीं है स्वागत करो
डिब्बे में पहली बार बिजली आई है
दूसरा बोला - पंखे कहाँ हैं ?

उत्तर मिला - जहाँ नहीं होने चाहिए वहाँ हैं
पंखों पर आपको क्या आपत्ति है ?
जानते नहीं रेल हमारी राष्ट्रीय संपत्ति है
कोई राष्ट्रीय चोर हमें घिस्सा दे गया है
संपत्ति में से अपना हिस्सा ले गया है
आपको लेना हो आप भी ले जाओ
मगर जेब में जो 4 बल्ब रख लिए हैं
उनमें से एकाध तो हमको दे जाओ !
अचानक डिब्बे में एक विस्फोट हुआ
हलाकि यह बम नहीं था
मगर किसी बम से कम भी नहीं था
यह हमारा पेट था उसका हमारे लिए संकेत था
कि जाओ बहुत भारी हो रहे हो हलके हो जाओ
हमने सोचा डिब्बे की भीड़ को देखते हुए
बाथरूम कम से कम दो किलोमीटर दूर है
ऐसे में कुछ हो जाये तो किसी का क्या कसूर है
इसिलए रिस्क नहीं लेना चाहिए
अपना पडोसी उठे उससे पहले अपने को चल देना चाहिए
सो हमने भीड़ में रेंगना शुरू किया
पूरे दो घंटे में पहुँच पाए
बाथरूम का दरवाजा खटखटाया तो भीतर से एक सिर बाहर आया
बोला - क्या चाहिए ?
हमने कहा - बाहर तो आजा भैये हमें जाना है
वो बोला - किस किस को निकालोगे ?
अन्दर बारह खड़े हैं
हमने कहा - भाई साहब हम बहुत मुश्किल में पड़े हैं
मामला बिगड़ गया तो बंदा कहाँ जायेगा ?
वो बला - क्यूँ आपके कंधे
पे जो झोला टँगा है
वो किस दिन काम में आयेगा ...

इतने में लाइट चली गयी
बाथरूम वाला वापस अन्दर जा चुका था
हमारा झोला कंधे से गायब हो चुका था
में भी अँधेरे का लाभ उठाकर अपने काम में ला चुका था |

अचानक गाड़ी बड़ी जोर से हिली
एक यात्री ख़ुशी के मारे चिल्लाया - 'अरे चली, चली'
कोई बोला - जय बजरंग बली, कोई बोला - या अली
हमने कहा - काहे के अली और काहे के बली !
गाड़ी तो बगल वाली चली
और तुमको अपनी चलती नजर आ रही है ?
प्यारे !
आम आदमी का हमसफ़र बन के देखो
एक बार जनरल क्लास में सफ़र करके देखो।।

Are we earning to pay builders and interior designers, caterers and decorators?

Are we earning to pay builders and interior designers, caterers and decorators? 

Whom we want to impress with our highly inflated house properties & fat weddings?

Do you remember for more than two days what you ate in somebody's marriage?

Why are we working like dogs in our prime years of life?

How many generations we want to feed?

Most of us have  two kids.Many have a single kid.How much is the "need" and how much we "want"? ?

Do our generation will be unable to earn?    Can not we spare one and a half days a week for friends,family and self??

Do you spend 5% of your monthly practice income for your self enjoyment? Usually...No.

Why can't we enjoy simultaneously while we earn?  
Spare time to enjoy before you have slipped Discs and large prostates.

We don't own properties, we just have temporary name on documents.

GOD laughs sarcastically,when someone says "I am the owner of this land"!!    सब भूमि गोपाल की।

Do not judge a person only by the  length of his car. Many of our science and maths teachers were great personalities riding on scooters!!

Car AC and cancerous benzene

   यह सन्देश ! ऐसे सभी व्यक्ति, जो 'ए सी कार' का उपयोग करते हैं के लिये अति आवश्यक और महत्वपूर्ण है !  क्योंकि यह उनके स्वास्थ्य से सीधा सम्बन्ध रखता है !!...कार की उपयोग पुस्तिका कार  स्टार्ट करने और ए सी चलाने से पहले समस्त शीशों को खोलने का निर्देश देती है जिससे गर्म हवा बाहर निकल जाये ! क्यों ?

इसमें कोई भी आश्चर्य की बात नहीं है कि आज कैंसर के कारण पहले की अपेक्षा बहुत मौतें हो रही हैं ! अत्यन्त आश्चर्य होता है कि कैंसर की उत्पत्ति किन पदार्थों से हो रही है ! एक ऐसा उदाहरण है जो कैंसर की उत्पत्ति के कारणों को बहुत हद तक स्पष्ट करता है !

प्रतिदिन अधिकांश व्यक्ति सर्वप्रथम  सुबह के समय और अंतिम बार रात को अपनी कारों का उपयोग करते हैं

कृपया कार में बैठते ही 'ए सी' को न चलायें !

   कार में प्रवेश करते ही सबसे पहले शीशों को खोलें और कुछ मिनटों के बाद ही ए सी चालू करें !

इसका कारण क्या है ! अनुसंधानों से यह पता चला है कि कार का डैश बोर्ड,सीट,'एसी' की डक्ट्स, वस्तुतः गाड़ी की प्रत्येक पलास्टिक की बनी वस्तुएँ 'विषैली गैस' बैन्जीन छोड़ती हैं जो कि 'कैंसर'उत्पत्ति कारक तत्व है ! और
" एक बहुत बड़ा कैंसर पैदा करने वाला तत्व !!

जब भी आप कार खोलें तो कार को स्टार्ट करने से पहले कुछ क्षण के लिये गर्म पलास्टिक की गंध को स्वयम् अनुभव करेंगे !   

बैन्जीन, कैंसर कारक होने के साथ- साथ हड्डियों पर विषैला प्रभाव, एनीमिया और स्वास्थय रक्षक सफ़ेद रक्त कणों (यह रोग कारक विषाणुओं को नष्ट करते हैं) में कमी लाती है ! अधिक समय के सम्पर्क से ल्युकेमिया और कुछ अन्य प्रकार के कैंसर बढ़ने का पूर्ण ख़तरा है ! इसके कारण गर्भवती महिलाओं में गर्भपात हो सकता है ! 

बन्द स्थान में बैन्ज़ीन का "स्वीकृत" स्तर: 50 मिलीग्राम प्रति वर्ग फ़ीट है !

एक कार जोकि एक बन्द जगह पार्क की गई हो और जिसके शीशे बन्द हों में 400-800 मिलीग्राम बैन्ज़ीन का स्तर होगा - स्वीकृत मात्रा से 8 गुणा अधिक !

यदि इसको बाहर खुले में पार्क किया गया हो जहाँ पर तापमान 60  फैरनहाईट अंश से अधिक हो तो, बैन्ज़ीन का स्तर 2000-4000 मिलीग्राम होगा, अर्थात स्वीकृत स्तर से कम से कम 40 गुणा अधिक !

जो व्यक्ति शीशे बन्द हुई कार में बैठ जाते हैं वस्तुतः वह अत्याधिक मात्रा में विद्यमान विषैली बैन्ज़ीन को साँस के द्वारा अपने शरीर में ले लेंगे !

बैन्ज़ीन एक विषैला तत्व है जोकि गुर्दे और लीवर पर दुष्प्रभाव डालता है !  सबसे ख़तरनाक बात है कि हमारा शरीर इस विषैले तत्व को बाहर करने में नितान्त असमर्थ है !

अतः कार में बैठने से पहले कुछ समय के लिये इसके दरवाज़े व खिड़कियाँ खोल दें जिससे  बैठने से पहले ही अन्दर की हवा बाहर निकल जाये ( अर्थात हानी कारक विषैली गैसीय तत्व बाहर निकल जाये !)

Sunday 28 June 2015

‘वंदे मातरम्’

वन्दे मातरम् का संक्षिप्त इतिहास इस प्रकार है-

७ नवम्वर १८७६ बंगाल के कांतल पाडा गांव में बंकिम चन्द्र चटर्जी ने ‘वंदे मातरम’ की रचना की।
१८८२ वंदे मातरम बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय के प्रसिद्ध उपन्यास ‘आनंद मठ’ में सम्मिलित।
१८९६ रवीन्द्र नाथ टैगोर ने पहली बार ‘वंदे मातरम’ को बंगाली शैली में लय और संगीत के साथ कलकत्ता के कांग्रेस अधिवेशन में गाया।
मूलरूप से ‘वंदे मातरम’ के प्रारंभिक दो पद संस्कृत में थे, जबकि शेष गीत बांग्ला भाषा में।
वंदे मातरम् का अंग्रेजी अनुवाद सबसे पहले अरविंद घोष ने किया।
दिसम्बर १९०५ में कांग्रेस कार्यकारिणी की बैठक में गीत को राष्ट्रगीत का दर्जा प्रदान किया गया, बंग भंग आंदोलन में ‘वंदे मातरम्’ राष्ट्रीय नारा बना।
१९०६ में ‘वंदे मातरम’ देव नागरी लिपि में प्रस्तुत किया गया, कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में गुरुदेव रविन्द्र नाथ टैगोर ने इसका संशोधित रूप प्रस्तुत किया।
१९२३ कांग्रेस अधिवेशन में वंदे मातरम् के विरोध में स्वर उठे।
पं॰ नेहरू, मौलाना अब्दुल कलाम अजाद, सुभाष चंद्र बोस और आचार्य नरेन्द्र देव की समिति ने २८ अक्टूबर १९३७ को कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में पेश अपनी रिपोर्ट में इस राष्ट्रगीत के गायन को अनिवार्य बाध्यता से मुक्त रखते हुए कहा था कि इस गीत के शुरुआती दो पैरे ही प्रासंगिक है, इस समिति का मार्गदर्शन रवीन्द्र नाथ टैगोर ने किया।
१४ अगस्त १९४७ की रात्रि में संविधान सभा की पहली बैठक का प्रारंभ ‘वंदे मातरम’ के साथ और समापन ‘जन गण मन..’ के साथ..।
१९५० ‘वंदे मातरम’ राष्ट्रीय गीत और ‘जन गण मन’ राष्ट्रीय गान बना।
२००२ बी.बी.सी. के एक सर्वेक्षण के अनुसार ‘वंदे मातरम्’ विश्व का दूसरा सर्वाधिक लोकप्रिय गीत।

Friday 26 June 2015

अतीत सदा याद रहता है

___अतीत कभी नहीं भूला___

बिल गेटस सुबह के नाश्ते के लिए एक रेस्टोरेंट में पहुंचे।
जब उन्होंने नाश्ता समाप्त कर लिया और वेटर बिल ले आया, तब उन्होंने भुगतान के अलावा पांच डालर बतौर टिप टृे में रख दिए।

वेटर ने टिप तो ले लिया पर उसके मुंह पर आया हुआ आश्चर्य का भाव गेटस की दृष्टि से ओझल न रह सका।

उसी को भांपते हुए उनहोंने पूछा–क्या कोई खास बात है?

वेटर ने कहा– जी, अभी दो दिन पहले की बात है इसी मेज पर आपकी बेटी ने लंच किया और मुझे बतौर टिप पांच सौ डालर दिये थे और आप उनके पिता दुनिया के सबसे अमीर आदमी होने के बावजूद मुझे केवल पांच डालर दिये हैं।

मुस्कुराते हुए गेटस बोले– हां, क्योंकि वह दुनिया के सबसे अमीर व्यक्ति की बेटी है और मैं एक लकडहारे का बेटा हुं।
मुझे अपना अतीत सदा याद रहता है,
क्योंकि वह मेरा सर्वोत्तम मार्गदर्शक है।
(एक मैगजीन से)

Thursday 25 June 2015

Don't accept free gifts of key chains

No free gifts to accept or pay a  price! Information reaching Police formation indicates that: There is a syndicate of criminals selling beautiful key holders at Public Places, Airports, Petrol Stations. They sometimes parade themselves as sales promoters giving out free key holders. Please do not buy or accept these key holders no matter how beautiful they look.The key holders have inbuilt tracking device chip which allows them to track you to your home or wherever your car is parked. The key holders are very beautiful to resist. Accepting same may endanger your life. All are therefore requested to pass this message to colleagues, family members and loved ones.  Be on guard.Alert everyone.

Reflection of our own thoughts

Once a dog ran into a museum- where all the walls, the ceilng, the door and even the floor were made of mirror, seeing this the dog froze in surprise in the middle of the hall, a whole pack of dogs surrounded it from all sides, from above and below. Just in case, the dog bared his teeth -and all the reflections responded to it in the same way. Frightened, the dog frantically barked - the reflections imitated the bark and increased it many times. The dog barked even harder and the echo was keeping up. The dog tossed from one side to another, biting the air - his reflections also tossed around snapping their teeth.

  Next day in the morning the museum security guards found the miserable dog, lifeless and surrounded by a million reflections of lifeless dogs. There was nobody, who would make any harm to the dog. The dog died by fighting with his own reflections.

The world doesn't bring good or evil on its own. Everything that is happening around us is the reflection of our own thoughts, feelings, wishes and actions. 
The World is a big mirror. Strike a good pose!

The cockroach theory for self development     

A beautiful speech by Sundar Pichai - an IIT-MIT Alumnus and Global Head Google Chrome:

The cockroach theory for self development
    
At a restaurant, a cockroach suddenly flew from somewhere and  sat on a lady.

She started screaming out of fear.

With a panic stricken face and trembling voice, she started jumping, with both her hands desperately trying to get rid of the cockroach.

Her reaction was contagious, as everyone in her group also got panicky.

The lady finally managed to push the cockroach away but ...it landed on another lady in the group.

Now, it was the turn of the other lady in the group to continue the drama.

The waiter rushed forward to their rescue.

In the relay of throwing, the cockroach next fell upon the waiter.

The waiter stood firm, composed himself and observed the behavior of the cockroach on his shirt.

When he was confident enough, he grabbed it with his fingers and threw it out of the restaurant.

Sipping my coffee and watching the amusement, the antenna of my mind picked up a few thoughts and started wondering, was the cockroach  responsible for their histrionic behavior?

If so, then why was the waiter not disturbed?

He handled it near to perfection, without any chaos.

It is not the cockroach, but the inability of the ladies to handle the disturbance caused by the cockroach, that disturbed the ladies.

I realized that, it is not the shouting of my father or my boss or my wife that disturbs me, but it's my inability to handle the disturbances caused by their shouting that disturbs me.

It's not the traffic jams on the road that disturbs me, but my inability to handle the disturbance caused by the traffic jam that disturbs me.

More than the problem, it's my reaction to the problem that creates chaos in my life.

Lessons learnt from the story:

I understood, I should not react in life.
I should always respond.

The women reacted, whereas the waiter responded.

Reactions are always instinctive whereas responses are always well thought of.

A beautiful way to understand............LIFE.

Person who is HAPPY is not because Everything is RIGHT in his Life..

He is HAPPY because his Attitude towards Everything in his Life is Right..!!,,,,,,,

Really beautiful
worth reading

why not do good and be good…

Use Energy for Peace !!

This is a story of a poor Scottish farmer whose name was Fleming. One day, while trying to make a  living for his family, he heard a cry for help coming from a nearby dog. He dropped his tools and ran to the dog. There, mired to his waist in black muck, was a terrified boy, screaming and struggling to free himself. Farmer Fleming saved the boy from what could have been a slow and terrifying death.

The next day, a fancy carriage pulled up to the Scotsman’s sparse surroundings. An elegantly dressed nobleman stepped out and introduced himself as the father of the boy Farmer Fleming had saved. “I want to repay you, “said the nobleman. “I’ll make you a deal. Let me take your son and give him a good education. If he’s anything like his father, he’ll grow to a man you can be proud of you.” And that he did. In time, Farmer Fleming’s son graduated from St. Mary’s Hospital Medical School in London, and went on to become known throughout the world as the noted Sir Alexander Fleming, the discoverer of Penicillin.

Years afterward, the nobleman’s son was stricken with pneumonia. What saved him? Penicillin. This is not the end. The nobleman’s son also made a great contribution to society. For the nobleman was none other than Lord Randolph Churchill. and his son’s name was Winston Churchill. Let us use all our talent, competence and energy for creating peace and happiness. One good deed of farmer Fleming lead to the making of Sir Alexander Fleming. So, why not do good and be good…

Wednesday 24 June 2015

10 new rules regarding railway reservation

1 जुलाई से बदल जाएंगे रेलवे के ये 10 नियम

अगर आप रेलवे में सफर करते हैं तो जरा इस खबर को ध्यान से पढ़ें। अगर आपने इस खबर को मिस कर दिया तो आपको परेशानी हो सकती है। दरअसल 1 जुलाई से रेलवे में कई बदलाव होने वाले हैं। अगर आप ने इस बदलावों के बारे में नहीं जाना तो आपकी मुश्किल बढ़नी तय हैं। जानिए क्या है वो अहम बदलाव...

१    वेटिंग लिस्ट का झंझट खत्म हो जाएगा। रेलवे की ओर से चलाई जाने वाली सुविधा ट्रेनों में यात्रियों को कन्फर्म टिकट की सुविधा दी जाएगी।

२   1 जुलाई से तत्काल टिकट कैंसिल करने पर 50 फीसदी राशी वापस किए जाएंगे।

३   1 जुलाई से तत्काल टिकट के नियमों में बदलाव हुआ है। सुबह 10 से 11 बजे तक एसी कोच के लिए टिकट बुकिंग होगी जबकि 11 से 12 बजे तक स्लीपर कोच की बुकिंग होगी।

४    1 जुलाई से राजधानी और शताब्दी ट्रेनों में पेपरलेस टिकटिंग की सुविधा शुरु हो रही हैं। इस सुविधा के बाद शताब्दी और राजधानी ट्रेनों में पेपर वाली टिकट नहीं मिलेगी, बल्कि आपके मोबाईल पर टिकट भेजा जाएगा।

५    जल्द ही रेलवे अगल-अगल भाषाओं में टिकटिंग की सुविधा शुरु होने जा रही हैं। अभी तक रेलवे में हिंदी और अंग्रेजी में टिकट मिलती है, लेकिन नई वेबसाइट के बाद अब अलग-अगल भाषाओं में टिकट की बुकिंग की जा सकेगी।

६      रेलवे में टिकट के लिए हमेशा से मारामारी होती रहती है। ऐसे में 1 जुलाई से शताब्दी और राजधानी ट्रेनों में कोचों की संख्या बढ़ाई जाएगी।

७    भीड़भाड़ के दिनों में रेलगाड़ी में बेहतर सुविधा देने के लिए वैकल्पित रेलगाड़ी समायोजन प्रणाली, सुविधा ट्रेन शुरु करने और महत्वपूर्ण ट्रेनों की डुप्लीकेट गाड़ी चलाने की योजना है।

८     रेल मंत्रालय ने 1 जुलाई से राजधानी, शताब्दी, दुरंतो और मेल-एक्सप्रेस ट्रेनों के तर्ज पर सुविधा ट्रेन चलाई जाएगी।

९      1 जुलाई से रेलवे प्रीमियम ट्रेनों को पूरी तरह से बंद करने जा रहा है।

१०    सुविधा ट्रेनों में टिकट वापसी पर 50 फीसदी किराए की वापसी होगी। इसके अलावा एसी-2 पर 100 रुपए, एसी-3 पर 90 रुपए, स्लीपर पर 60 रुपए प्रति यात्री कटेंगे।

जन हित  में जारी

Tuesday 23 June 2015

Superb Story

***Superb Story***

Rakesh was worried that his wife was having an hearing problem and he thought she might need a  hearing aid.

Not quite sure how to approach her, he called the family Doctor to discuss the problem.

The Doctor told him there is a simple informal test the husband could perform to give the Doctor a better idea about her hearing loss.

"Here's what you do,"
said the Doctor,
"stand about 40 feet away from her, and in a normal conversational speaking tone see if she hears you.
If not, go to 30 feet,
then 20 feet,
and so on until you get a response.."

That evening,
his wife was in the kitchen cooking dinner,
and Rakesh thought of testing the same.
He says to himself,
"I'm about 40 feet away, let's see what happens.?"

Then in a normal tone he asks,
"Honey, what's for dinner?"

No response....

So he moves closer to the kitchen,
about 30 feet from his wife and repeats,
"Honey, what's for dinner?"

Still No response...

Next he moves to the dining room where he is about 20 feet from his Wife and asks,
"Honey, what's for dinner?"

Again he gets No response...

So, he walks up to the kitchen door,
about 10 feet away.
"Honey, what's for dinner?"

Again there is No response....

So he walks right up behind her,
"Honey, what's for dinner?"

(You'll Love this)















"For God's sake Rakesh,
its  the FIFTH time I am telling you,
its 'AALOO PARATHA'.!"
��

Dont laugh alone. Pass it on ������

गृहस्थी का मूल मंत्र

=आपसी विश्वास=
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संत कबीर रोज सत्संग किया करते थे। दूर-दूर से लोग उनकी बात सुनने आते थे।

एक दिन सत्संग खत्म होने पर भी एक आदमी बैठा ही रहा।

कबीर ने इसका कारण पूछा तो वह बोला, ‘मुझे आपसे कुछ पूछना है।

मैं गृहस्थ हूं, घर में सभी लोगों से मेरा झगड़ा होता रहता है। मैं जानना चाहता हूं कि मेरे यहां गृह क्लेश क्यों होता है और वह कैसे दूर हो सकता है?’

कबीर थोड़ी देर चुप रहे, फिर उन्होंने अपनी पत्नी से कहा, ‘लालटेन जलाकर लाओ’।

कबीर की पत्नी लालटेन जलाकर ले आई।

वह आदमी भौंचक देखता रहा। सोचने लगा इतनी दोपहर में कबीर ने लालटेन क्यों मंगाई।

थोड़ी देर बाद कबीर बोले, ‘कुछ मीठा दे जाना।’

इस बार उनकी पत्नी मीठे के बजाय नमकीन देकर चली गई।
उस आदमी ने सोचा कि यह तो शायद पागलों का घर है। मीठा के बदले नमकीन, दिन में लालटेन।

वह बोला, ‘कबीर जी मैं चलता हूं।’

कबीर ने पूछा, ‘आपको अपनी समस्या का समाधान मिला या अभी कुछ संशय बाकी है?’

वह व्यक्ति बोला, ‘मेरी समझ में कुछ नहीं आया।’

कबीर ने कहा, ‘जैसे मैंने लालटेन मंगवाई तो मेरी घरवाली कह सकती थी कि तुम क्या सठिया गए हो।

इतनी दोपहर में लालटेन की क्या जरूरत। लेकिन नहीं, उसने सोचा कि जरूर किसी काम के लिए लालटेन मंगवाई होगी।

मीठा मंगवाया तो नमकीन देकर चली गई। हो सकता है घर में कोई मीठी वस्तु न हो। यह सोचकर मैं चुप रहा।

इसमें तकरार क्या?

आपसी विश्वास बढ़ाने और तकरार में न फंसने से विषम परिस्थिति अपने आप दूर हो गई।’

उस आदमी को हैरानी हुई। वह समझ गया कि कबीर ने यह सब उसे बताने के लिए किया था।

कबीर ने फिर कहा,’ गृहस्थी में आपसी विश्वास से ही तालमेल बनता है।

आदमी से गलती हो तो औरत संभाल ले और औरत से कोई त्रुटि हो जाए तो पति उसे नजरअंदाज कर दे।

यही गृहस्थी का मूल मंत्र है।’

All married must read it.

Monday 22 June 2015

'Nostalgic' June...!!!

  It's the last week of June...!!!
LETS RECALL OUR CHILDHOOD DAYS...
This is that wonderful time when some years back, the most exciting things of our lives used to happen.

> Our school used to re-open.

> For a moment, just think of it all.

> And try, if you can visualize those days.

> That excitement of a new bag.

> New books.

> The end of an exciting vacation, with a tinge of sadness.

> A bit of anxiety on the 1st day of another school year.

> The unforgetable smell from the pages of new books.

> New subjects.

> New teachers.

> New sitting positions of a class.

> And the most exciting was to welcome our best friends in the class.

> The pouring rains outside.

> The shopping for raincoat.

> Everything around us freshend up.

> Lush green.

> Cold and pleasant.

Wasn't it the most beautiful period of our lives.

It can never return...!!!

But you can always close your eyes for a moment, and try to relive it.

And don't forget to experience the same through the kidz heart.

Wishing everyone a 'nostalgic' June...!!!

वही ज़हर है"..

किसी ने बुद्ध से पुछा..
   
"ज़हर क्या है"..?

बुद्ध ने बहुत सुन्दर जबाब दिया

"हर वो चीज़ जो ज़िन्दगी में
आवश्यकता से अधिक होती है
�� वही ज़हर है"..

(फ़िर चाहे वो ताक़त हो, धन हो, भूख हो, लालच हो, अभिमान हो, आलस हो, महत्वकाँक्षा हो, प्रेम हो या घृणा..
आवश्यकता से अधिक
"ज़हर" ही है..)

सफल होने का तरीका

एक विचार लो  .
उस  विचार  को  अपना जीवन  बना  लो – उसके  बारे  में  सोचो  उसके  सपने  देखो , उस  विचार  को  जियो  .
अपने  मस्तिष्क , मांसपेशियों , नसों , शरीर  के  हर  हिस्से  को  उस विचार में  डूब  जाने  दो , और  बाकी  सभी विचार  को  किनारे  रख  दो .
यही सफल  होने  का तरीका  है.

Sunday 21 June 2015

पिंजरे को ताला

एक सरदार ने चिड़ियाघर में नौकरी कर ली
उसने शेर के पिंजरे को ताला नहीं लगाया.!
अफसर: तुमने शेर के पिंजरे को ताला क्यों नहीं लगाया.?
सरदार: क्या ज़रूरत है,इतने खतरनाक जानवर को कौन चुराएगा.?

Saturday 20 June 2015

Privatization in education sector

अगर नीचे लिखे लेख की बातें सच हैं तो ये बड़ा खतरनाक खेल है। शिक्षकों के लिए तो चिंतन का विषय है।
उत्तराखंड : शिक्षा के निजीकरण की ओर
Posted by समयांतर डैस्क
त्रेपन सिंह चौहान----- से साभार
उत्तराखंड सरकार 2200 सरकारी स्कूलों को निजी हाथों में देने की तैयारी कर चुकी है। सुनने में तो यहां तक आ रहा है कि दिल्ली के कुछ शिक्षा के व्यापारियों का सरकार पर लगातार दबाव बना हुआ है। इनके दबाव का असर ही हुआ कि बीस सरकारी स्कूलों के संचालन हेतु टेंडर भी निकाल दिए गए हैं। अजीम प्रेम जी फाउंडेशन ने दो जिले उत्तरकाशी और उधम सिंह नगर का ठेका भी ले लिया है। शुरुआती दौर में उत्तरकाशी जिले के मातली नामक स्थान पर उन्होंने तीस एकड़ जमीन भी खरीद ली है। सरकार के योग्य शिक्षा अधिकारियों एवं शिक्षकों को सरकारी मानदंड से दोगुना वेतन पर नियुक्ति की प्रक्रिया भी शुरू कर दी गई है। कुछ के साथ मोल-भाव चल रहा है। आने वाले कुछ सालों में हजारों विद्यालय निजी हाथों में चले जाएंगे। क्योंकि सरकार और विश्व बैंक ने मिल कर 1997 से ही सरकारी शिक्षा व्यवस्था को पूर्ण रूप से ध्वस्त करने का काम शुरू कर दिया था, जब सरकारी स्कूलों में विश्व बैंक के सहयोग से सर्व शिक्षा अभियान की शुरुआत हुई थी और मुकेश अंबानी इस अभियान के राष्ट्रीय सलाहकार बनाए गए थे।
व्यापारी देशों की एक घोषित नीति रही है। गरीब देशों के जिस किसी भी मुनाफे से जुड़े सरकारी प्रतिष्ठान पर उसकी नजर गड़ जाती है उसको हड़पने के लिए वे दो तरह की रणनीति अपनाते हैं, एक उस देश की सरकार को विश्व बैंक से कर्ज दिलाओ और अपने एजेंडे के आधार पर उस सेक्टर के कथित विकास के लिए सरकार के ऊपर दबाव बनाओ। दूसरा उस सेक्टर के कर्मचारियों और अधिकारियों को जो वेतन मिलता है उसमें अतिरिक्त आय जोड़कर उन्हें उनके मूल कामों से हटा कर अन्य कामों में लगा दो। उनकी कोशिश होती है कि उस प्रतिष्ठान के कर्मचारियों को भ्रष्ट करके या कोई अन्य कारणों से इतना बदनाम कर दो कि लोगों की ओर से खुद ही निजीकरण की मांग उठने लगे। अब उनके इस जाल में हमारे देश की सरकारी शिक्षा व्यवस्था पूर्ण रूप से फंस चुकी है और वे अपने स्वाभाविक चेहरे के साथ सामने भी आ गए हैं।
शिक्षक की छवि हमारे समाज में बेहद सम्मान वाली रही है। आज उसकी यह छवि खतरे में पड़ चुकी है। क्योंकि विश्व बैंक के दबाव के चलते सरकार शिक्षकों से गैर शैक्षणिक काम लेकर उनको खलनायक साबित करने में लगी है। पहले प्राथमिक विद्यालयों में सरकार द्वारा थोपे गए डीपीईपी एवं एसएसए के तहत अनुमानित दो दर्जन से अधिक कार्यक्रमों में जैसे विद्यालय स्तर पर सतत एवं व्यापक मूल्यांकन, ग्राम शिक्षा समिति एवं विद्यालय प्रबंधन समिति द्वारा मूल्यांकन के अलावा विद्यालय कोटिकरण, समेकित शिक्षा, कंप्यूटर एडेड लर्निंग प्रोग्राम, समर रीड कार्यक्रम, नींव, एनपीईजीएल, मिड डे मील, सेवारत अध्यापक प्रशिक्षण कार्यक्रम, सामुदायिक प्रशिक्षण कार्यक्रम, निर्माण कार्य, टीएलएम प्रतियोगिता, सीआरजी, बीआरजी, डीआरजी कार्यशालाएं, सृजन प्रतियोगिता और हर ब्लॉक में कस्तूरबा गांधी आवासीय विद्यालय में अध्यापकों की अनिवार्य भागीदारी के चलते वे अधिकांश समय स्कूलों से अनुपस्थित ही रहते हैं। जहां अध्यापकों को ग्रीष्म एवं शीत कालीन अवकाशों तक में उक्त प्रशिक्षणों को पूरा करना होता है वहीं कक्षा आठ तक के अधिकांश बच्चों को हिंदी तक की पुस्तकें पढऩी नहीं आ रही हैं। जिसका जनता और सरकार द्वारा सीधा दोष शिक्षकों के सर ही मढ़ा जाता है। उक्त प्रशिक्षण के बारे में बात करेंगे तो पता चलेगा की बच्चों के चहुंमुखी विकास के नाम से शिक्षक स्कूल से गायब हैं। इसका परिणाम यह है कि खुद विश्व बैंक सारे विश्व में बदनाम करता फिर रहा है कि भारत के सरकारी स्कूलों में पढऩे वाले नब्बे प्रतिशत बच्चे किसी काम के नहीं रहते हैं। जिससे अध्यापकों की छवि पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है।
सर्व शिक्षा अभियान का कार्यक्रम जब शुरू हुआ और उस दौर में शिक्षक जब प्रशिक्षण के नाम से बाहर जाने लगे तो लोगों को लगा कि शायद उनके बच्चों के भविष्य को लेकर सरकार सच में कुछ गंभीर हो गई है। अध्यापकों को भी लगा कि उनको अच्छा एक्सपोजर मिलेगा तो वे बच्चों के लिए कुछ ठोस कर पाएंगे। लेकिन किसी को यह पता नहीं था कि जो शिक्षक प्रशिक्षण के नाम पर स्कूलों से बाहर जा रहा है उसके जिम्मे ढेर सारे गैर शैक्षणिक काम लगा दिए जाएंगे। इन कथित प्रशिक्षणों के नाम पर सरकार और विश्व बैंक ने कई प्रयोगों का सिलसिला सरकारी स्कूलों में शुरू क्या किया उसके दुष्परिणाम अध्यापकों और आम लोगों के बीच एक अविश्वास की दीवार खड़ी हो गई है के रूप में आमने आ रहे हैं। जो नवाचारी प्रयोग स्कूलों में चलाए जा रहे हैं उससे समाज को काफी नुकसान उठाना पड़ रहा है। कई एनजीओ के नए आईडिया की प्रयोगशाला भी सरकारी स्कूल ही बन रहे हैं।
अगर यह कह जाय कि सरकारी स्कूलों को विश्व बैंक ने नवाचारी प्रयोग की मात्र प्रयोगशाला बनाकर रख दिया है तो ज्यादा ठीक रहेगा। हमारी सरकारी शिक्षा व्यवस्था को चौपट करने के बाद विश्व बैंक से समय-समय पर जो रिपोर्ट आती है उसे सब जानते ही हैं। आज हालात यह है कि सरकारी स्कूलों में पढ़ाई का माहौल पूर्णरूप से अनुपस्थित है। सरकारी शिक्षण संस्थाओं से लोगों का विश्वास उठ चुका है। इसका सीधा फायदा उन संस्थाओं को हो रहा है जो शिक्षा को या तो व्यापार का केंद्र बनाना चाहते हैं या अपने सिद्धांतों के आधार पर हांकना चाहते हैं। उसी का परिणाम है कि गांव के थोड़े बहुत जागरूक लोगों ने अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों से निकालकर निजी स्कूलों में दाखिला दिला दिया है। आज शिक्षा के प्रति घोर लापरवाह या विकल्पहीन लोगों के बच्चे ही सरकारी स्कूल में पढऩे के लिए मजबूर हैं।
पहले प्राथमिक विद्यालय स्थर पर डीपीइपी, जूनियर स्तर पर सर्व शिक्षा अभियान और अब हाई स्कूल और इंटर मीडिएट स्तर पर राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान (रमसा) शुरू कर दिया गया है। इसके पीछे के खेल को आप इस तरह भी देख सकते हैं। ये सब कार्यक्रम एक समयबद्ध कार्यक्रम (एसएसए पहले 2010 और अब इसे बढ़ा कर 2017 कर दिया गया है। रमसा 2011 से शुरू कर दिया गया है। ) के तहत संचालित हो रहे हैं। इसका उद्देश्य शत-प्रतिशत नामांकन धारण एवं ठहराव, 6 से 14 वर्ष तक के सभी बच्चों को कक्षा 8 तक गुणवत्ता परक शिक्षा पूरी करने के साथ विद्यालय प्रबंधन में समुदाय की सक्रिय भागीदारी से सामाजिक भेदभाव दूर करना आदि था। अब रमसा शुरू हुआ तो उसके अंतर्गत कई प्रोजेक्ट एवं प्रयोगशालाओं में प्रयोग के कार्यक्रम तय हैं। इसके लिए शिक्षा विभाग में अलग से विज्ञान कांग्रेस का गठन कर कई शिक्षक इस प्रोग्राम के तहत संबद्ध कर दिए गए हैं। वे अध्यापक विज्ञान कांग्रेस के नाम से स्कूलों से बाहर हो गए हैं।
उत्तराखंड राज्य में सर्व शिक्षा अभियान के अंतर्गत प्राथमिक विद्यालयों के संचालन हेतु राजकीय प्राथमिक विद्यालय में 40 बच्चों पर 1 अध्यापक की नियुक्ति की व्यवस्था की गई थी। उच्च प्राथमिक विद्यालय में संचालन हेतु 100 से कम छात्र सं. पर 3 अध्यापकों की नियुक्ति की व्यवस्था थी। राज्य का अधिकांश हिस्सा पहाड़ी होने के कारण सबसे अधिक प्राथमिक एवं उच्च प्राथमिक विद्यालय दुर्गम एवं अति दुर्गम क्षेत्रों में स्थित है। राज्य में कुल राजकीय प्राथमिक विद्यालयों की संख्या 12684 है। इनमें 17 प्रतिशत विद्यालयों में एकल अध्यापकीय शिक्षण व्यवस्था है। इस प्रकार से राज्य में लगभग 4599 राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालयों में 116 में से एकल अध्यापकीय शिक्षण व्यवस्था है।
अब सवाल उठना लाजमी है कि सर्व शिक्षा अभियान के तहत विद्यालयों में प्रतिदिन कई नवाचारी प्रयोग किए जा रहे हैं तो एक अध्यापक द्वारा संचालित प्राथमिक एवं उच्च प्राथमिक विद्यालयों में गुणवत्ता परख शिक्षा का लक्ष्य कैसे पूरा हो सकता है? अध्यापकों की गैर शैक्षणिक कार्यों की सूची इतनी लंबी है कि उसे शिक्षा से जानबूझ कर विमुख करने का षड्यंत्र साफ दिखाई देता है। वह दिन भर मध्याह्न भोजन योजना, अध्यापक डायरी, एसएसए परियोजना से संबंधित अनेकों सूचनाओं के निर्माण के साथ सूचनाओं का संकलन, विश्लेषण एवं विद्यालय में चलने वाले निर्माण के कार्यक्रम में बुरी तरह से उलझा रहता है। प्रारंभिक शिक्षा से जुड़े इन अध्यापकों को सर्व शिक्षा अभियान के सेवारत प्रशिक्षणों, अभिमुखीकरण कार्यशालाओं व अन्य नवाचारी कार्यक्रमों के शिविरों एवं बैठकों में प्रतिभाग हेतु बुलाया जाता है। ऐसी स्थिति में एकल विद्यालय वाले स्कूल तो बंद ही हो जाते हैं। यह सब तो शिक्षा के विकास के नाम पर चलने वाला खेल है जो आम जनता की समझ से बाहर होने के कारण शिक्षक बेचारा उनकी नजरों की भी किरकिरी बना हुआ है। इन कार्यक्रमों के अतिरिक्त सरकार द्वारा त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव, विधान सभा एवं लोक सभा चुनाव से पहले निर्वाचन सूची निर्माण के लिए अध्यापकों को स्कूल से हटाया जाता है, उसके बाद पुनर्निरीक्षण की जिम्मेदारी के बाद चुनाव संपन्न कराने की जिम्मेदारी भी अध्यापकों के सर ही आ पड़ती है। इस पूरी प्रक्रिया में अध्यापक कई महीनों उलझा रहता है। सवाल उठता है कि वह जब वापस स्कूल में पहुंचता है, स्कूल पाठ्यक्रम को कैसे पूरा करता होगा? सरकारी स्कूल में पढऩे वाले बच्चों का भविष्य कैसा होगा…? इन सबके गैर शिक्षण संपादन के बावजूद भी अध्यापकों को कुछ समय मूल्यांकन की प्रक्रिया से भी गुजरना पड़ता है। जो कई स्तरीय होती है।
अध्यापकों को स्कूलों से कितना समय बाहर रखा जाता है उक्त चार्ट से कुछ तस्वीर साफ हो जाएगी।
इस चार्ट में जो कुछ भी दिन अध्यापक स्कूल में दे रहा है इसमें एक तो उनकी किसी प्रकार की छुट्टियों को नहीं जोड़ा गया है और दूसरे गांव के वे कार्यक्रम जो स्कूलों में आयोजित किए जाते हैं और विभागीय कार्यक्रमों में जैसे हिंदी सप्ताह, वृक्षारोपण सप्ताह, विज्ञान दिवस, साक्षरता रैलियां, पर्यावरण रैलियां, पल्स पोलियो के खिलाफ रैलियां, एड्स के खिलाफ जन जागरण रैलियां, इको क्लब के कार्यक्रम, स्काउट एवं गाईड कैंप, हाल में शुरू हुआ राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान (रमसा) के कार्यक्रम, विभिन्न जयन्तियों पर होने वाले आयोजन, राष्ट्रीय पर्वों के कार्यक्रम के साथ हर माह करोड़ों का वारा-न्यारा करने वाले एनजीओ के हर दिन उगने वाले नए वैचारिक प्रयोग इस चार्ट में शामिल नहीं किए गए हैं।
अतीत में कई लोग सवाल उठाते आ रहे थे कि जब अध्यापक स्कूल में ही नहीं है तो उक्त प्रयोग क्यों और किसके लिए किए जा रहे है? उसका परिणाम अब आना शुरू हो गया हैं। उत्तराखंड सरकार 2200 स्कूलों को निजी हाथों में देने की प्रक्रिया शुरू कर चुकी है और इन स्कूलों के पक्ष में बोलने वाला कोई आम आदमी नहीं है। कुछ शिक्षक संगठन विरोध में उतरे तो एक तरफ चतुर सरकार ने उन्हें दो साल का समय देकर स्कूलों में छात्र संख्या बढ़ाने के लिए कह दिया है। दूसरी तरफ 20 सरकारी स्कूलों के संचालन हेतु टेंडर आमंत्रित कर दिए हैं। सरकार जानती है कि शिक्षक संगठनों का जो टारगेट समुदाय है उस समुदाय के बच्चों के लिए आरटीआई के तहत निजी स्कूलों में पच्चीस प्रतिशत मुफ्त शिक्षा का प्रावधान कर दिया गया है। वैसे भी शिक्षक संगठनों की विश्वसनीयता इतनी संदिग्ध कर दी गई है कि आम आदमी अब इन पर विश्वास करने को कतई तैयार नहीं दिखता। वह अपने बच्चों का भविष्य स्कूलों के निजीकरण में ही देख रहा है। वह इतना त्रस्त है कि अपने बच्चों के भविष्य को लेकर उसे फिलहाल अपनी लूट की कोई चिंता नहीं है। जो कि बेहद चिंताजनक है। अगर व्यापक स्तर पर सरकारी शिक्षा संस्थानों के निजीकरण के खिलाफ अभियान नहीं चलाया गया तो कल शिक्षा के नाम पर शहरों से आगे गांवों में भी लूट का एक बड़ा बाजार खड़ा हो जाएगा।